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Friday, December 24, 2010

माँ तरकारी बना रही है…



कांपते हुए हाथ, फटे हुए पन्ने , मरते हुए जजबात, हिलती हुई कलम लिए, उम्र अपनी अब कट रही है खुद को साबित करने में, कौन समझेगा मेरी बेबसी का मतलब, निकला था पत्रकार बनने दलाल बन कर रहगया|
चलिए छोडिये अब इन बेकार की बातों को, आइये आज कुछ समय निकाल कर मेरे साथ,आप को बनते भारत की तस्वीर दिखता हूं...

रात का वक्त है, बहोत ही खामोश सन्नाटा है, कोई साया,सर्गोशी और आहट नहीं है| बस एक मकान की ओर से धीमी सी रोशनी टिमटिमा रही है| फटे हुए खस्ताहाल टाट के पर्दों से चाँद की मनभावन किरणे एक घर में हौले से झांक रही है| छोटे से इस घर में हजारों किस्म के धुंए के बीच जलता, सुलगता हुआ एक छोटा सा परिवार ‘खुशहाल’ दिखाई दे रहा है| कई वर्षो के लगातार इन्तजार के बाद आज इनके घर में चूल्हा जल रहा है, आज इनके घर में ‘तरकारी’ प़क रही है| घर से बहार की ओर सीना ताने भागता हुआ धुआं भी आज अपने आप पर इठला रहा है| आज तरकारी की महक से मुरझाये चेहरोवाले बच्चों की नाक तरकारी की महक से लप-लपा रही है| शायद ये आज गर्व से कह या सोच रहे हैं “अमीरों के घर में तो रोज बनते है पकवान आज हमारी माँ भी तरकारी बना रही है"| इन मासूमों को क्या मालूम आज इनका पिता अपने आप को बेच आया है। बच्चों के पेट की आग मे पत्नी का मंगलसूत्र झोंक आया है। चलिये जाने भी दीजिये इन बोरिंग बातों को आगे चलते है.....

कहीं से आ रही है आरती की आवाजें तो कहीं नेताजी पार्क में चिल्ला-चिल्ला "गरीबी हटाओ"का नारा लगा रहे हैं| कहीं मल्टीप्लेक्सों में लम्बी लाइने लगी है तो कहीं बाइक और मोटर फर्राटे से भागे जा रही है,हर कोई एक अनजानी सी अंधी दौड में शामिल है,पता नहीं कहां जाना है,कब तक ऐसे ही भागते भागते जीवन बिताना है? इन सब भागदौड को नजरअंदाज कर ये बच्चे खुश हैं, आज इनकी माँ ‘तरकारी’ बना रही है|

बनते भारत में लाखों लोगो को ‘सुगर’ सता रही है, वहीं इन लोगों के घर में रखे चीनी के डब्बो ने वर्षों से ‘सुगर’ का एक दाना तक नहीं चखा | बडे-बडे होटलों, बसों ,मेट्रो, से शहर भरा जा रहा है, बढ़ते, फलते-फूलते इसी शहर में इन्होंने खाली पेट ( खली का पेट नहीं) कई रातें गुजारी है| चीज नान, बटर नान,पालक-पनीर,पिज्जा, बर्गर को इन्होंने सिर्फ अपने ख्वाबों-ख्यालों में ही महसूस किया है, और इन नामों का आनंद सिर्फ इनके कानों ने लिया है| बाकी इन्होंने तो कई रातें रोटी के सिर्फ एक टुकडों में गुजारी है| इन सब फ़िजूल बातों का क्या मतलब, आज तो इनकी माँ ‘तरकारी’ बना रही है|

बहुत ज्यादा हो गया, आँखे बंध करिए चुपके से मेरे साथ आप भी आगे बढ़ चलिए. ..

चमचमाती हुई पानों की दुकानें, दिन-ब-दिन बनते फ्लाय-ओवर, बढ़ते हुए मोल जहाँ हर समय खरीदारों का मेला लगता है, वहीं एक अंधियारे से कोने मे झांकती चाँद की किरणे हरदिन इन मासूम से बच्चों को चिढ़ाने आती थी, आज इन बच्चों को मुस्कुराते देख वे भी खिसिया के भाग रही हैं, आज इनकी माँ ‘तरकारी’ बना रही है|
हर रोज हर समय विकसते हाई-वे के कई कोनों पर यहाँ रोज ’सतीत्व’ बिकता है, हर रोज यहाँ कुंती रोती है, रोज यहाँ सज सवंरकर निकलती है राधा किसी कृष्ण के लिए ,सुबह होते ही इनका कृष्ण बदल जाता है| हर सुबह इसी शहर में बनते बिगड़ते हैं रिश्ते, हर बेड़ पर किरदार बदल जाता है| ऐसे माडर्न कल्चर का गरीबी से जुझ रहे इस परिवार के जीवन पर कोई असर नहीं दिखाई देता, इनकी माँ तो बरसों से “थैली” के नशे मे रंगे कृष्ण को निभा रही है | ऐसी और ना जाने कितनी गर्वशील व्याधियों को भूल आज खुश है ये मासूम से फूल, क्योंकि आज इन की माँ ‘तरकारी’ बना रही है|

रोज की तरह हर सुबह की किरणे एक नयी आशा इन भूखे नंगे लोगों के लिए लाती है| क्या फर्क पड़ता है अगर गरीबी का अर्थ अब सिर्फ लाचार,बेबश गरीबों की तस्वीरों में नजर आता है|
हर वख्त मैं यही सोचता रहता हूं कि क्या यही आजादी और विकास का अर्थ है? कया यही ग्लोबलाइजेशन है? कया इसीलिए तडपी थी भगत सिंह की लाश? क्या इसीलिए गाँधी ने अपनी जान गवाई थी?
अब मुझसे लिखा नहीं जाता क्योंकि जितना मैं इन सवालों को रोशनी देने की कोशिश करता हूं उतना ही मेरा खून गर्म होता जा रहा है| कागज भी अब फटने लगा है,कलम भी अब कांपने लगी है| अब भूल जाना चाहता हूं ऐसे बुरे और टी.आर.पी. लेस खयालों को। इन सबसे मुझे क्या? क्योंकि इनकी माँ आज ‘तरकारी’ बना रही है|

जाते जाते:
विकास की इन मंद मंद लहरों को गरीबों के घर को भी छू लेने दो|
चन्द अमीरों और शहरों तक अगर यह सीमित रह जायेगा,
तो वो दिन दूर नहीं जब ’विकास’ भी गर्व से 'दलाल' कहलवायेगा ||

Tuesday, December 7, 2010

बदलते दौर का अदाकार-पत्रकार...



एक पत्रकार हुं मैं, हाँ बदलते दौर का एक अदाकार हुं मैं |
जिनी पड़ती है कई जिंदगिया इसी जीवन मे, हररोज डेस्क पर मेरा किरदार बदल जाता है|
मैं हालात तो बदल शकता नहीं लिहाजा मेरी आदत बदल जाती है|
दाग नहीं छुटते मेरी पोशाको से इसी लिए औरो की पोशाके दागदार बनाता हुं मैं |
दबे कुचले किरदारों की लाशो पर अपना आशियाना सजाता हुं मैं |
हाँ बदलते दौर का पत्रकार हुं मैं..
कोई दर्दनाख किरदार गुजरता है जो आँखों के सामने से तो आँखे बंध कर जरा सा शरमाता हुं मैं |
न जाने कितनी दर्दनाख कहानिया दफ़न है सीने मे फिर भी जीवित किरदारों को भूल,भूत-प्रेत की कहानिया चलाता हुं मैं |
जिंदगी की यहाँ कोई कीमत नहीं फिर भी कीमत की आश मे न जाने कितनी जिंदगिया बिगाड़ता हुं मैं|
हाँ बदलते दौर का पत्रकार हुं मैं..
सच को झूठ झूठ को सच बनाकर अपनी रोजी रोटी चलाता हुं मैं,
न जाने कितनो की रोजी रोटी छीन बॉस के सामने कमीनो सा मुस्कुराता हुं मैं|
शकल पर लगवा के " Story Approve" का ठप्पा एक सच्ची राह पर चल रहे को भटकाता हुं मैं |
हर रोज वतन, वेतन और सियासत से जूझता हुआ अपने फुल से कोमल परिजनों की जिंदगिया झुलसाता हुं मैं|
T.R.P. की टक-टक मे प्रेमिका की धक् धक् भूल जाता हुं मैं ,
बच्चो के खिलौनों को भूल " Edit suit " मे एनिमेसन बनाता हुं मैं|
हर पल लौट जाऊंगा अपनी जिन्दगी मे यही सोच मीठे सपनो की दुनिया मे सो-खो जाता हुं मैं ,
शायद वहीँ मिले मेरे सपनो का जहाँ वहीँ फुर्सद के पल बिता पाता हुं मैं|
हाँ बदलते दौर का पत्रकार हुं मैं ...

Tuesday, November 16, 2010

|| क्योंकी ये भारत देश है ||



एक चलती गाड़ी में बैठा था गाड़ी चलती जा रही थी साथ में मेरा मन भी बावला हो रहा था,मन मचल रहा था|भारत देश के कई रंग इन्द्रधनुष की तरह सामने आ रहे थे| कई रंग काले थे तो कई रंग सफ़ेद भी थे तरह तरह की दुनिया और रंग सिर्फ मेरे भारत में दिखाई दे रहे थे मैं सोचता और लिखता चला गया आप को पसंद न आये तो कृपया क्षमा करिए|

ये मेरे भारत देश में ही होता है मेरे दोस्तों ,एक औरत की कोख से हमेशा "बेटा" पैदा करने की दुआ मांगी जाती है|
एक श्याम रंगी औरत या आदमी हमेशा सफ़ेद रंग की चाह्त रखता है क्योंकी ये भारत देश है|विदेशो में जा कर बसता है और अपने आप को विदेशी कहलवाता है लेकिन शादी तो भारत में ही आकर करता है क्युंकी ये भारत है,और हम सब भारतीय है|

माइकल जेक्सन के गानों को अपनी गाडी में जोर जोर से बजाता है सब को दिखता है की वो कितना आधुनिक है पर घर जाते ही कोने में चोरी छुपे,नेट से या सी.डी लगाकर हिंदी फिल्मो के या भोजपुरिया गाने सुनता है क्योंकी ये भारत है|भारत में आकर विदेशो में सडको और साफ़ सफाई की सब के आगे बीन बजाता है और खुद भारत आकर सडको पर थूकता है जहाँ तहां कचरा फैकता है क्योंकी ये भारत है| अपनी माँ और बहन को छेड़ने वालो के रकत बहाता है लेकिन दुसरो की माँ बहन छेड़ते वखत ये भूल जाता है की उसके घर में भी माँ बहन है क्योंकी ये भारत है | भारत में आये अमरीका के नेता ओबामा को भारतीय नेता सिर-आँखों पर बैठाते है ,और जब खुद अमरिका जाते है तो नंगाझोरी देकर आते है क्योंकी ये भारत है |

न्यूज़ चेनलो पर सास बहु के धारावाहिक और सास बहु की चेनलो पर न्यूज़ दिखाये जाते है क्योंकी ये भारत है|
यहाँ टी.आर.पी. के तर्ज पर लोगो की जाने जा रही है और उन्ही की चेनलो पर टी.आर.पी. की हाय तौबा मचाई जा रही है क्योंकी ये भारत है| भ्रष्टाचार दिनों दिन बढ़ता जा रहा है उसको रोकने के लिए भी यहाँ रिश्वत दी जाती है क्योंकी ये भारत है| भारत को युवा और युवा राजनीत की जरूरत है ये मंच पर चिल्लाता नेता खुद ५० साल से हिलता नहीं औरों को युवाओ के बारे मैं समझाए जा रहा है क्योंकी ये भारत है |

लंबे लंबे भासण का विरोधी खुद ही लम्बा लम्बा लेख लिखे जा रहा है क्योंकी ये भारत है|

Saturday, October 23, 2010

॥ अंधेरा ॥



हर बंधनों से मुक्त हो कर अपने खंडकाल में अकेला बैठा हुं ।
अखंड एकांत को संजोये अपने आप में ही छिप कर बैठा हुं ॥

शाम की ठंडी हवा का झोंका मेरे लिए रेशमी तन्हाई लाता है ।
मखमली अँधेरा मुझे अपनी बाँहों में समेट कर आँखे मींच लेता है ॥

सारी खिड़कियाँ खोल बंध दरवाजो के बिच जीना मुझे अब अच्छा लगता है,
मेरे आसपास रचा हुआ शांति का सरोवर मुझे अब अच्छा लगता है॥

अब कमल अपने आप ही खिलते है, और भवरें भी अपने गीतों को होठों पर सिले हुए,
मेरे एकांत की हौशला अफजाई करते है ॥

न जाने कौन सा अनदेखा अनजाना लुत्फ़ उठा रहा हुं अपने मन के कोने में,
होश से बेहोश होने की मजा ही कुछ और है ॥

भाव- अभाव- प्रतिभाव- प्रत्याघात- अपेक्षा-उपेक्षा- अब कुछ भी मुझे बाधित नहीं करता ।
अपनी ही आवाज से दूर हो कर अपने ही मन से मौन धारण करता जारहा हुं ॥

गाने गुनगुनाने वाले कई गीतों को अलविदा कह कर अपने आप में ही खोता चला जा रहा हुं ॥

Monday, October 11, 2010

क्यां तुम्हे भी याद है..



कुछ बातों की शुरुआत मुझे अभी भी याद है ,
साथ गुजारे वो हर लम्हे , वो हर पल अभी भी मुझे याद है |

यादो की सिलवटें अभी भी दिल की तन्हाई में दफ़न है,
तुमसे लड़ना झगड़ना अभी भी मुझे याद है |

आधे अधूरे अंत की मुलाक़ात मुझे याद है,
तुम न जाने कौन से कोने में छिप गई हो,

तुम्हारा अभी भी छिप के चाँद की तरह सामने आना याद है |

मेरे गम की तन्हाई में वो तुम्हारा फूलों सा मुस्कराना मुझे याद है |

हर हँसते चेहरे में एक हसीन सा चेहरा मुझे याद है |

दरिया में तो आती है मौजे बहार, किन्तु किनारों को तो सिर्फ रेत पर छपी पैरो की परछाई याद है |

मेरे दिल में है आप का एहसास , क्या आप को भी याद है ?

तुम को याद कर हर वख्त आँखों से निकलते आंसू, मुझे तो याद है, क्या तुम्हे भी याद है ?

तुम्हारे बिना कैसे गुजरती है मेरी रातें मुझे तो याद है, क्यां तुम्हे भी याद है?

Thursday, September 23, 2010

प्रेम का हो रहा आधुनिकीकरण या बाजारीकरण |


प्रेम पर बहोत कुछ बेचा जा रहा है,बहोत कुछ लिखाजा रहा है। युवानो को भरमाया भी जा रहा है बहकाया भी जा रहा है। आज कल प्रेम के नाम पर करोडो का व्यापर भी किया जा रहा है। इन सब भावनाओ और दुर्भावनाओ के बिच मे न जाने मैं कहा खोता जा रहा हूँ।आखिर ये प्रेम चीज है क्या। क्या सचमुच प्रेम जैसी कोई चीज है भी के नहीं?

मैं अपने दोस्त की एक बात बताना चाहुंगा जिसे मैं कई दिनों से या यूँ कह ले के पिछले कई वर्षो से जानने की कोशिश कर रहा हूँ। वो हमेशा मुझे प्यार-व्यार की बाते कहता सुनाता रहता है। वो एक लड़की से बहोत प्यार करता है। उसका ख्याल भी रखता है। वो कहाँ जाती है, क्या खाती है, क्या पहनती है, और कैसे चलती है वगेरह वगेरह और हा घंटो फ़ोन तो चलता ही रहता है ( वो भी सदके में) कहानी ये नहीं है।

कहानी ये है की फ़ोन वो उसे हमेशा इस लिए करता रहता है की शायद कोई और उससे बतिया ले। उससे हमेशा ये इस लिए पूछता रहता है की कहा हो “जानु” ताकि उसे ये पता चल शके की कहीं वो किसी और के साथ तो नहीं। उसे हमेशा अपनी पसंद के कपडे इस लिए पहनाता है ताकि उसे पता चल शके की उसकी प्रेमिका उसका कहना मानती है या नहीं। और ऐसी कई बाते है जो मैं यहाँ नहीं लिख शकता। लेकिन इन सब के बावजुद वो हमेशा मुझसे और सभी दोस्तों से यही कहता रहता है की वो बहुत प्यार करता है। दिलो जान से चाहता है अपनी गर्ल फ्रेंड को | भाई अगर यही प्यार है तो अच्छा है की मुझे अभी तक ऐसा नहीं हुआ| मैंने अब ये क्सिसे आम होते देखे है। जो बहोत प्यार करने का दावा करते है वो एक दुसरे पर रति भर विश्वास नहीं कर शकते है। सीरी फरहाद के किस्से सुनाने वाले एक पराये लड़के या लड़की का मेसेज फ़ोन मे देख जन्मो-जनम का रिश्ता खतम कर देते है।

क्या कभी आपने ये सोचा है ये सब आज कल जायदा कयुं हो रहा है। मैंने सोचा है,शायद मैं गलत भी हो शकता हूँ । लेकिन मुझे लग रहा है की आज कल प्यार पर बाजार वाद हावी हो रहा है। अपनी प्रेमिका को खुस करना हो तो ये गिफ्ट दीजिये,फला-फला त्योहार आ रहा है ये गिफ्ट दीजिये नहीं तो आप की प्रेमिका या प्रेमी नाराज हो शकते है। आप को अपने प्रेम पर शक है तो “इमोशनल अत्याचार” हाजिर है आप के प्रेम की परख करने के लिए। आप को आप के प्रेम ने छोड़ दिया है तो “x यौर x” हाजिर है आप के प्रेमी को सजा दिलवाने के लिए | गोबेल्स की एक निति मुझे यहाँ याद आ रही है " झूठ जोर से बोलो बार बार बोलो चिला के बोलो तो वो सत्य तो हो ही जायेगा" उसी लिहाज से आज कल प्रेम पर बाजार वाद इतना हावी हो रहा है की प्रेम गायब और सामान जायदा बिक रहा है। इस लेख को पढ़ जायदा बोर मत होइए नहीं तो आप की गर्ल फ्रेंड या बॉय फ्रेंड नाराज हो जायेंगे। दुनिया है होता रह्ता है .. बडे बडे देशो मे छोटी छोटी बाते होती रहती है........

Tuesday, August 24, 2010

|| चोला टी.आर.पी. का ||



सुबह के लगभग ७ बज रहे थे हम लोग गुजरात और मध्यप्रदेश के बोर्डर रतनमहल जाने के लिए निकल चुके थे| वैसे सुबह-सुबह कई सारे मेसेज आते है लेकिन एक मेसेज जो गुजरात के ही एक छोटे से प्रान्त उंझा से आया था उस ने मेरा ध्यान खीचा|

मैंने मेसेज पढ़ा और तुरंत ही मेसेज करने वाले मेरे मित्र को फ़ोन लगाया। सामने के छोर से वो लगातार बोले ही जा रहा था उस की बात जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी वैसे-वैसे मेरे रोंगटे खड़े होते जा रहे थे | फोन करने वाला मेरा मित्र बता रहा था की कैसे दो पत्रकारमित्रो ने एक एक्सक्लुसिव घटना के लिए एक कहानी रची थी जिस मे उन्हों ने एक निर्दोष व्यक्ति की जान ले ली।

बात कुछ यों है की उत्तर-गुजरात के ही एक इलाके मेहसाना से कुछ किलोमीटर दूर उंझा नामक एक शहर है जो ज्यादातर अपने “जीरा” निकास और विकास के लिए जाना जाता है। हाल ही मे हुये उमिया महोत्सव की वजह से भी उंझा का नाम सारे विश्व मे गूंजा था | फिलहाल एक बार फिर उसका नाम पुरे देश मे गूंजा है अच्छी वजहो से नहीं बल्की देश के चौथे स्तम्भ की गलत कारनामों की वजहों से। चलिए विषय भटकाव हो रहा है मुख्य बात पर आते है, बात उंझा की है दो पत्रकार मित्रो को उनके डेस्क से लगातार कुछ नया या एक्सक्लुसिव देने के लिए फ़ोन आ रहे थे। वो भी लगा तार दबाव से तंग थे। सो कुछ नए की तलाश मैं थे। ऐसे मैं उनको एक व्यक्ति का मदद के लिए फ़ोन आया( जो अपने परिवार के प्रोपर्टी के झगड़ो की वजह से परेशान था| उन पत्रकारों के दिमाग की काली घंटी बज उठी| जो उन्हें सही दिशा मे बजानी चाहिये थी वो गलत दिशा मे बजायी|

उन्हों ने उस व्यक्ति को इक विचार सुझाया की ऐसे कुछ नहीं हो पायेगा हम कह रहे है ऐसे करो तो तुम्हारी कुछ न्यूज़ बनेगी और तुम्हारा काम हो जायेगा | उन्हों ने उस व्यक्ति को सुझाव दिया की तुम उंझा पुलिसथाने जा कर आत्मविलोपन की धमकी दो और न माने तो खुद पर मिटी का तेल छिडक लो और माचिस लगा लेना हम लोग वहीं रहेगे तुम जैसे ही थोड़े जलोगे हम लोग आकर बचा लेंगे| वो बिचारा आफत का मारा उन की बातो मे आ गया और वैसे करने को तैयार हो गया| हाथ मे मिटी का तेल लिए पहोच गया पुलिसथाने उसने उन पत्रकारों ने जैसी स्क्रिप्ट टाइप की थी बिलकुल वैसे ही किया | उसे कहाँ पता था था आज कल के पत्रकारों के बारे मे,और आज के पत्रकारिता के बारे मे | उस ने जैसे ही मिटी का तेल अपने जिस्म पर छिड़का की हालफिलहाल मगरमच्छ की तरह मुह फाड़े खड़े पत्रकारो के केमरे रोल हो गये। उन्हों ने उस आदमी को दगा दिया उसे बचाने की बजाय सुट करने लगे थोडी देर तक वो जलता रहा जब उन दोनों ने सुट करना बन्ध नहीं किया तो अगल बगल के कुछ लोग दौड़े और उसे बचाने के प्रयास किये | उसे जबरन हॉस्पिटल पहोचाया लेकिन जबतक वो हॉस्पिटल के दरवाजे पर जा कर जीवन के लिए दस्तक देता तब तक उस के प्राणपंखेरू उड़ चुके थे| और उन पत्रकारों की स्टोरी फाइल हो चुकी थी|
ये लिखे जाने तक जिन पर उस मासूम की जान लेने का आरोप है वो “पत्रकार” फरार है। पुलिस ने उन दोनो पत्रकारो के खिलाफ़ आत्म हत्या के लिये उक्साने के आरोप लगाते हुए एफ़.आइ.आर दर्ज कर ली है। और इस घटना के प्रत्यक्षदर्शीओ ने भी अपने अपने बयान दर्ज करवा दिए है।
अब इस घटना के दस दिन बाद चर्चा हो रही है की क्या ये गलत था या वो गलत था|( शायद पहले हमारे मीडिया के बोस लोगो को ईस मे टी.आर.पी. ना दिखी हो जो अब दिख रही है।) जो भी सही गलत हो उसका फैसला तो हमारी न्यायपालिका करेगी लेकिन उस बिचारे का क्या जिस ने एक एक्सक्लूसिव मैं अपनी जान गवा दी? इसके पीछे क्या सिर्फ वो ही दो पत्रकार जिमेदार है?? या फिर टी.आर.पी. की अंधी दौड़ मैं सामिल हमारे उच्च पदस्थ सारे बॉस जवाबदार नहीं है ? हर दिन कुछ नया हर दिन कुछ तडकता भड़कता??? कहा से आयेगा हर रोज तड्कता भड्कता? ऐसे ही आयेगा ना। अगर अब भी हमारे टी.आर.पी. वान्छुक मीडिया मंधाताओं की आँख न खुली हो तो आने वाले दिनों मे ऐसे किस्से आम हो जायेंगे | उन पर भी उन्ही चैनल्स पर आधे घंटे का कोई प्रोग्राम बनेगा और बस जवाबदेही ख़तम|

“चोला टी.आर.पी. का है, हे राम, अभी सभल जा हे मेरे यार,नही तो एक दिन आयेगी सबकी बारी।”

यहाँ पर लिखी सारी बाते घटनास्थल के लोगो द्वारा बताई गयी है ये गलत भी हो सकती है लेकिन उस निर्दोष ने जान गवांइ है,ये सच मिटाने से भी नहीं मिटेगा|

Saturday, August 7, 2010

बोये पेड बबुल का 'आम' कहा से होय.??



आप कोई भी समय कोई भी चैनल लगा लीजिये कहीं न कही आप को लुट,बलात्कार, खून, चैन स्नेचिंग की घटना पे डायन की तरह से जोर जोर से चिलाते या मिमियाते न्यूज़ एंकर दिख ही जायेंगे। कोई भी अख़बार उठा लीजये आप, तो आप को फ्रंट पेज पर लूट बलात्कार से भर हुए कोलम मिल ही जायेंगे। क्या आप ने कभी इस के पीछे क्या और कौन जिमेदार है ये सोचने की कोशिश की है( मैं आधे घंटे का प्रोग्राम भरने की बात नही कर रहा। ) कुछ दिलो दिमाग से सोचने की बात कर रहा हूँ.|

एक ऐसी सोच की जिस से समाज मे और उस तकलीफ मे कुछ सुधार आ सके। आप Mtv लगा लीजये कभी न कभी आप को स्टंट मेनिया का प्रोमो या प्रोग्राम दिख ही जायेगा,जिस मैं नव युवा लड़के लकडिया आप को जान जोखिम मे डाल कर स्टंट करते दिख जायेंगे। और उन जोखिमो का प्रमोसन भी खूब प्रभावी ढंग से किया जाता है। फिर बारी आती है हमारे न्यूज़ चेनलो की हर रोज एक पैकेज बन जाता है, दिल्ही की सड़क पर छाया बाईकर्स का आतंक, फला फला जगह पर हुआ “हिट एन्ड रन केस” ( भैया मैं पूछता हूँ की एक तरफ आप स्टंट मेनिया कर के नौ जवानो को उकसा रहे हो दूसरी तरफ जब वो आप के उकसावे पर पूरी तरह तैयार हो जाते है तब आप उन्ही पर खबर बना देते हो|वाह रे हमारा मीडिया समाज)

सिगरट और तम्बाकू का आविष्कार किस ने किया ? हम ने| फिर उस पर बड़े बड़े चित्र भी हमने ही लगाये की सिगरेट पीना स्वास्थ के लिए हानी कारक है। कैंसर भी हमने पैदा किया और उससे बचने की दवा भी हमने ही बनाई है। मेरा प्रश्न सिर्फ इतना है की जिस गढ्ढे को आप ने खोदा है अगर उस मे आप गिर जाते हो तो फिर इतना शोर-शराबा क्यूँ मचाते हो ??? भाई ये तो वो बात हुई कि चोर को कहिये की चोरी कर और फिर चिलायिए चोर चोर.....!

आज कल हर जगह “सप्लिट्स-विला” और “ट्रुथ लव केस”( MTVऔर VTV के प्रोग्राम है।) की चर्चा है। दूसरी तरफ चर्चा ये भी है की आज कल भारतीय समाज में शादीया जल्दी टूट रही है। लोगो के शादिओतर संबध मे दिनों-दिन बढ़ावा हो रहा है, मैं पूछता हूँ की एक तरफ तो आप “सप्लिट्स-विला” और “ट्रुथ लव केस” मे प्यार मे गद्दारी करना सिखाते हो और जब वो ही चीज समाज पर हावी होने लगती है तब चिलाते हो। ऐसी परिसिथिति का निर्माण ही क्यूँ किया की जो समाज के लिए खतरा बन जाए। ( शायद फिर ये आधे घंटे का शो कर के प्रोग्रामिंग चेनल की टीआरपी नहीं आती ऎड नही मिल्ते। )

हम ही स्टोरी चलाते है की क्रिकेट को ज्यादा अहमियत दी जाती है भारत के अन्य खेलो को नहीं|( अरे प्राइम टाइम मे क्रिकेट पर आधा घंटा, क्रिकेटरो की लाइफ स्टाइल पर घंटो के प्रोग्राम कौन चलता है ? और किसी खले पर कोई स्पेशल प्रोग्राम नहीं बन शकता क्या...!) क्राइम पर सनसनी और न जाने क्या क्या बनाते है हम,आप और हमारे मीडिया के मित्र और फिर चिलाने वालो मे भी हम आप और वो ही है की देश मे क्राइम बढ़ रहा है। हमारे भुतपूर्व राष्ट्रपति कब से कह रहे है की “पोसिटिव पत्रकारिता” करो खेती पर कार्यक्रम बनाओ। उन्ही के शब्दों की दुहाई देते न्यूज़ चनलो से मेरा प्रश्न है की आप ने कब उनकी बात मानी और ऐसे न्यूज़ चलाये.! क्या पोसिटिव पत्रकारिता नहीं हो सकती? ( हो शक्ति है लेकिन टी.आर. पी. जो नहीं आती ऐसे प्रोग्रामस की | पिपलो मीटर जो नहीं लगे होते ऐसे क्षेत्रो मैं|)
बात यही पर आकर नहीं अटकती आज कल एक नया फेशन चला है बन बैठे विवेचको मे, कुछ भी हो कैसे भी गुनाह हो घुमा फिरा कर नौजवानों के सर मढ़ दो, किसी न्यूज़ चैनल पर जा के “बाईट” दे दो काम ख़तम। ( विवेचन का नया तरीका)

आज कल सभी पानी मथ कर दही निकाल रहे है। लेकिन लोगो को पता नहीं चलने देना चाहते की वो पानी मथ रहे है। सब को दिखा भी रहे है और दिलशा भी दे रहे है की धैर्य बनाये रखिये हम लोग दही मथ रहे है इस में से माखन निकलेगा वो आप सब को ही देंगे।

मेरा ये प्रश्न उन सभी लोगो से है की जो हमेशा ये प्रश्न उठाते रहते है की पोलिटिक्स से अच्छे लोग दूर रहते है। वोट नहीं करते बला बला बला...। मेरा प्रश्न उन सब से है की उनको वोटिंग तक खीच लाने के लिए आप ने क्या किया?????

चलिए अब भासण बाजी और लेक्चर बहोत हो गया, मैं भी कुछ नहीं कर पा रहा इन सब के लिए या मैं भी कुछ नहीं करना चाह रहा सो यहीं अपनी भड़ास निकाल दी ( या दुनिया को मैं भी ये दिखने की कोशिश कर रहा हूँ की मैं भी अब विवेचक हो गया हूँ | या मेरी भी गणना अब बौधिको मे होनी चाहिए।)

बाकि क्या है ये संसार एक मोह माया है क्या लेकर आये है और क्या लेकर जायेंगे|( न्यूज़ बुलेटिन लेकर आये थे टी.आर.पी. लेकर जायेंगे|)

Tuesday, July 27, 2010

|| चल रे मनवा रेल वे ट्रेक ||



कुछ दिनों पहले ही मैने भारत की एक अजायबी भरी सेवा से भारत की ही एक दुसरी अजायबीओं से भरी दुनिया देखी। भारतीय रेल की “राजधानी” से भारत की राजधानी की और जा रहा था। सुबह का वख्त था, ट्रेन मे और कुछ काम तो होता नहीं, लिहाजा जो मेरे जीवन मे बहोत कम होता है वो हुआ, मैं सुबह जल्दी उठा। प्रक्रुति के नजारे आँखों को खुब लुभा रहे थे। धीमे धीमे ट्रेन आगे बढ़ रही थी,वक्त गुजरता गया और रेल्वे ट्रेक की तरह पृकृति के नजारे आँखों से ओझल होने लगे थे। ट्रेन के नीले कांच के अन्दर से रेल्वे ट्रेक के किनारों की एक नई दुनिया की झांकी झांक रही थी। वो कुछ ऐसी दुनिया थी जिसे देख कर मैं हैरान हो गया।

सुबह उठते ही बाथरूम का दरवाजा खोलने की आदत शायद सबको है। लेकिन रेल्वे के किनारे बसे लोगो की दुनिया मे शायद ये नसीब नहीं है। खुला आसमान ही उनका बाथरूम है और रेलवे ट्रेक ही उनकी दिनचर्या सुरु करने का स्थान। एक दिन अगर घर मे पानी नहीं आता तो मैं व्याकुल हो जाता हूँ,लेकिन इन्हें देख कर ये प्रश्न हुआ की ये लोग पानी कहा से लाते होंगे ? सोने के लिए मुलायम गद्दे हमेशा मेरा इंतजार करते है जिनके बिना मुझे कभी नींद नहीं आती, वोही एक छोटे से मासूम को रेलवे ट्रेक के कंकडो पर सोते देख मुझे सारे सुख याद आने लगे। सोने के लिए पिन-ड्रोप सायलंस की आवश्यक्ता शायद मुझे हमेशा रहती है। लेकिन एक बुजुर्ग को रेल्वे से एक दम सटके अपनी चारपाई डाल कर एक दम शोर-शराबे के बीच आराम से सोते मैंने देखा। २० बाय २० का कमरा भी मुझे हमेशा छोटा लगता था, लेकीन १० बाय १० के कमरे मे कई लोगो को रेल्वे के किनारे आराम से रहते देखा। १० मिनिट भी चाय मिलने मे देरी हो जाय तो घर मे मैंने चिल्लाते हुए लोगो को देखा है। लेकिन रेल के इस किनारे कईओ की सुबह बिना चाय के होती मैंने देखी। अलार्म से हमेशा नींद को त्यागने वाला मै ये सोच कर दंग रह गया के रेल्वे के ईन्जन की सिटी न जाने कितनो का एलार्म है। कितनो की सुबह सिर्फ उसकी एक आवाज से होती है।
मुझे सुबह होते ही अखबार और देश की चिंता सताने लगती है लेकीन पहली बार रेलवे के किनार लोगो को सुबह उठ कर सिर्फ खाना कहाँ से आएगा ऐसी चिंता करते देखा। लोग जितना जल्दी हो उतना जल्दी इन रेलट्रेक वाले अपने घरो को छोडना चाहते थे,वंही मेट्रो के किनारे हजारो रुपियो का इत्तर लगाये लड़के लडकियों को घंटो बतियाते भी मैंने ही देखा है.!

ऐ.सी कोच मे बैठ कर ठंडी का एहसास और आनंद लेते मैंने उसी कोच के बाहर गर्मी मैं झुलसते लोगो को देखा है ! न जाने मुझे क्या हो गया है जब से मैंने इस रेलवे ट्रेक को देखा है। जैसे रेलके दो ट्रेक आपस मैं कभी नहीं मिलते वैसे मेट्रो और रेल्वे ट्रेक की आसपास की संस्कृति भी शायद आपस मैं कभी नहीं मिल पाएगी...! न जाने मुझे क्या हो गया है जब से मैंने रेलवे ट्रेक को देखा है.!

Friday, July 9, 2010

बस ’कोलेज’ का नाम न लेना आई हेट ’कोलेज’ स्टोरी’स .!




विनय: क्या कर रहा है,संजु?

संजु: कुछ नही यार बोर हो रहा हूं, चल ना कही टाईम पास करने चलते है।

विनय: कहा चला जाय यार...ह..ममम....... चल ना कोलेज चलते है, मस्त टाईम पास होगा और मस्त मस्त
लड्किया भी होगी...।

संजु: यप.. कुल, ग्रेट आईडिया..लेट्स मीट धेयर।

ये संवाद मेरे दिमाग मे और जहन मे बहुत दिनो से घुम रहा है। आखिर अब विद्यार्थीओ के मन में कोलेज का क्या मतलब है? विद्यार्थी कोलेज जाते क्यूं है? क्या हो गया है मेरे नौजवान विद्यार्थी मित्रो को.? यदि ऐसा ही हाल रहा तो आने वाले दिनो मे कोलेज की पूरी व्याख्या ही बदल जायेगी।

आजकल के माहोल ने और पनप रही गुन्डागर्दि ने मुझे फ़िर से इस बात पर सोचने के लिये मजबूर कर दिया है कि क्या अब कोलेज का माहोल पुरे जीवन भर याद करने लायक है?( जैसा हम कर रहे है।) फिल-हाल तो कोलेज की परिभाषा ही पुरी तरह बद्ल चुकी है। ( शायद मै ओलड फेशन कहा जाऊंगा लेकिन मेरे जहन में कोलेज की जो यादें है उसे में हमेशा याद करता हूं।)

मेरे दिल मे ये सवाल ना जाने कब से गूंज रहा है कि आखिर इस कोलेज के वातावरण को किस की नजर लग गयी है? आज कल कोलेज में विद्यार्थी कम और अजब गजब कपडे पहने ’भाई’ टाईप के लोग क्यूं ज्यादा नजर आते है? विद्यार्थी नेताओ की फौज क्यों बढ रही है? कोलेजो मे पढाई की जगह तोड-फोड क्यों हो रही है ? क्या कारण है इस के पीछे ? ऐसे ’भाई’ और विद्यार्थी नेता विशेषत: आर्टस-कोमर्स-सायन्स फ़ेकल्टी वाली कोलेजो में क्युं ज्यादा नजर आते है?

मुजे जो कारण नजर आता है, वो शायद यह है कि कोलेजो मे आने वाले “ विद्यार्थीओ” की संख्या दिन प्रति दिन घट रही है। कोलेज मे दाखिला सब के लिये सुलभ बनाने के उत्साह मे हम ने सब के लिये उच्च शिक्षण के प्रवेश द्वार खोल दिये। इसका नतिजा ये हुआ की कोलेज मे नाम मात्र का दाखिला लेने वालो की संख्या दिनो दिन बढने लगी !
“ हरि को जो भजे सो हरि का होय”, उसी तर्ज पर जो फीस भर सके वो सब कोलेजियन होय। ऐसा प्रतित होने लगा। इसका नतिजा ये हुआ कि आज कल लोगो को पढ्ने के अलावा और बाकी सब कुछ करने का परमीट मिल गया। कोलेज केम्पस मे कोई भी बिना किसी फ़िक्र के बिन्दास घूम सकता है ( भाई अब रोकोगे कैसे जब उनके पास आई.डी.है)। प्रिन्सिपाल की अब पहले जैसी धाक तो रह नही गई ( या रहने नही दी गई, इस परिस्थिति का निर्माण करने के पीछे शायद हमारे माता-पिता या कुछ मेरे जैसे मिडियाकर्मी जिम्मेदार है, जो छोटे से छोटी बात को हेड-लाईन बना के बाई-लाईन ले लेते है।) सरस्वती–धाम मे पुलिस को तो आना मना ही है तो ऐसे मे इन “विद्यार्थीओ” के आई.डी. चेक कोन करेगा? ओर भूल से भी अगर कोलेज प्रशासन ऐसे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ़ कोई कार्यवाही करती है तो “ विद्यार्थी एकता जिन्दाबाद” के नारे गुंजने लगते है, और बन बैठे विद्यार्थी नेता कोलेज मे तोड्फोड कर हंगामा खडा कर देते है? और ऐसे विद्यार्थीओ के खिलाफ अपने आप को शरीफ विद्यार्थी मे गिनती करवाते लोग चुप-चाप शरीफ बन्दर की तरह सिर्फ तमाशा देखते रहते है।

मेरे एक मित्र को मैने पूछा (जो फिलहाल कोलेज मे पढ्ता है) कि आज कल इतनी गुन्डा-गर्दी क्यूं हो रही है? क्युं कोलेज का वातावरण बिगड्ता जा रहा है? उसने फ़िल्मी और पुरुष वाली मानसिकता से जवाब देते कहा कि” भैया आज कल की लडकीयो की वजह से ये सब हो रहा है ( मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन सुनता रहा ।) कोलेज की लडकीयां कोलेज केम्पस को फेशन परेड का स्थान समझने लगी है, एक कप कोफी,आइसक्रीम या फ़िल्म की खातिर आज कल की लड्कीया किसी भी लड्के के साथ कहीं भी जाने से परहेज नही कर रही है, बिन्दास जो कहलाना है।किसी भी लड्के की गाडी मे बैठ कर कही भी चल देती है। लड्कियो मे अब बोयफ़्रेंड बनाने कि एक होड सी लगी है, इस होड मे वो लड्को का बेक-ग्राउन्ड जाने बिना कही भी चल पडती है, और नतीजा आप के सामने है भैया। ( अब इस को क्या कहु पुरुष विरोधी मानसिकता या स्त्री विरोधी मानसिकता।) खैर बात आगे बढाते है,

आज कल कोलेज का वातावरण बिगाड्ने के पीछे कोलेज के ही कुछ “भुत” पुर्व विद्यार्थीओ का भी बहुत बडा हाथ है। जिनको कोलेज के अन्दर के ही विद्यार्थी पालते-पोसते है। और ऐसे“भुत” पुर्व विद्यार्थीओ के साथ एक बहोत बडी खुशामत खोरो की टोली भी होती है, जो जरुरत पड्ने पर कोलेज के कुछ विद्यार्थीओ को डराती धमकाती है, और उस की टोली मे शामिल कोलेज के विद्यार्थी की मदद करती है।( ओर फिर बदले मे उस से ना जाने क्या क्या करवाते है।) आज कल लडके लडकिंया घर से निकल कर कोलेज ही जाते है ऐसा नही है वो अब ज्यादातर किसी सिनेमा-घरो मे या किसी-ना-किसी कपल-रूम मे पाये जाते है।( मेरी बात की पुस्टि के लिये गुजरात के किसी भी कपल रूम मे या होट्ल मे पडी रेड का इतिहास खगांल लिजीये आप को सबूत मिल जायेगा की ऐसे किस्सो मे ज्यादातर कौन पक्डे जाते है।)

३५-४०% या एक से अधिक बार ट्रायल दे कर पास होने वाले विद्यार्थी कोलेज मे दाखिल नही होगे तो सरस्वती माता की वीणा के तार को कोई नुक्सान नही होगा। जो लोग सिर्फ फैशन की खातिर,घुमने फिरने की खातिर,टाईम पास करने की खातिर या फिर ’स्नातक’ का लेबल लेने की खातिर कोलेज मे मुह उठाये चले आते है उन्हे रोकना ही होगा,नही तो इस आधुनिकता और आधुनिक विद्यार्थीओ के प्रलय के बहाव मे सिर्फ युवाधन ही नही उच्च-शिक्षण की पुरी व्यवस्था डुब कर बह जायेगी।

विषेश सुचना: यह लेख लिख ही रहा था कि खबर मिली है की अहमदाबाद के एक कोलेज के २ लडको ने दारु पीकर कोलेज मे खूब हंगामा खडा किया और तोड फ़ोड की ( खबर जुलाई ९-२०१० की है। जगह अहमदाबाद गुजरात है।)

Saturday, June 26, 2010

!.....ओनर किलिंग कल आज और कल.....!



ओनर किलिंग-ओनर किलिंग आज कल मीडिया और सामान्य लोगो के बीच ये एक बहोत ही चर्चास्पद विषय बन गया है|कई लोगो को तो ये शब्द पता ही नहीं था की इसका मतलब क्या होता है?शुक्र है हमारी मीडिया ने सब को समझा दिया|
कोई भी घटना आज कल जो हत्या से जुडी हो उसको सब से पहले ओनर किलिंग से ही जोड़ा जाता है(भले चाहे वो हो न हो,आखिरकार टी.आर.पी का जो सवाल है फ़िल-हाल ओनर किलिंग या उससे जुडे मुद्दे सब से ज्यादा टी.आर.पी दिला रहे है। और ऐसे कई सारे मुद्दे है जो सिर्फ टी.आर.पी के लिए मीडिया मैं चलाये जा रहे है मैं यहाँ उन सब की बात कर के आप का टाइम नहीं बिगड़ना चाहता, सब को पता है। और मैं ये बात भी साफ़ कर देना चाहता हूँ की मैं कोई ओनर किलिंग के समर्थन मे नहीं हूँ। “जिंदगी हमेशा मौत से बड़ी होती है”।)

बात ओनर किलिंग की हो रही है तो मैं भी क्यूँ न ज्ञान दे ही दूँ। ( भले मुझे कुछ पता हो न हो, आखिर कार ब्लॉग की टी.आर.पी का जो सवाल है।)

ये ओनर किलिंग का भूत आया कहाँ से? अगर आप एक नजर अपने समाज की रचना पर और उसके इतहास पर डाले तो ये कही न कही हमारे पुरुष प्रधान समाज की ही देन है या रही होगी। जिस देश मे स्त्री और पुरुष के बीच अ-समानता की खाई ज्यादा हो,जिस समाज मे स्त्री को एक अधिकार के रूप मे माना जाता हो,जिस देश मे स्त्री को पुरष द्वारा अधिकार दिए जाते हो वहीँ ओनर किलिंग होगी या वहीं ओनर किलिंग के किस्से ज्यादा मिलेंगे।( रही भारत की बात तो भारत मे स्त्री भगवान के स्वरूप मे पूजी जाती है,और वोही स्त्री को दहेज़ के नाम पर जलाई भी जाती है,ओनर किलिंग के नाम पर उसी-के जन्मदाता ओ द्वारा मारा भी जाता है| मुझे ये समझ मे नहीं आता की जिस कलाई पर बहन ने प्यार से राखी बाँधी हो उसी कलाई से उसका कतल कैसे हो शकता है? जिस पिता को नौकरी से या अपने काम-काज से थक हार कर घर पर आते ही प्यार से पानी पिलाया हो उसी हाथ से उनको मारने की हिम्मत कहाँ से आती है?घर के ही लोगो की लाश पर गर्वे से केमरे पर बाईट देने की ताकत कौन देता है।)
अगर आप मानते हो की ये ओनर किलिंग सिर्फ भारत मैं ही है तो आप खुद एक भ्रम मे है। ये ओनर किलिंग अपने पडोसी देश पाकिस्तान मे भी हो रही है।( जो की वहां की मीडिया उनके समर्थन मे है,इस लिए ऐसे किस्से लोगो के ध्यान पर बहोत कम आते है या आने दिए जाते है |) इस के अलावा तुर्की,जोर्डन,लेटिनअमेरिका,कुवैत,बंगलादेश और कई सारे देशो मे ओनर किलिंग हो रही है।

पाकिस्तान मे तो सिर्फ चार वर्षो मैं ४,०००० से भी ज्यादा महिलाओ की हत्या सिर्फ ओनरकिलिंग के नाम पर हुई है। दिन बा दिन ये घटना ये वहां बढती ही जा रही है।ऐसा नहीं है की वहां इसके खिलाफ आवज नही उठती, आवाज तो उठती है,लेकिन उसे एक या दुसरे तरीके से दबा दी जाती है या तो फिर ऐसी घटना ओ को बाहर नहीं आने दिया जाता। अब तो हाल ये है की आधुनिक कहे जाने वाले अमेरिका केनेडा फ़्रांस जर्मनी यू.के. मे भी ओनर किलिंग के किस्से हो रहे है। ( हम हर चीज मैं अमरीका जैसा बनने की कोशिश करते है लेकिन इस घटना क्रम मे शायद अमेरिका और दुसरे देश हमारी कॉपी कर रहे है।)
ऐसा नहीं है की इस से पहले भारत मे या और देशो मे ओनर किलिंग नहीं होती थी|
एक नजर पहले के ज़माने पर डाले तो जब लडकियां पैदा होती थी तो उन्हें दूध मे डुबो कर मार दिया जाता था।( ये कौन सी किलिंग थी),औरतो को दहेज़ के नाम पर,दूसरी जाती मे विवाहों के नाम पर पहले भी मारा जाता था, ना जाने कितनी खाप पंचायतो ने और फ़त्वो ने इज्जत के नाम पर हत्याये करवाई है ( ये भी मेरी नजर से ओनर किलिंग ही है।)
फर्क सिर्फ इतना है पहले ऐसी घटनाओ को दबा दिया जाता था या दब जाती थी, आज दबाने से भी नहीं दब रही है।

ओनर किलिंग की बदी आज-कल से नहीं सदियों से चली आ रही है फर्क सिर्फ इतना है समय समय पर इस घटना ने अलग नाम का चोला पहना है| अंध पुरषोत्तम प्रधान समाज मे कोई शख्त कानुनों से ये बदी दूर नहीं हो जायेगी इस के लिए हमें सब से पहले हमारे इस अंधे समाज के माइंड सेट को बदलना होगा। इस जूठे इज्जत के भ्रम को तोडना होगा। महिलाओ को सम्मान से जीने देना होगा। इस को दूर करने के लिए एक लम्बी लड़ाई लड़नी होगी, जन जागृति लानी होगी,तभी ये पेट्रोल और गेस की कीमतों की तरह बढ़ता काले-नाग की तरफ फन फैलता ओनर किलिंग का भूत थमेगा।न की जल्दी जल्दी पी.टु.सी देने से या हाफ्ते-हाफ्ते बोलने से।

चलिए बहोत लिख लिया कोई ओनर किलिंग का किस्सा ढूँढना है या बनाना है चैनल की टी.आर.पी. जो बढानी है।

Saturday, June 12, 2010

याद रखना मैं एक पत्रकार हूँ.....!



याद रखना मैं एक पत्रकार हूँ.....!

जब से मैं इस क्षेत्र मैं आया हूँ तब से कहीं न कही ये किसी न किसी रूप मे ये शब्द मुझे सुनाई दे ही जाता है..! कभी इस मे अभिमान छिपा हुआ होता है,तो कभी इस मे गर्व छिपा होता है तो कभी कभार केमरे के पीछे की लाचारी भी इसी शब्द के रूप मै पिस टु केमेरा दे जाती है...!...

लेकिन पिछले कुछ दिनों से यही प्रश्न मैं बार बार सोचता रहा की आखिर पत्रकार यानि क्या..?! ( जब की मैं खुद एक पत्रकार बनने की कोशिश कर रहा हूँ।)इस सन्दर्भ मे मैं आप को एक घट्ना बताना चाहुंगा।

कुछ दिन पहले मेरे एक पत्रकार मित्र को घर लेना था। बहोत खुश था वो क्युंकी उसके जीवन का एक बहोत बड़ा सपना सच होने जा रहा था।उसने अपने कुछ दिनों की बचत और कुछ माँ बाप की बचत से घर लेनी की सोची थी। लेकिन वो इतनी नहीं थी की उस से वो घर खरीद ले।लिहाजा उस ने बैंक लोंन ले कर घर लेने की ठानी। हम साथ साथ बैंक गए,बेंक वाले ने जैसे मेहमान की तरह खातिर दारीकी, सब बात ख़तम होने पर जब जॉब का आप्शन आया तो उसे देखते ही हमे लोन देने के लिये उत्सुक उस शक्स के आँखों की भोंवे तन गई। कुछ हक-पकाया और बोला थोड़ी देर आप बैठो मैं अभी आया। कुछ देर इंतजार करने के बाद जब वो लौटा तो उसने अपने चहरे पर एक कमिनी सी मुस्कान लाते हुए कह दिया सॉरी सर हम आप को लोंन नहीं दे शकते। हमारी बैंक का नियम है की हम पत्रकारों को लोंन नहीं देते। सुनते ही हम लोग बहोत चीखे चिलाये पर कुछ न हुआ,अंत मैं चुप चाप वहां से निकल आये ,उस के बाद हमने कई बेंको के चक्कर काटे हर जगह एक ही जवाब मिला शोरी और वो भी उसी कमीनि मुस्कान के साथ। और अब मेरे उस पत्रकार मित्र का घर लेने का सपना सपना ही रह गया है आज तक...( क्यूँ की वो इमानदारी से सिर्फ पत्रकारिता ही करता है) | शायद ऐसा और कईओ के साथ हुआ हो लेकिन मुझे पता नहि।

बड़ी बड़ी समाज सुधार की बाते करते और सरकार पलट देने का हौंसला दिखाने वाले पत्रकार की क्या यही इज्जत है? खुद सरकार कि बनाई बेंक भी उन पर विश्वास नहीं करती भैया तो औरो से क्या आशा रखें।
चाय या कोफी की प्याली के घुंट मारते हुए मित्रो के सामने गर्व से बोलते मैंने कई लोगो को सुना है की मैं पत्रकार हूँ बड़े बड़े लोग मेरे एक फ़ोन से कांप उठते है। क्या यही पत्रकार की इज्जत है?( ये तो उसका ही मन जानता होगा की एडिटर का फ़ोन आते ही कौन कांप उठता है.. उसकी क्या हैसियत है ये तो न्यूज़ रूम या न्यूज़ डेस्क पे जाने से ही पता चलती है) मुझे यही नहीं समझ आता की किस भ्रम मैं है ये पत्रकार। कही भी ट्राफिक पुलिस ने पकड लिया तो प्रेस का कार्ड दिखा के धमकी देते मैंने कई पत्रकारो को देखा है,और यह कह्ते भी सुना है की तुम्हारे खिलाफ लिखना होगा,( जैसे सारे न्युज चेनल की स्टोरी या न्युज पेपर की स्टोरी वो ही तय करता है।) फिर उन्ही लोगो को इमानदारी के कई सारे लेक्चर देते भी मैने सुना है। कया ऐसा दो मुहा है पत्रकार? आज पत्रकार की क्या हैसियत रह गई है.?? पत्रकार शब्द के माइने क्या है?
मैं नहीं जानता लेकिन कुछ दिनों पहले मैं एक गाँव गया था, वहां एक बूढ़े आदमीं ने पुछ लिया बेटा क्या करते हो ? अपन ने शान से कह दिया (मेरे जैसे शायद सब न कहते हो) पत्रकार हूँ! जरा भी देरी किये बिना उन्हों ने झटसे कह दिया..क्या और कोई काम नहीं मिला था.! ( ये है एक बुजुर्ग की दर्ष्टी से पत्रकार।)

मेरे दोस्त के भाई का फ़ोन आया की “जर्नालिसम” करना चाह्ता हूँ। मैंने उस से पुछा “जर्नालिसम” ही क्यूँ?(पत्रकारीता के गुणधर्म के मुताबिक।) उस ने बड़े ठन्डे कलेजे से कहा की वैसे तो एक्टर बनना चाहता था लेकिन चांस नहीं दीखता तो “जर्नालिसम” ही कर लुं। पत्रकारों के आज कल बहोत ठाठ है..!(वो शायद पत्रकारीता को ग्लेमर के नजरिये से देख रहा था। ये है जर्नालिसम मैं आने वाली पीढ़ी की नजर से एक पत्रकार.!)
( ये लोग ऐशा सोचे उसमें कोई गलत नहीं है क्यूंकि मैंने खुद कई जाने-माने पत्रकारों को गिफ्ट-वाउचर के लिए झगड़ते और कई सरकारी और गैर सरकारी लोगो की बदलियों के लिए मंत्रियो से सिफारिश करते देखा है,फिर वो इज्जत कहा से पाएंगे?)

आज कल नौकरी तन्खवाह छ्ट्नी,लोबिंग और ना जाने किन किन बलाओ से जुझते है पत्रकार,लेकिन बहार दिखावा तो ऐसे करते है जैसे सब कुछ है पत्रकार...! पत्रकार की इज्जत भी दिन बा दिन घटती हि जा रहि है,उन्हे ऐसे ऐसे शब्दो से नवाजा जाता है कि उसे मै यहां नही लिख सकता।( कई सारी बिप बजानी होगी जो यहां नही बजेगी।) इसके लिये जिमेदार कौन है ये भी मै नही जनता।
वैसे तो बहोत कुछ लिखना था लेकिन क्या करूँ मैं भी एक पत्रकार बन रहा हूँ ! पढ़ कर आप क्या सोचते हो पत्रकारों के बारे मैं जरूर लिखना वर्ना याद रखना मैं भी एक पत्रकार हूँ.....!

Thursday, May 27, 2010

लव-इन या लिव-इन..!!



लव-इन या लिव-इन का मुद्दा यूँ तो अब बहुत पुराना सा लगता है। जब से भारत मे लिव-इन रिलेसन सिप को मान्यता मिल गई है, तब से इस विषय मे लगातार चर्चा हो रही है।तरह तरह के मतभेद ,चर्चा,निर्णय सामने आ रहे है।लेकिन हाल ही मे इस मुद्दे के सुसंगत एक घटना मेरी जिन्दगी मे घटी । जिसने मुझे झगझोड कर रख दिया,या युं कहे की ये लिखने पर मजबूर कर दिया।

मैं पहले वो घटना बताना चाहता हूँ| फिर आप लोग बताईयेगा की क्या सही क्या गलत।मै फैसला आप पर छोडता हुं।

मेरे साथ एक खूबशूरत लड़का राहुल (नाम बदल दिया है) और उस से भी खुबसूरत लड़की नेहा (नाम बदल दिया है) पढ़ते थे । दोनों को मैं लगभग ७ से भी अधिक सालो से जानता था। उन को जब भी मिलता दिल खुश हो जाता ।उन दोनों को देख मैं हमेशा भगवान से प्राथना करता रहता की “हे भगवान इन दोनों की जोड़ी सलामत रखना,और ये हमेशा ऐसे ही हस्ते मुस्कराते रहे”। पढते- पढ़ते कोलेज काल समाप्त हो गया और ये दोनों आगे पढने के लिये पुणे ( स्थल बदल दिया है)चले गए।कई दिनों तक राहुल के फ़ोन आते रहे उन दोनों से लगातार बाते होती रही, दोनों साथ रहकर बहोत खुश थे। पढ़ते थे और साथ में जॉब भी करते थे । लेकिन फिर जैसे फिल्मो मैं कहानी मोड़ लेती है वैसे ही इन के जीवन मैं कुछ साल पहले कहानी ने करवट ली। दोनों ने अपने अपने घर मे शादी करने की बात कही ( दोनों एक दुसरे को अच्छी तरह जान चुके थे और एक दुसरे पर पूरा भरोशा भी था।दोनों बहोत अच्छे दोस्त भी थे,और इससे ज्यादा क्या चाहिये शादी के लिये? मुझे तो यहि मापद्डं लगता है।)

जैसे फिल्मो मैं होता है वैसे ही इन दोनों के माँ बाप ने भी रिश्तो से इन्कार कर दिया। क्यूँकी नेहा के परिवारवाले एक बहोत बड़े उद्योग घराने से थे और एक ऊँची जाती के भी थे। राहूल के घरवाले भी अच्छा खासा रसूख रखते थे पर वो एक निचली जाती के थे लिहाजा राहुल और नेहा के लगातार एक वर्षो के प्रयास के बाद भी उन दोनों की शादी की बात न बन सकी।फिर उन्हों ने भी प्रय्तन करना ही छोड़ दिया और पुणे मे साथ-साथ रहने लगे। पढाई खतम की फिर वहीँ नौकरी भी करने लगे। आज के समय मे कहे तो वो लोग “लिव-इन” मैं रह रहे थे । एक दुसरे की जरुरतो का पूरा ख्याल रखते एक दुसरे की हर चाहत पूरी करते। उन दोनों के बीच जिस तरह का रहन सहन था उस से लगता था की इतना प्यार तो कोई शादीशुदा जोडे के बीच भी नहीं होगा जितना प्यार इन दोनों के बीच था। वो एक प्यार भरे ’कपल’ की तरह जी रहे थे । मुझ से उन लोगो की बात होती रही इस से मुझ पता चलता रहा की वो लोग बहोत खुश थे।पर जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे नेहा के घरवालो का शादी करने का दबाव बढ़ता गया। नेहा के घर वालो को राहुल के साथ रहने की भी खबर लग चुकी थी इस वजह से वो और भी दबाव बना रहे थे।
एक दिन अचानक नेहा का फ़ोन आया की उसकी शादी तय हो गयी है, और मुझे जाना है उसकी शादी मे। मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। मैंने उसे बधाईया दी,मेरी बधाइया ख़तम होते ही वो जोर जोर से रो पड़ी और बताया की उसकी शादी राहूल से नहीं किसी और से हो रही है जिसे वो जानती भी नहीं और आज तक मिली भी नहीं। मैंने उस से शादी के लिए हाँ क्यूँ कहा ऐसा प्रश्न किया तो उसने बताया की उसकी माँ ने आत्महत्या करने का प्रयास किया था और नेहा को कहा की अगर वो उनके बताये लड़के से शादी नहीं करती तो वो और नेहा के पिता दोनों खुद्कुसी कर लेंगे। लिहाजा नेहा को शादी के लिए मजबूरन हाँ कहना पड़ा । फिर मैंने राहूल को फ़ोन लगया उस से बात हुई वो बिचारा भी बहोत रोया उसने कहा की ना चाहते हुए भी हमने ये फैसला लिया है। क्या करे समाज के नीति नियम और माँ बाप के आगे हम दोनों मजबूर है। कुछ दिनों मैं नेहा की शादी हो गई और उसके कुछ दिनों बाद राहूल ने भी शादी कर ली।बाद मैं राहूल ने बताया की उसे खुद नेहा ने ही ऐसा करने को कहा था। पर जो रिश्ता जबर-जस्ती जोडा गया हो, जिस रिश्ते की बुनियाद ही धमकी और डर पर रखी गई हो वो कहा ज्यादा दिन तक चल पाती?

नेहा और राहूल की शादीशुदा जिन्दगी मे भी लडाई झगडो की शुरुआत हो गई ।राहूल अपनी पत्नी मे हमेशा नेहा को ढुढंता रहा और नेहा अपने पति मे राहूल को। दिन-ब-दिन परिस्थितियां और भी बिगडने लगी मैंने नेहा और राहूल को समझाने कि बहोत कोशिश की पर कुछ सुधार नहीं आया।फिर कुछ दिनो तक मेरा उन से संपर्क नही रहा। एक दिन अचानक ही मुझे पता चला की राहूल ने जहर खा कर और नेहा ने पंखे से लटककर अपनी जान दे दी| खबर सुनते हि मै सन्न हो गया,हाथ पांव मे मानो खुन जम सा गया, आंखो के सामने दोनो के वोही मुसकुराते चहरे घुमने लगे। मैं दोनो के साथ बिताये लम्हो को याद कर खुब रोया। कुछ दिनो बाद उन दोनों के माँ बाप से भी मिला। मैं उनसे कुछ कह तो नहीं पाया किन्तु अंदर से एक आह उठी की “हो गई न शान्ति। तुम क्या आत्महत्या करते थे कर दी ना अपने लड्को कि हत्या। अब क्यूँ रो रहे हो तब मान गए होते तो ये दिन न देखना पड्ता। अरे आपको मंजुर नहीं था तो रहने देते उनको उनकी लिव-इन की दुनिया मे कम से कम हसी खुशी जिन्दा तो रहते। क्या जरुरत थी दोनों को मजबूर करने की। मार डाला ना।“

अब आप ही बताईये कि “लव-इन” या “लिव-इन”

Thursday, May 13, 2010

प्रेम यानी ....प्रेम....!!!!!



प्रेम यानी एक अन्जानी सी दुनिया मै एक प्यारे से साथी का साथ।
प्रेम यानी आंखो से बहते हुए आंसुओ को मुस्कान का रस्ता दिखाते हाथ।
प्रेम यानी भीड मे भी होता अकेले पन का एहसास।
प्रेम यानी मोत को भी मधुबन मे बदल देता अंदाज।
प्रेम यानी सारी दुनिया को बागी बनाने का जोश पालता एक मीठा सा आगास।
प्रेम यानी किसी के कंधो पर सर रखकर रोने का ईक अनोखा अंदाज।
प्रेम यानी किसी की गोद मे सोते हि दुनिया के सारे गम भुलाने-भुलने का एहसास।
प्रेम यानी जलते अंगारो पर बर्फ़ की तरह चलने की अभिलाषा।
प्रेम यानी बंजारो कि तरह गलियो-गलियो मे घुमते रहेने कि ईच्छा।
प्रेम यानी सब कुछ जानते हुए भी बार बार एक हि बात और एक ही आवाज सुनने कि महेच्छा।
प्रेम यानी घंटो तक एक ही नजर को देखते-ढुंढ्ते रहेने कि अभिलाषा।
प्रेम यानी किसी के दुर जाते ही दिल की धडकन रुकने का एहसास।
प्रेम यानी किसी को गले लगाने की दिल मे उठती एक अनोखी आवाज।
प्रेम यानी किसी के जाते ही मर जाने की चाहत।
प्रेम यानी अपनी हर पंसद और ना पसंद को कुर्बान कर के उसकी पसंद को अपना ना।
प्रेम यानी हर पांच मिनीट पर आते वो “कहां हो” वाले प्यारे से मेसेज।
प्रेम यानी घंटो तक बाते करना और कहना आज ठीक से बात नही हो पाई।
प्रेम यानी कुछ खट्टे मिठे झगडे,थोडा रुठ्ना मनाना और फिर गले लग जाना।
प्रेम यानी किसी की टिफीन से खाना खाने का बहाना करना,और खाते वक्त सिर्फ उसे ही निहारना।

प्रेम यानी ....प्रेम....!!!!!

प्रेम ये क्युं होता है प्रेम...?????

"दीलीपसिंह"

Saturday, May 8, 2010

मां ...शब्द ही काफी है...!



माँ....

ये शब्द शायद सब ने सुना,जाना माना और पहचाना है। दुनिया मैं आज के समय मैं माँ और बच्चे का ही एक रिश्ता है जो शायद कोई स्वार्थ के बिना निभाया जा रहा है।किन्तु कुछ जगह और संजोगो मे ये रिश्ता कलंकित भी हुआ है।शास्त्रों मे भी माँ को भगवान से बड़ा दर्जा दिया गया है।और माँ के बारे मैं भी बहोत कुछ लिखा भी गया है।और बहोत कुछ पढ़ा भी गया,बहोत कुछ सुना भी गया है। मैं यहाँ उन सब की बात नहीं करने वाला।मैं यहाँ बात करूँगा मैंने क्या अनुभव किया है इस रिश्ते से,मैंने काया पाया है और क्या खोया है इस रिश्ते से,

एक छोटा शा बच्चा जो इस दुनिया मैं कदम रखता है,हाथ खोले हुए और बाहें फैलये हुए जिसके पास कुछ नहीं होता,लेकिन इस धरती पर पहला कदम रखते ही वो सब से पहले जो चीज पाता है वो माँ का आँचल है। माँ नहीं होती तो दुनिया कया है शायद उसे या मुज़ जैसे को कभी नहीं पता चलता। इस दुनिया मैं कदम रखते ही मैंने सब से पहले जिस का साथ पाया वो मेरी माँ का था। लोग आज कल जहाँ एक ग्लास पानी पिलाने के पीछे भी आपना स्वार्थ देखते है,वहां मां ने अपने रक्त और प्यार से मुजे पाला पोशा है और वो भी बिना किसी चाहत के बिना किसी स्वार्थ के। शायद यही वजह थी की भगवान भी हमेशा माँ का आँचल पाने के लिए तरसते रहे। आज कल जहां लोगो को सामान्य सी गंध आते ही उलटी होने लगती है, वहीं नाक मे से बहते प्रवाही को और बहोत सी गंदकीओ को जो हर बच्चे मे शामिल थी उसे बिना मुह बिचकाए दूर करती और दूर कर रही है वो मां है। और बच्चा जैसे जैसे बड़ा होता है वैसे वैसे उस मे भी कई सारी सामाजिक बदिया आती है उसे भी जो दूर करने का जो प्रयास कर रही है वो मां है,वो भी बिना कुछ मांगे बिना मुह बिचकाए.!(आज तो अगर किसी ने सामान्य सा रास्ता आप को दिखा दिया हो तो भी उसके पीछे उसका स्वार्थ छिपा रहता है,की कल मैं रास्ता भूल जाऊंगा तो मुजे कोई रास्ता दिखायेगा।)

चलिए मेरी बात करु तो जब से मै जन्मा तब से लेकर आज तक मुजे हर कदम पर जो रास्ता दिखा रही है वो मेरी माँ है। मुझे जब मेरे घरवाले आगे न पढ़ कर कोई बिजनस करने की बात कह रहे तब सारे घर से लड़ झगड के मेरे साथ अकेले जो खडी रही वो मेरी माँ थी।जब मेरे फैसले सारे घरवालो को गलत लगते थे तब सिर्फ एक ही व्यक्ति को मेरे फैसले सही लगते थे वो मेरी माँ है। जब भी मैं एक कोने मैं जा-जा कर अकेला रोया दुखी हुआ तब सिर्फ एक ही व्यक्ति को पता चला वो मेरी माँ है। जब भी मैं किसी निर्णय मे हारा और नाकामयाब हुआ खुद पर से यकीन हट गया तभी भी एक ही व्यक्ति मेरे साथ खडा दिखाइए दिया वो मेरी माँ है। जिन्दगी के एक मोड़ पर जब मैं मरने की कगार पे था तब भी मुजे जीने की ईक नई राह दिखाई वो मेरी माँ है। आज भी जब भी मै दुखी होता हुं या अकेला पन महसूस करता हुं तब दूर बैठकर भी एक ही व्यक्ति को पता लग जाता है वो मेरी माँ है। मेरे अकेले पन का न जाने उसे कहाँ से पता चल जाता है और उसी वक्त उसका फ़ोन आ जाता..शायद इसलिए वो मेरी माँ है। दुनिया या इस दुनिया के लोग जब भी मुझे ठुकराते है या यु कहे के जब भी धिकारते या नकारते है तब उसके सही मायने बता कर, अपनी ममता का आँचल फैला कर, मेरे सारे गमो को अपना कर अपनी बाहों मैं सुलाया है वो मेरी माँ है। जिन्दगी के हर सही गलत फैसलो मैं जो मेरे साथ है वो मेरी माँ ही है।

मेरा सवाल उन सभी नौ-जवानो से है जो आधुनिकता की अंधी दौड़ मैं है,और अपने आप को आधुनिक कहलाने के चक्कर मै जिसने इस दुनिया मै आने का रास्ता दिखाया है उस माँ को ही वृधाश्रम का रास्ता दिखा रहे है.?क्या उस मां ने आप को इसी दिन के लिये पाल पोस कर बडा किया था.? उन सब से मैं पूछना कहता हूँ की आप की हिम्मत कैसे चलती है मां जैसी ममता की मुर्ति से दूर व्यव्हार करने की.? माँ जैसे भी है वैसी, उसने अपने रक्त से आपको सींचा तो है न.? आप के पैदा होते ही अगर वो आप को रस्ते पर रखाई होती तो..?? या आपके बड़े होते ही वो आपको पढाने लिखाने का खर्च मांगती तो.(भैया इस जनम मैं तो क्या अगर अगला कोई और जनम है भी तो आप अपनी माँ का क़र्ज़ नहीं चूका पाओगे.)आज नाम कमाने कि कोशिश मे हर कोइ लगा हुआ है । एक छोटा भी काम अगर कोई करता है तो उस्के पीछे उस्को कितना नाम या प्रसिध्धि मिलेगी यहि सोचता है,लेकिन मां ही एक ऐसी व्यक्ति है जो बच्चे को जन्म भी देती है लालन पालन भी करती है लेकिन नाम पिता का देती है,ऐसा बलिदान और कोई देता है क्या ? या युन कहे की दे शकता है क्या?

मेरी उन सभी नौजवानों से प्रार्थना है की मधर्स डे जैसा कोई दिन नहीं होता की उसी दिन आप अपनी माँ से प्यार का इजहार करो।भैया मधर्स डे तो हर दिन हर पल होता है।मां ने आप के और अपने परिवार के लिए जो किया है,या कर रहि है उसकी कीमत जानो और उसका मान सामान करो यही उसके लिए बहोत है। कोई कार्ड दे कर या कोई अच्छी सी गिफ्ट दे कर माँ से प्यार जताया नहीं जाता.। माँ को ये सब चाहिये भी नही, उसे चाहिये तो सिर्फ आप का प्यार और आप की खुशी । मेरी मेरे दोस्तों से गुजारिश है की माँ को सच्चे दिल से प्यार करो फिर देखो दुनिया की कोई ताकत तुम्हे हिला और हरा नहीं सकती.।

LOVE U MOM……!

Friday, April 16, 2010

मारे शु.??? (मुझे क्या.??)


मारे शु.??? (मुझे क्या.??)

ये शब्द से मेरे गुजराती मित्र शायद सब से ज्यादा परिचित होंगे।लेकिन जो नहीं जानते उन्हें थोडा समझाता हुं।
मारे शु.?का हिंदी मैं अर्थ होता है मुजे क्या.?
ये शब्द गुजरात में बहोत ही ज्यादा प्रचलित है और जगह भी प्रचलित होगा लेकिन मुझे पता नही।कभी लोग अपनी जवाबदारियो से बचने के लिए तो कभी आपना फायदा निहारने क लिए ये शब्द का इस्तेमाल करते है..लेकिन जब भी मैं ये शब्द सुनता हूँ तो मुजे बहुत अखरता है।

रास्ते मैं किसी का “एक्सिडेन्ट” हो गया है,वो बिचारा दर्द से कहराह रहा है,फ़िर भी घंटो तक अपने सेलफोन पर बतियाने वाले लोग एक सामान्य सा फ़ोन १०८ को नहीं कर शकते.? मारे शु.?? भले वो आदमी मर जाता है.?? उसके परिवार मैं भले ही एक वो ही कमाने वाला है.? मारे शु?अरे भाई कभी इस मारे शु से आगे भी सोच कर देखिये.?जवाब मिलता है.केम मारे शु? शु काम मारे फोन करवो जोइए।(क्यूँ मुजे फ़ोन करना चाहिए) खाली-पिली पुलिस के लफड़े मैं कौन गिरे भाई.?? मेरा उन सभी से सवाल है अगर उस अनजान व्यक्ति की जगर अगर आप का कोई परीजन होता तो क्या आप यही कहते.?उस वक्त तो आप समाज और देश दुनिया को बोलते हो कैसे मतलबी लोग है? पर वो ही चीज जब दुसरो के साथ होती है तो “मारे शु” हो जाती है.?

बात आज कल के सब से हॉट- टोपिक पोलिटीक्स यानि की राजनीती की।सब कहते है की भाई नेता गंदे है।पोलिटिक्स गुंडों का काम है।बस बोलना है लेकिन जब वोट की बात आती है तो फिर वो ही मारे शु.?? गर्मी बहोत है वोट डालने कौन जाये ? सब लोग गुंडे है। इन्हे वोट कौन दे.? अरे कभी खुद भी इस मैदान मैं उतर कर देखो। अगर आप के घर मैं कचरा पड़ा हुआ है और आप की कामवाली बाई नहीं आती है तो आप को ही कचरा साफ करना होगा वर्ना आप का ही घर आप को बदबू देगा.उस वख्त आप नहीं कह सकेंगे मारेशु.?उसी तरह कभी इस देश को भी अपना घर मान के देखिये। भैया कोई भी चीज हो पहले अपने फर्ज से अदा रहिये फिर अपने हक़ के बारे मैं बात करिए.! अपने आप को बदलने की शुरुआत करिए।देश और दुनिया बाद मैं बदल लेना।शुरुआत तो करिए।

और कई बाते है जैसे की कई दिनों से घर मे पानी नहीं आ रहा है। नेता से लेकर सामान्य कार्यकर तक सब को गरिया देंगे लेकिन उनके खिलाफ फ़रियाद कोई नहीं लिखवाएगा।मैं ही क्यूँ जायुं,सब के घरो मे तो पानी नहीं आता।अरे भाई दुसरो का ख्याल मत करो सिर्फ अपने घर का ख्याल करो और एक बार लीगल कम्प्लेन कर के तो देखो।देश मैं से भ्रष्टाचार कम नहीं हो रहा,लोगो के सामने तरह तरह की दलीले और भासण बाजी हो जाएगी।लेकिन जब खुद का काम कही रुकता है तो भैया जो पैसे चाहिये वो लेलो मेरा काम जल्दी से खतम कर दो। मुजे दुसरो से मतलब नहीं है।भैया मतलब नहीं क्यूँ है?आप के जैसा ही हर कोई सोचता है,और भ्रष्टाचार का राक्षस दिन-ब-दिन बढ़ता है।इस से मुझे क्या.?(मारे शु.?) किसी के झग्डे मे गवाही देने को कहो तो फिर वही मारे शु.?? भले ही उस ने सब कुछ देखा और सुना है.? लेकिन जब उन्के साथ ऐसा होता है तो उनहि का नजरीया और शब्द दोनो बदल जाते है। किसी से दो शब्द प्रेम के कहने से उसका भला हो जाता है फ़िर भी उसके लिये कहेंगे नहीं।मुजे उससे क्या.?? मुजे क्या फायदा मिलेगा.?? अरे भैया कभी बिना फायदा का भी काम कर के देखो.??

बात मेरे कुछ मीडिया वाले दोस्तों की।हर कोई एक दुसरे के चैनल के कंटेंट को बुरा बता कर अपने आप को अलायदा कहते है।लेकिन बात तो वो दुसरो की तरह ही करते है।हाल ही मैं सानिया और आई.पी.एल. पर सारी मीडिया कूद पड़ी थी। लकिन हर चैनल वाले अपने डीसकशन मैं यही चलाते थे की भैया सानिया और आई.पी.एल को इनता महत्त्व देना चाहिये की नहीं?पर भाईसाह्ब आप उन्ही पे चर्चा कर के एक घंटे का प्रोग्राम बना के साबित क्या करना चाहते है?पहले आप का चैनल खुद तो देखिये।सुबह से लेकर शाम तक आप ने भी सानिया को ही चलाया है क्यूँ.?? टी.आर.पी. का जो सवाल है?
आप सब से मैं गुजारिश करता हूँ की आप खुद ये बंध कर के तो देखिये..! हर बार दुसरो को जिमेवार बना के आप क्यूँ आपनी जिमेदारियो से बचना चाहते है? कभी कोई काम बिना फायदे के भी तो कर के देखिये।बड़ा शकून मिले गा.!!

एक मशहूर शायर ने कहा है..वो ही मैं भी दोहरहा रहा हूँ..

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही,मेरा मकसद है की ये सूरत बदलनी चाहिए,घनघोर अंधेरों ने घेरा,हर एक तन हर एक मन,ये अँधेरा चीर एक शमां तो जलनी चाहिए,

ये बात सब पर लागु नहीं होती ये बाबा दिलीपानंद के अंगत विचार है।आप को इस से असहमत होने का पूरा हक़ है।अगर नहीं भी है,तो मारे शु.???

कर के देखो.??

Tuesday, April 13, 2010

क्षमा याचना..!!


कुछ निजी कारणों से नइ पोस्ट नहीं लिख पा रहा लिहाजा दोस्तों कुछ समय के लिए अपने इस ना चीज दोस्त को क्षमा करे.!जल्द ही एक नए विषय पर और एक नयी बात लेकर आप के सामने उपस्थित होऊंगा |

Sunday, March 14, 2010

!!..ऐ मेरे दिल तु कहां जा रहा.!!


बचपन से लेकर आज तक एक प्र्श्न मेरा पिछा नही छोड रहा,आखिर मे हम लोग क्या पाना चाह्ते है.?
हमारी मन्जिल क्या है.? हमे जीवन मैं क्या बनना है?
हम लोग बेवजह एक अनजानी चीज के पिछे क्यों दौड लगाये हुए है?
और उस अनजानी चीज को पाने के लिये हम न जाने कितने सच और न जाने कितने रिश्तो की बली चढा देते है.?
मुझे हमेशा से यहि बात सताती रही की आखिर ये सब किस लिये और क्युं? एक कब्रस्तान के दिवार पर लिखी चन्द पन्क्ति ओ ने मेरे सारे प्र्श्नो का जवाब दे दिया और मेरी आखें खोल दी। आप भी गौर फ़रमाए गा “मंजिल मेरी यहि थी,बस जिन्दगी गुजार दी यहां तक आते आते.”

क्या आप को नही लग रहा की इन्ही चन्द पन्क्तिओ मे जीवन की सारी सच्चाई बयान हो गई है. इन पन्क्तिओ को पढने के बाद हमेशा से मेरा दिल मुझ से एक सवाल कर रहा है.?मेरा दिल बार-बार मुझ से पुछ रहा है की ऐ मेरे दिल तु कहां जा रहा है?तेरी मंजिल क्या है.?एक बार तो जरा नजर उठा के देख सामने “कब्र” नाम की मेह्बुबा बाहें फ़ैलाये तेरा इन्तजार कर रही है। ना तु किसी जश्न मै सामिल है और ना ही कोई तेहवार का लत्फ़ उठा पा रहा है। ईद हो य़ा होली सब कुछ कलेंडर मे ही मना रहा है। ये सब तो ठिक था पर हद तो तुने वहां कर दी की जब कीसी के प्यार से भरा शादी का न्योता तुझे मिलता है और तु उसके बच्चे होने के वक्त भी नहीं जा पा रहा है? दिल मेरा हमेशा मुझ से सवाल करता है की ऐ मेरे दोस्त तु कहां जा रहा है,ऐ मेरे दिल तु क्या चहता है?

लाखो की तन्खवा पा रहा है पर खुद के लिये फुर्सद के चंद लम्हे नही नीकाल पा रहा है.? प्रेमिका से हंस के दो मिनीट से ज्यादा बतिया नही पाता और दो मिनीट से ज्यादा फोन चले तो खुद काट देता है,लेकिन बॉस का फोन तु कहां काट पा रहा है.? तेरे दोस्तों-रिश्तेदारोंकी लिस्ट तो काफी लम्बी है पर तु कीसी के घर कहां जा पा रहा है? अब तो घर की सारी खुशियां और उत्सव ख्वाबों मे ही मना रहा है? दिल मेरा बार बार मुझ से यहि पुछ रहा है की ऐ मेरे दोस्त तु कहां जा रहा है? ऐ मेरे दिल तु क्या चाहता है? किसी को शायद ये पता नही की ये राह किस ओर जा रही है,कहाँ जा के रुकेगी ? थके हुए है हर राही और लोग, छुट्कार हर कोई चाह रहा है।लेकिन फ़िर भी ये दुनिया का बोझ उठाये चले जा रहा है? किसी को सामने धन का अंबार दिख रहा है,तो कोई सोने की चमक और हीरो की दमक के पिछे भाग रहा है,किसी को मिलियोनेर तो किसी को बिलियोनेर बनना है,पर घर मे बुढे मा बाप कौन शी रोटी खा रहे है मेरे दोस्त तु ये कहां पत्ता लगा पा रहा है?ईसी अनजानी दौड़ में वृधाश्र्मो की संख्या दिनों दिन बढ़ा रहा है|मेरा दिल बार बार मुझ से पुछ रहा है की ऐ मेरे दोस्त तु कहां जा रहा है। बहन की राखी नेट पे और नोटॊ के बंड्ल जेब मे रख कर ना जाने तु कौन से रिश्ते कमा रहा है,? ऐ मेरे दोस्त तु कहां जा रहा है.? किसी की एक छोटी सी गल्ती पे तु जोर-जोर से चिल्ला रहा है,पर नाम कमाने के चक्कर मे तु ना जाने अपनी कितनी गल्तियां छुपा रहा है?मां-बाप को चढे बुखार से तुझे कहां मतलब है,तुझे तो सनसेक्स का बुखार खाये जा रहा है।

आप ही बताईए मेरे दोस्तो क्या जिना इसी का नाम है.? दिल मेरा बार बार मुझ से यहि पुछ रहा है की ऐ मेरे दोस्त तु कहां जा रहा है?ऐ मेरे दिल तु क्या चाहता है? जिंदगी की आखरी मंजिल तो कब्र ही है, तो फ़िर तु उसे पाने के चक्कर मे इतने पाप क्युं कमा रहा है? पैसो के चक्कर मे जिंदगी के अनमोल रिश्ते क्युं गवां रहा है?

"बाबा दिलीपानंद"

Saturday, March 6, 2010

॥सब मोह माया है। जिस को जैसा समझ मै आया है॥


॥ गुरु गोविन्द दोनो खडे का को लागु पाय।
बलिहारी गुरु आप की गोविन्द दियो बताय॥

ये छंद शायद हम सभी ने कभी न कभी तो सुना ही होगा।
पर आज यही शब्दो को आधुनिक गुरु ओ ने कलंकित कर दिया है। आज यहि गुरु गोविन्द को नहीं बताते,बताते है भोग-विलास कैसे होता है,करोडो रुपये कैसे कमाये जाते है? जि्न चीजो से पहले गुरु मुक्ति दिलाने की बाते किया करते थे वो ही चीजे आज यहि गुरु खुद तो भोग हि रहे है,और साथ ही अपने शिष्यों को भी इस भोग विलाश मै साझीदार बना रहे है।
पहले बात एक सफ़ेद दाढी धारी बाबा की,जिसे अभी तक गुजरात के लोग ना ही भुल पाये है,और नेता ना ही भुना ना छोड रहे है।ये बाबा कपडे तो सफ़ेद पहनता है लेकिन दुनिया के सारे काले काम करने से जरा भी नहीं हिचकिचाता। इस के उपर संमोहन करने के साथ-साथ काले जादु करने का भी आरोप लगता रहा है,फ़िल हाल इस के उपर दो मासुम के कत्ल करने का भी आरोप लगा हुआ है,इस के लड्के पर लडकियों के साथ रास लीला रचा ने का भी आरोप लगा है,और हाल ही मै दिल्ही मै गिरफ़्तार हुए बाबा भीमानंद के सेक्स रेकेट मै भी इसके जुडे होने कि बात भी कही जा रही है।लेकिन ये बाबा ऐसे घिनौने कृत्य करने से जरा भी हिचकिचाता नहि,मीडिया को कुत्ता कह्ता है,और अगर खुद को एक महिने मै बेकशुर ना साबित कर सके तो एक मीडिया समुह के यहां चपरासी बनने की भी बात कह्ता है,(ये बात अलग है कि आज इस बात को कई महिने हो गये है)।इस पर अभी भी केस चल रहा है,लेकिन बात यहां ये है कि ऐसे गुरु बनाने से भी क्या फ़ायदा? जिस का खुद दामन पाकसाफ़ ना हो,वो दुसरो को क्या मोक्क्ष दिलायेगा?और एक हम है कि एक नहीं तो दुसरा सही कि तर्ज पर गुरुओ को दुढंते ही रहते है और मोक्क्ष की आशा मै मारे मारे एक गुरु से दुसरे गुरु के दरवाजे पर भटक रहे है,पर हमे ये पता ही नहीं कि:

क्षणमहि सज्जनसंगतिरेका । भवति भवार्णवतरणे नोका ।

( अर्थात: सज्जनो के साथ घडी भर की संगत भी भवसागर की नैया पार करा सकती है।)

स्वामी विवेकानंद जी ने भी तो यही कहा है" आप को आप का विकास अन्दर से ही साधना है,आप को कोई दूसरा सीखा नहीं सकता,आप को कोई आध्यातमिक नहीं बना सकता,आप कि आत्मा के अलावा आप का कोई गुरु नहीं है।" और एक हम है कि गुरुओ कि तलाश मैं ना जाने किस किस क्रिपालुन्नद,नित्यानंद,भीमानंद को गुरु मान भगवान को प्राप्त करने के सपने संजोते रहते है,(भाई जो सेक्स,शराब,सत्ता,सुन्दरी के अलावा कुछ सोच ही नहि सकता भला वो क्या हमे मोक्क्ष दिलाये गा)

अब बात करे क्रिपालुन्नद स्वामी की तो हाल ही मै इनका नाम उत्तरप्रदेश मै इनही के आश्रम मै हुइ भगदड के कारण काफ़ी चर्चा मै है। १ प्लेट,१ रुमाल १ लड्डु,और २० रुपये की खातीर लोगो ने परमात्मा और मोक्क्ष को भुल ऐसि दौड लगाई की ३२ लोगो ने जाने गवां दी,कीसी ने अपनी आंख का तारा खोया,तो किसी का पुरा का पुरा कुल ही बरबाद हो गया। और ताजुब की बात यह है की इस घट्ना को बाबा क्रिपालुन्नद भगवान की मरजी बताते है,कह्ते है कि " हमने इन लोगो को नहि बुलाया,ये लोग खुद ही आये थे,और म्रुतको को आश्रम की तरफ़ से एक एक लाख रुपये दिये जायेंगे "(वाह रे भगवान तेरी लीला इन्सान के जान की किमत सिर्फ़ एक लाख रुपये.!!आज कल तुभी सस्ते इन्सान बनाने लगा क्या,??इतनी जाने गई क्या फ़रक पड्ता है..स्वामी जी ने थोडि इन्हे बुलाया था वो तो खुद हि मरने आ गये थे )
और हम पागल लोग ऐसे स्वामी के पास मोक्क्ष कि आशा रख्ते है,(अरे भाई भगवान ही हमे कहता है ना की ऐसे स्वामी ओ के पास जाओ,भगवान कि मर्जी होगी )स्वामी जी ने फ़िल-हाल तो अपना पल्ला झाड लेने कि कोशिश की है,देख्ते है कितना कामयाब हो पाते है..सोचने का वक्त आप का और हमारा है। नही तो वो दिन दुर नही की ऐसे स्वामी हमारे जान की भी किमत लगा देंगे और कहेंगे की हमने तो मोक्क्ष दिला दीया।

स्वामी भीमानंद के बारे मै बात करे तो,ये स्वामी तो इन सब से भी बडे निक्ले। इनका जाल तो अमरीका से ले कर दिल्ही तक फ़ेला हुआ था,इनकी अपनी एक गुफ़ा थी,इस के अलावा और ढेर सारे कारनामे है इस बाबा के। ये बाबा सेक्स रेकेट चलाता था,इस के पास से जो डायरी मीली है उस मै कोल-गलर्स का सारा हिसाब किताब रखा जता था।(बताइए ये बाबा हमे कौन से मोक्क्ष का रस्ता दिखाते थे? फ़िल हाल तो ये बाबा जैल मै है,और अपने मोक्श का रस्ता तलाश रहे है।)

जब इतने बाबाओ की बात कि है तो,लगे हाथ स्वामी नित्यानंद कि भी बात कर ही लेते है।ये यु तो लोगो को चरित्र का पाठ पढाते थे। पर जब से इनके चरीत्र का खुलसा एक दक्षिण-भारतीय चेनल ने किया है तब से ये अद्र्श्य हो गये है। ये बात और है कि ये बाबा अपने ही शिष्य परमानंद पर आरोप लगा रहे है,कि ये सब उसी ने षड्यंत्र किया है।सच-झुठ का खुलाशा तो बाद मै होगा..फ़िल हाल ये बाबा अन्तरध्यान हो गये है। इन का नेटवर्क पुरे देश मै फ़ैला हुआ था। यहां तक की जब ये गुजरात की मुलाकात के लिये वडोदरा शहर आये थे तो यहां के मुख्यमंत्री इन बाबा कि प्रशंशा करते नही थकते थे। आज यहि मुख्यमंत्री मीडिया से मुह छिपाते घुम रहे है(आज कल के बाबाओ की यही तकनीक भी बन गई है कि बडे बडे नेता ओ और फ़िल्मसितारों को अपना भक्त बनाओ,बाकी भगत अपने आप खिचे चले आयेंगे।)

सवाल ये है कि हम एसे बाबाओ पर भरोशा क्युं कर लेते है? क्या बडे-बडे राज नेता इन के कदमो मे गिरते है इस लिये?या इस लिए के ये घंटो तक भक्ति चेनल पर प्रभु का गुणगान कर ते रहते है!या इन बाबाओ का मार्केटींग बहुत असरदार होता है?और क्या किसी बाबा पे भरोसा करने का यही मापडंड है? हम ऐसे बाबाओ पर भरोसा करते ही क्यों है?हमे चाहिये क्या.?? हमे हेरान परेशान करने के लिये जितने ये बाबा लोग जिमेदार है उतने ही क्या हम नही? कब तक हम सरकार और बाबा ओ पर आरोप लगा कर खुद के कशुर से बचते रहेंगे। हर बार ऐसा कोइ ना कोइ बाबा आता है,कीसी ना कीसी रूप मे हमे ठग जाता है।फ़िर थोडे दिन हम शोर शराबा करते है,और फ़िर भुल जाते है। आप और हम को ही ऐसे बाबाओ से बचने के कोई ठोस प्रयाश करने होगें।नही तो वो दिन दुर नही,जब ये बाबा लोग देश को और हम सभी को बेच खायेगे।

आज के ज़माने मे देश मे कितने ऐसे लोग है की जो शास्त्रों को सही ढंग से समझते होंगे? जो थोड़े बहुत लोग शास्त्रों को जानते भी है वो ब्रम्ह,माया,और प्रक्रुति जैसे कुछ ही शब्दो का प्रयोग करते है।जो दिमाग मे सिर्फ एक अस्मंजश ही पैदा करते है। आज कल के ये गुरु लोग शास्त्रों को छोड़ बाकी सभी चीजो का ज्ञान देते है।और मैं तो कहता हूँ की जो शास्त्र हर इंसान को उसके सही या बुरे वक्त मैं काम न आये वो शास्त्र ही कैसा.?और कीस काम का.? और अगर शास्त्र केवल सन्याशियों को ही समझ मैं आता हो,ऊन्ही को प्राप्त हो तो उसका क्या फ़ायदा?गृहस्थ जीवन गुजार रहे लोगो को जो धर्म सलाह सुचन न दे सके तो उस धर्म का क्या मतलब.?जो शास्त्र जब इंसान अपना सब कुछ छोड़ जंगल मैं जा बैठे,या फिर अपना गृहस्थ जीवन त्यागे तभी उपयोग मैं आता हो,तो क्या करना है ऐसे शास्त्र का,और क्या करना है ऐसे धर्म का?

मजदुर की मजदुरी,रोगीओ के रोग,दुखीओ के दुख:को दुर न कर सके वो धर्म कीस काम का? पश्च्याताप मे दलित के दारिद्र्य मे,काम,क्रोध,और विलाश के आवेग मे,जीवन के अंधकार मे,और अंत मे मृत्यु की काल रात्रि मे जो शास्त्र,या गुरु ह्रदय मैं आशा का एक दीप जला कर रास्ता न दिखा सके तो फिर कीस काम के?और अगर यही शास्त्र और गुरु का कार्य है, तो हम जैसे दुर्बलो को इनकी क्या जरुररत है.??? हम क्यों फिजूल मैं ऐसे मोक्ष और गुरु की तलाश मैं ढोंगी ओ के बस मैं हो जाते है।
आने वाले समय मैं आप को बहोत से ऐसे बाबा मिल जायेंगे जो जलते हुए कोयले पे चलेंगे,हाथ मैं से फल स्वरूप प्रसाद देंगे।किसी की बीमारी सिर्फ हाथ फिरा कर मिटा देंगे।एक दिन मैं पैसे दुगने कर देंगे। और न जाने कौन कौन से चमत्कार करेंगे.?पर क्या कभी हमने ये भी सोचा है की क्या राक्षस चमत्कार नहीं कर सकते..??

जाते जाते गीता का ही एक श्लोक आप सब के लिए है.शायद ये लेख के अनुरूप भी है इस लिए लिख रहा हूँ,.

कलैब्यं मास्म गम;पार्थ नैत त्वययुपपद्यते ।
क्षुद्र ह्रदयदौर्बल्यम त्यकत्वोतिष्ठ परंतप॥

अर्थात:
( हे पार्थ तुम ये ना-मर्दानगी छोड़ दो,तुम को ये शोभा नहीं देता है,ह्रदय की इन हिन् निर्बलताओ का त्याग कर,हे परंतप तुम खड़े हो जाओ.)

॥ये लेख स्वामी दीलीपा नंद द्वारा लिखा गया है॥

Friday, February 26, 2010

कविता का संघर्ष..


"एक लड़का हो जाता तो तेरा कुल चल जाता" ये बात शायद शहर के लोगो ने कम सुनी है,लेकिन भारत के गाँव मैं ये बाते आज भी आम है,भले ही सुनीता विलियम्स चाँद पे कदम रख आई है, और दुनिया उनके कदम चुमते और प्रशंसा करते नहीं थक रही, फिर भी कहीं न कही लडको को कुल चलाने वाला कुल दीपक माना जा रह है, भले ही वो डकैती कर रहा है,चोरी कर रहा हो,(भाई कुल का नाम तो ऐसे भी तो रोशन होता है),

आज मैं यहाँ ऐसे कुलदीपक की बात नहीं करने जा रहा मैं यहाँ बात करने वाला हूँ एक ऐसे कुलदीपक की की जो एक वख्त उसी के माँ बाप बुझा देना चाहते थे,.और आज वो ही कुल दीपक उन के घर को उजाला दे रहा है,उनके नाम को देश दुनिया मैं मशहुर कर रहा है,फर्क सिर्फ इतना है की वो लड़का नहीं लड़की है, जिसका नाम माता पिता ने प्यार से कविता रखा है,जिसे आप ने अक्सर दूरदर्शन के धारावाहिक कसक मैं साक्षी के रूप मैं देखा होगा.स्टार प्लस की एक बहोत ही मशहुर धारावाहिक साईं बाबा मैं आप ने तातिया की पत्नी के रूप मैं देखा होगा...इस के आलावा जाने मने कई धारावाहिकों मैं कविता ने आपनी अलग ही छाप छोड़ी है...चलिए देखते है कविता आज जहा पहोची है,वहां तक पहुचने के लिए उन्हों ने कितना संघर्ष किया है..

कविता का जनम राजस्थान के शहर जयपुर से करीबन १५० किलो मीटर दूर बंदी कुई मैं हुआ..उसके जनम क पूर्व ही उसके इस धरती पे आने और न आने मैं प्रश्न चिन्ह लग गए थे.कविता की दादी चाहती थी की कविता का जनम न हो क्यूँ की पहले से ही घर मैं और २ लडकियां थी,कविता की माँ भी मजबूर थी वो आपनी सास की बात मान अपना बच्चा गिराने हॉस्पिटल पहोच गई,फिर जैसे फिल्मो मैं होता है वैसे न जाने कहाँ से कविता की माँ को हुआ की नहीं मुजे इस बच्चे को जन्म देना ही है और वो हॉस्पिटल से वापस आ गई.(कविता की कहानी भी जैसे वो धारावाहिकों मैं मोड़ लेती है वैसे ही मोड़ ले रही है. कविता जन्म से पहले ही मरने जा रही थी लेकिन एक चमत्कार ने ही उसे बचा लिया.)
बस यहीं से कविता का सफ़र सुरु होता है.कविता के बाद उसके और दो भाई हुए,लेकिन कविता उन सब से अलग और सब से अनोखी थी,

कविता का जनम भले ही एक छोटे से गाँव मैं हुआ था लेकिन उसकी परवरिश और पढाई लिखाई.भारत के आर्थिक राजधानी मुंबई मैं हुई है, कविता ने microbiology and बायो केमिस्ट्री से डबल मास्टर किया है,(नाम पढने मैं जितना मुश्किल है,उतनी ही उसकी पढाई भी होगी..) कविता का संघर्ष पढाई के साथ नहीं ख़तम होता वो जब पढ़ रही थी तब भी उसकी महगी किताबो को लेकर अक्सर उसे ताने सुनने पड़ते थे,लिहाजा उसने किसी पर बोज नहीं बन ने का फैसला किया और अपनी पढाई का खर्च खुद उठाया. दिन को पढाई और रात को कॉल सेंटर मैं जॉब.(क्या कोई कुल दीपक यानि की लड़का ऐसा करता.?)
कविता का संघर्ष यही ख़तम नहीं होता...उसे अपनी परीक्षा देने के बाद एक और परीक्षा देनी पड़ी. बी.एस.सी. के अंतिम साल परीक्षा मैं सफल होने बावजूद उसका परिणाम फ़ैल आया..कविता को यकीं था की वो परीक्षा में पास है लिहाजा उसने अपनी सच्चाई साबित करने की ठानी,परीक्षा बोर्ड के खिलाफ एक साल तक उसने लड़ाई लड़ी,आखिर कार कविता ने विजय हासिल की और उसका परिणाम पास निकला..!
कविता के संघर्ष गाथा यहीं ख़तम नहीं होती,उसने बचपन से ही कुछ अलग करने की ठानी थी लिहाजा सायंस की विद्यार्थिनी होने के बावजूद एक्टिंग को अपना कैरियर बनाने की गांठ बाँध ली.पढाई ख़तम करने के एक साल तक संघर्ष करने के बाद पहला ब्रेक स्टार प्लस की साईं बाबा सीरियल में मिला.तब से कविता ने पीछे मुड के नहीं देखा एक बाद एक सफलताएँ हासिल की.

दिनरात संघर्षो की बिच घिरी कविता ने हर संघर्ष को हँसते हुए लिया.और हर मुश्किल को पार कर अपनी मंजिल पाई.कविता आपने संगर्ष को कुछ इस तरह बयाँ करती है."मैं हमेशा से इश्वर मैं आशथा रखती हूँ,मैं खुद एक धार्मिक इन्सान भी हूँ.मेरे साथ जो भी हुआ,या हो रहा है वो सब अच्छा ही है,हर संघर्ष से मैं ने कुछ न कुछ तो सिखा ही है,और आगे भी सीखूंगी..इन संघर्षो की वजह से मैं अपने आप को एक विशेष इंसान महसूस करती हूँ."

कविता आज चामुंडा फिलिम के साथ कम कर रही है,इसके इलावा स्टार प्लस की शकुन्तला, एन.डी.टी.वी. की ज्योति,सोनी टी.वी.की सी.आई.डी. और कलर्स टी.वी.की बालिका वधु,और स्वामिनारायण जैसे धारावाहिकों मैं कम कर चुकी है.

सदियों से ये परंपरा चली आ रही है की हम देवी ओ को तो पूजते है लेकिन वो ही देवी सामान लड़की जब अपने ही घर मैं माँ,बहन या पत्नी के रूप मैं आती है तो उनसे बदसलूकी का एक भी मौका नहीं छोड़ते .(सब की बात नहीं है..कई लोग ऐसा नहीं करते फिर भी ज्यादातर लोग मेरी बात से सहमत होंगे)..
आज कविता के रिश्ते दार और घर वाले कविता पे गर्व करते है,(ये वो ही लोग है जो एक दिन कविता के जनम पे ही एक सवालिया निशान लगा दिया था)..

कविता आज मशहुर है इस लिए उनकी कहानी मैं उनकी जुबानी सुनपाया(मशहुर होने के बाद बहोत कम लोग सच्चाई भी बताते है.) बाकि और ऐसी न जान कितनी मासूम लडकिया जनम से पहले ही भगवान को प्यारी हो जाती है.(सिर्फ कुलदीपक पाने की आशा मैं)शायद वो जनम लेती तो मैं या मेरे जैसा कोई और उस लड़की की महानता क गुणगान गाते नहीं थकता.
मेरी ये आर्टिकल पढने वाले सभी से गुजारिश है.की कुलदीपक पाने की आशा मैं लडकियों को इस पुर्थ्वी पर जनम लेने का अधिकार न छीने.न जाने उन मेंसे कौन सुनीता विलियम या कविता शर्मा बनजाये..और आप के कुल को आप के कुलदीपक से ज्यादा उजागर करे..!!

Friday, February 19, 2010


सनसेक्स रोज नया हाइ और लो बनता है साथ मैं कई लोगो की धड़कने भी बढ़ता और कम करता है..!!

शायद ये बात सब लोगो को पता है ,लेकिन आज कल इसी संसेक्स के इस व्यापर मैं डूबे लोगो को और सब से अधिक नौ जवानों को एक नई परेशानी यानि टेनसन दी है.! सुबह एक घंटे का टाइम जल्दी हो गया है,शायद इसी लिए इन सब की जीवनकी नैया असत व्यस्त हो गई है,कोई रोज सुबह गाय को चारा डाल के शेर मार्केट मैं पैसे कमाने के सपने संजोता था, तो कोई घर पे दूध लाके चाय की चुस्की के साथ बीवी के प्यार की अनोखी मुस्कान के स्वाद चखता था,लेकिन जब से ये समय सुबह ९ बजे का हो गया है तब से न तो गाय मिलती है न ही दूध लेन का टाइम मिलता है.? मिलता है तो सिर्फ गुस्से से लाल हुई बीवी के चहरे की मुस्कान ! क्यूँ की अब दूध लेके उसका पति नहीं आता,.और गाय लेके खड़ा होने वाला ९.३० से पहले नहीं आता.(पति अब पुन्य नहीं करता ) बच्चो को स्कूल छोड़ने भी नहीं जाया जाता...नफे मैं बाजार रोज रोज अप- डाउन कर के मुसीबतों मैं बढ़ोतरी कर रहा है..

जैसे इतनी तकलीफे कम हो उसमैं अब एक और चीज की बढ़ोतरी होने जा रही है, सुनाइ दिया है की अब शनिचर को भी ट्रेडिंग होगी..(भला ये शेयर मार्केट वालो ने शादी नहीं की होगी.>????)हर रोज उनके नए नियम शेयर मार्केट के साथ जुड़े लोगो की लाइफ मैं नए हाई लो बना रह है..

शेयर मार्केट मैं ट्रेडिंग करने वाले रमेश भाई का कहना है की "जब से सुबह का समय हुआ है बीवी सही से जवाब नहीं देती..रात को जल्दी सो जाना पड़ता है सुबह जल्दी उठाना पड़ता है..अब हमारी सेक्स लाइफ भी इसी संसेक्स ने दोजख बना के रख दीया है.."
रात को बीवी या गर्ल फ्रेंड को लेके लॉन्ग ड्राइव् पे नहीं जा सकते, क्यूंकि सुबह जल्दी उठाना है..अगर जाते है तो बजार मिस हो जाता है और नहीं जाते तो बीवी या गर्लफ्रेंड मिस हो जाती है..( कोई तो समजे नौजवानों की ये मुसीबात)अब तो वीक एंड पर भी सवालिया निशान खड़ा हो गया है...अगर शनिचर को ट्रेडिंग सुरु हो गई तो शेयर मार्केट से जुड़े नौजवानों की शादी सुदा जिन्दगी और उसमें काम करने वाले कुवारों की लव लाइफ दोनों ही खतरे मैं? एक ट्रेडिंग हाउस मैं कम करने वाले सन्नी का कहना है की "भाई हर शनिचर और इतवार को मैं अपनी गर्लफ्रेंड को लेके घुमने जाया करता था लेकिन जैसे ही मैंने उसे बतया की अब तो शनिचर को भी बाजार खुलेगा तो उसने मुजसे बात करना ही बंध करदिया"
शेयर मार्केट ने कई ओ की जिन्दगी बनाई है और कई ओ की जिन्दगी बिगाड़ी है..लेकिन उनके पीछे शेयर मार्केट मैं आने वाले उतार चड़ाव जिमिवार थे लेकिन अब लोगो की लाइफ बन ने और बिगड़ने के पीछे शेयर मार्केट का समय शायद जिमीदार होगा...
आने वाले दिनों मैं शायद इसी शेयर मार्केट के समय को लेकर शादीयां टूटने लगे और प्रेमी बिछड ने लगे तो आश्चर्य चकित मत होइए गा..भाई शेयर मार्केट मैं अब सब कुछ पोसिबल है...

जाते जाते थोड़ी शेयर मार्केट और क्या क्या गम देता है वो भी शुन लीजिये ..
१] लगातार कम्पूटर के सामने बैठने से आँखे कमजोर होती है..
२]शरीर अकड़ जाता है..!!
और न न जाने कितनी बीमारिया इस ने दी है..लेकिन लोग इसे छोड़ नहीं सकते क्यूंकि फास्ट मनी विधआउट महनत जो है..
शेयर पर सेर : इस शेयर न दिए न जाने कितने गम..समय बढ़ा के किया सेक्स लाइफ को कम और आगे न जाने कितने दिखायेगा ये रंग..!!

"घर को आग लगा दी घर के ही चिराग ने" जी हाँ जहां एक और राहुलगाँधी पुरे देश मैं कांग्रेस की बहुमति लाने के सपने देख रहे है और वो सपना पूरा करने की जी तोड़ कोसिस भी कर रहे है वही दूसरी और कोंग्रेस के सब से कमजोर कहे जाने वाले राज्य गुजरात मैं कोंग्रेस का हाल और भी बुरा होता जा रहा है.

गुजरात कोंग्रेस मैं फिल हाल घमशान छिडा हुआ है..जैसा हाल केंद्र मैं भाजपा का है वोही हाल कांग्रेस का गुजरात मैं है.गुजरात मैं काग्रेस प्रमुख बन्ने की लडाई तेज हो गई है...एक और दलित कार्यकरो ने मोर्चा खुला हुआ है है वही दूसरी और लघुमति कांग्रेसी कार्यकरो ने कांग्रेस सिर्सस्थ नेता गिरी के खिलाफ अपनी तलवार तान दी है..

कांग्रेस के दलित कार्यकर लम्बे समय से उपेक्षित होने का आभास कर रहे हैं..कांग्रेस के दलित कार्यकर तो यहाँ तक आक्षेप कर रहे है की उन्हें सिर्फ चुनाव के वक्त याद किया जाता रह है..चुनाव ख़त्म होते ही उन्हें दूध मैं गिरी माखी की तरह निकाल बाहर फैंक दिया जाता है.. अब कोई दलित कांग्रेस से संतुस्ट नहीं है..यही वजह है की दलितों ने गुजरात कांग्रेस की खिलाफ बगावत कर दी है..आज जगह जगह दलित समेलन कर के गुजरात कांग्रेस मैं दलितों को हो रहे अन्याय के बारे मे बताया जा रह है.आने वाले दिनों मैं ये बगावत और भी बुलन्द करने का आह्वाहन ये दलित कार्यकर कर रहे है..कांग्रेस के ही एक दलित नेता बताते है की ऐसा कुछ भी नहीं है.. किन्तु कांग्रेस के ही एक विधायक हैं जो कांग्रेस आलाकमान के बहुत नजदीक माने जाते है वो पक्ष प्रमुख बनना चाह रहे है सो उन्हों ने ही दलितों को भड़काया हुआ है..वो गुजरात कांग्रेस प्रमुख के तौर तरीको से नाराज है और खुद को उपेक्षित मान रहे है..

यहाँ ये बात बहुत ही ध्यान आकर्षक है की राहुल गाँधी दलितों को अपने पक्ष मैं लाने की मुहिम छेडे हुए है,वही गुजरात कांग्रेस मैं दलितों ने बगावत की है..बात जो भी हो लेकिन वार सोच समज कर किया गया है की आन्दोलन छिड़ते ही कांग्रेस का आलाकमान मुस्किल मैं आजाये.

अब बात लघुमति ओ की,, सो उन्हों ने भी कांग्रेस आला कमान के खिलाफ बगावत की है यूँ की मुस्लिम वोटर्स बरसो से ही कांग्रेस से जुड़े हुए रहे हैं सो उनकी बगावत भी बहुत महत्त्व पूर्ण है..यहाँ भी आक्षेप वो ही हो रहे है के कांग्रेस के कुछ विधायको ने ही उन्हें भड़काया हुआ है..बात जो भी हो लेकिन लघुमति कांग्रेसी कार्यकारो की एक बात तो सही है की लम्बे समय से कोई मुस्लिम नेता या कार्यकर गुजरात कांग्रस के शीर्ष पदों पे नहीं है..

कांग्रेस आलाकमान भी इन दो तबको की बगावत से सदमे मैं है सो उन्हों ने डेमेज कण्ट्रोल के लिए आननफानन मैं सुधाकर रेड्डी को गुजरात भेज दिया था लेकिन वो भी सब कुशल मंगल का राग आलाप के चले गए.. लेकिन गुजरात कांग्रेस मैं कुछ कुशल मंगल नहीं है..दलित और लघुमति बगावत तो एक जरिया है असल बात कुछ और है.. गुजरात कांग्रेस दरअसल ४ खेमो मैं बाटी हुए है.एक मूल कांग्रेसी खेमा है दूसरा जनतादल खेमा है तीसरा शंकर सिंह का खेमा है और ४ नवयुवान खेमा है, ये ४ खेमे अपनी अपनी और कांग्रेस को खीच रहे है..गुजरात कोंग्रेस के नेता जायदातर कोई न्यूज़ चैनल के स्टूडियो मैं दिखाई देते है या फिर कोई जाने माने उद्योगपतियो की पार्टियों मैं.और कांग्रेसी कार्यकर अपने अपने गुट के नेता की पगचम्पी करने मैं लगा हुआ है.किसी को गुजरात की समस्या गुजरात के विकास की और ध्यान नहीं देना बस नेता ही बनजना है.. गुजरात कांग्रेस के नेता इ.सी चेम्बर मैं बैठ के मिनरलवाटर के घूंट लगाते-लगाते गुजरात के गाँव मैं हो रही पानी की समस्याओ के बारे मैं सोच रहे है..तो कोई कांग्रेसी नेता अपनी आलाकमान से नजदिकिया बढ़ने मैं लगा हुआ है..अब ऐसे मैं कांग्रेस का भला कैसे हो शकता है.और गुजरात की जनता भी उनके बारे मैं कैसे सोचे.?

किसी को गुजरात मैं भाजपा को हराने की नहीं पड़ी सब को सताधिस ही होना है.किसी को कार्यकर नहीं बनना.. अब ऐसे मैं नरेन्द्रमोदी हेट्रिक न ही करे तो अचम्भा होगा.. गुजरात बीजेपी को बीना कुछ किये ही जित पे जित मिल रही है,और मोदी जी के गुण गान गए जा रहे है, सच बात तो ये है की गुजरात मैं कोई मजबूत विपक्ष है ही नहीं लिहाजा गुजरात की जनता जाये तो जाये कहाँ.बुरा तो हर कोई है पसंद हम को जो कम बुरा हो उसे करना है.. सो गुजरात की जनता भी वो ही कर रही है...

जब तक गुजरात मैं कोई मजबूत विपक्ष नहीं होगा तबतक गुजरात मैं मोदी जी चैन की बंशी बजाते रहेंगे.. फ़िलहाल देखना ये होगा की गुजरात कांग्रेस मैं फिलहाल सुलग रहे इस ज्वालामुखी से कांग्रेस मैं कोई नया प्राण संचार या बड़ा बदलाव होता है की जो गुजरात भाजप को मुश्किल मैं डाल दे,या फिर उ.प. की तरह यहाँ भी राहुल बाबा को ही अवतार लेना होगा...!!!!!!!!!

Thursday, February 18, 2010


विषय : शंकर सिंह वाघेला और सुरेश मेहता का राजकिय संग्राम

"प्रलय और निर्माण दोनों शिक्षक की गोद मैं खेलतें है"..चाणक्य की ये बात आज गुजरात के दो प्रखर राजनीतिज्ञों को याद आ रही है या याद करना उनकी मज़बूरी बनगई है..वो शिक्षको के बल बूते अपनी राजकरन की नैया पार लगाने के सपने सजोय रहे है .. ये दोनों गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री रह चके है ,लेकिन दोनों के व्यव्हार और आचरण एकदूसरे से एक दम विभिन् है..एक हर कदम और चाल चलने से पहले दस बार सोचता है तो दूसरा बिना सोचे समजे ही युद्घ के मैदान मैं कूद पड़ता है.लेकिन समय की मज़बूरी कह ले या अस्तित्व की लडाई आज ये दोनों एक दुसरे के साथ उठ खड़े हुए है.एक को अपनी राजनीती चलानी अहि तो दुसरे को अपना अस्तित्व टिकाये रकहना है..इन मैं एक है सुरेश मेहता और दुसरे शंकर सिंह वाघेला "बापू".

सुरेश मेहता का भी एक जमाना था,कच्छ उनका गढ़ मन जाता था. या यूँ कह ले की कच्छ की राजनीती उन्ही के इर्द गिर्द घुमती थी..किन्तु २००२ के गोधरा कांड के बाद या नरेन्द्रमोदी के सुर्वन काल के सूर्योदय के वक्त उन्हों ने सेकुलारिसम का राग आलाप..और उनके सारे सुरताल बिगड़ गये या बिगड़ने की सुरुआत हुई..इसी कारण खुद उन्ही के कुछ साथी दारो ने या कट्टर भाजपा समर्थक कहे जानने वाले लोगो और वोटरों ने उनसे अपना मुख विमुख करलिया.

खुद भाजपा के ही लोगो ने मिलके उनको हराया.. ये उनके जीवन का सबसे बड़ा सदमा था.एक ऐसे व्यक्ति की हार थी जो केशुभाई पटेल के वक्त नंबर २ बना हुआ था.आज उसका अस्तित्व गुजरात के राज कारन मैं दूर दूर तक नहीं दिकाही दे रहा.शायद इसी लिए अपने वजूद को कायम रखने के लिए एक समय उनके कट्टर विरोधी कहे जाने वाले शंकर सिंह वघेला के साथ उन्हों ने अपना हाथ मिले है..कहते है की गुजरात के भविष्य के लिए हाथ मिलाया है.(किन्तु यहाँ प्रश्न ये है की वो गुजरात के भविष्य के लिए उठ कहदे हुए है या खुद के .??)

अब बात शंकर सिंह वघेला यानी बापू की
शंकर सिंह वघेला को हाल ही मैं हुए लोक सभा चुनाव मैं हर का सामना करना पडा या हराया गया. उनकी हर के पीछे गुजरात के ही एक बड़े भाजपा नेता और कांग्रेस के एक बहुत ही कदावर कहे जाने वाले नेता का हाथ मन जा रहा है.. बात जो भी हो वो हारे ये सच है.. और आज कल वो फ्री हो गए तो उन्हें गुजरातवासी ओ की याद आई है.. या याद करना पद रहा है.. और कोई कम भी तो नहीं बचा उनके पास..वो गुजरात के मुख्य मंत्री रह चुके है.. गुजरात कांग्रेस के प्रमुख और फिर कबिनेट प्रधान के पदों को अपना बना चुके है.. लेकिन आज एक बार फिर उनका पुराना राजनैतिक दुशमन उन पे भारी हो गया है. और वो गुजरात मैं अपने शाशन के शानदार ८ सालो की जयंती मन रहा है. .. ये बात शंकर सिंह बापू को खूब खल रही है लिहाजा उन्हो ने शिक्षको की समस्या को लेकर एक जनांदोलन छेडा हुआ है..वे शिक्षको की नोक से वे मोदी पर निशाना साध रहे है.जब की कांग्रेस पक्ष ही उनके साथ खडा दिखाई नहीं दे रहा है.. वे जब से कांग्रेस मैं आये है तब से मूल कांग्रेसी कहे जाने वाले लोगो ने उन्हें नहीं स्वीकारा..अभी भी ये लोग उन्हें भाजपा कुल का मन रहे है जो कभी भी विस्वासघात कर शकता है..शायद इसी लिए उन्हों ने भी मोदी के खिलाफ लदे जनांदोलन मैं कांग्रेस का साथ लेने की बजाय सुरेश मेहता का साथ लेना उचित समजा

मोदी आज गुजरात मैं सर्वे सर्व बन गए है ये बात शायद उनको राज़ नहीं आ रही, आये भी कैसे उनका दुसमन गुजरात मैं फल फुल रहा है और आज वो वक्त आया है की उनको अपनी राजनीती खात्म्होती दिख रही है.. बात जो भी हो लेकिन एक स्वस्थ विपक्ष अछे लोकशाही की मांग रही है केंद्र मैं भले ही कांग्रेस मजबूत और भाजपा मजबूर najar आ रही है लेकिन वो ही स्थिति आज गुजरात मैं कांग्रेस की है कांग्रेस मजबूर और मोदी मजबूत नजर आ रहे है ऐसे समय मैं शंकर सिंह वघेला और सुरेश मेहता का उठ खडा होना शायद गुजरात की लोकशाही के लिए अच्छा हो.. देखना यह होगी की ये दोनों पाने प्रयास मैं कितने सफल हो पते हैं.

फिल हाल तो शंकर सिंह वाघेला और सुरेश मेहता का रेडियो एक ही स्टेशन पे एक ही धुन बजा रहा है.. अगर उनकी धुन लोकप्रिय हुई तो गुजरात के मुख्यमंत्री की रातो की नींद अवश्य हराम हो जायेगी...गुजरात वासी तो फ़िलहाल गुजरात मैं अभी गरम हो रहे राजकीय माहोल का मजा लेना चाह रहे है.. उनको भी देखना है की गुजरात मैं शंकर सिंह की बापू गिरी चलती है की मोदी जी की मोदी गिरी....