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Tuesday, August 24, 2010

|| चोला टी.आर.पी. का ||



सुबह के लगभग ७ बज रहे थे हम लोग गुजरात और मध्यप्रदेश के बोर्डर रतनमहल जाने के लिए निकल चुके थे| वैसे सुबह-सुबह कई सारे मेसेज आते है लेकिन एक मेसेज जो गुजरात के ही एक छोटे से प्रान्त उंझा से आया था उस ने मेरा ध्यान खीचा|

मैंने मेसेज पढ़ा और तुरंत ही मेसेज करने वाले मेरे मित्र को फ़ोन लगाया। सामने के छोर से वो लगातार बोले ही जा रहा था उस की बात जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी वैसे-वैसे मेरे रोंगटे खड़े होते जा रहे थे | फोन करने वाला मेरा मित्र बता रहा था की कैसे दो पत्रकारमित्रो ने एक एक्सक्लुसिव घटना के लिए एक कहानी रची थी जिस मे उन्हों ने एक निर्दोष व्यक्ति की जान ले ली।

बात कुछ यों है की उत्तर-गुजरात के ही एक इलाके मेहसाना से कुछ किलोमीटर दूर उंझा नामक एक शहर है जो ज्यादातर अपने “जीरा” निकास और विकास के लिए जाना जाता है। हाल ही मे हुये उमिया महोत्सव की वजह से भी उंझा का नाम सारे विश्व मे गूंजा था | फिलहाल एक बार फिर उसका नाम पुरे देश मे गूंजा है अच्छी वजहो से नहीं बल्की देश के चौथे स्तम्भ की गलत कारनामों की वजहों से। चलिए विषय भटकाव हो रहा है मुख्य बात पर आते है, बात उंझा की है दो पत्रकार मित्रो को उनके डेस्क से लगातार कुछ नया या एक्सक्लुसिव देने के लिए फ़ोन आ रहे थे। वो भी लगा तार दबाव से तंग थे। सो कुछ नए की तलाश मैं थे। ऐसे मैं उनको एक व्यक्ति का मदद के लिए फ़ोन आया( जो अपने परिवार के प्रोपर्टी के झगड़ो की वजह से परेशान था| उन पत्रकारों के दिमाग की काली घंटी बज उठी| जो उन्हें सही दिशा मे बजानी चाहिये थी वो गलत दिशा मे बजायी|

उन्हों ने उस व्यक्ति को इक विचार सुझाया की ऐसे कुछ नहीं हो पायेगा हम कह रहे है ऐसे करो तो तुम्हारी कुछ न्यूज़ बनेगी और तुम्हारा काम हो जायेगा | उन्हों ने उस व्यक्ति को सुझाव दिया की तुम उंझा पुलिसथाने जा कर आत्मविलोपन की धमकी दो और न माने तो खुद पर मिटी का तेल छिडक लो और माचिस लगा लेना हम लोग वहीं रहेगे तुम जैसे ही थोड़े जलोगे हम लोग आकर बचा लेंगे| वो बिचारा आफत का मारा उन की बातो मे आ गया और वैसे करने को तैयार हो गया| हाथ मे मिटी का तेल लिए पहोच गया पुलिसथाने उसने उन पत्रकारों ने जैसी स्क्रिप्ट टाइप की थी बिलकुल वैसे ही किया | उसे कहाँ पता था था आज कल के पत्रकारों के बारे मे,और आज के पत्रकारिता के बारे मे | उस ने जैसे ही मिटी का तेल अपने जिस्म पर छिड़का की हालफिलहाल मगरमच्छ की तरह मुह फाड़े खड़े पत्रकारो के केमरे रोल हो गये। उन्हों ने उस आदमी को दगा दिया उसे बचाने की बजाय सुट करने लगे थोडी देर तक वो जलता रहा जब उन दोनों ने सुट करना बन्ध नहीं किया तो अगल बगल के कुछ लोग दौड़े और उसे बचाने के प्रयास किये | उसे जबरन हॉस्पिटल पहोचाया लेकिन जबतक वो हॉस्पिटल के दरवाजे पर जा कर जीवन के लिए दस्तक देता तब तक उस के प्राणपंखेरू उड़ चुके थे| और उन पत्रकारों की स्टोरी फाइल हो चुकी थी|
ये लिखे जाने तक जिन पर उस मासूम की जान लेने का आरोप है वो “पत्रकार” फरार है। पुलिस ने उन दोनो पत्रकारो के खिलाफ़ आत्म हत्या के लिये उक्साने के आरोप लगाते हुए एफ़.आइ.आर दर्ज कर ली है। और इस घटना के प्रत्यक्षदर्शीओ ने भी अपने अपने बयान दर्ज करवा दिए है।
अब इस घटना के दस दिन बाद चर्चा हो रही है की क्या ये गलत था या वो गलत था|( शायद पहले हमारे मीडिया के बोस लोगो को ईस मे टी.आर.पी. ना दिखी हो जो अब दिख रही है।) जो भी सही गलत हो उसका फैसला तो हमारी न्यायपालिका करेगी लेकिन उस बिचारे का क्या जिस ने एक एक्सक्लूसिव मैं अपनी जान गवा दी? इसके पीछे क्या सिर्फ वो ही दो पत्रकार जिमेदार है?? या फिर टी.आर.पी. की अंधी दौड़ मैं सामिल हमारे उच्च पदस्थ सारे बॉस जवाबदार नहीं है ? हर दिन कुछ नया हर दिन कुछ तडकता भड़कता??? कहा से आयेगा हर रोज तड्कता भड्कता? ऐसे ही आयेगा ना। अगर अब भी हमारे टी.आर.पी. वान्छुक मीडिया मंधाताओं की आँख न खुली हो तो आने वाले दिनों मे ऐसे किस्से आम हो जायेंगे | उन पर भी उन्ही चैनल्स पर आधे घंटे का कोई प्रोग्राम बनेगा और बस जवाबदेही ख़तम|

“चोला टी.आर.पी. का है, हे राम, अभी सभल जा हे मेरे यार,नही तो एक दिन आयेगी सबकी बारी।”

यहाँ पर लिखी सारी बाते घटनास्थल के लोगो द्वारा बताई गयी है ये गलत भी हो सकती है लेकिन उस निर्दोष ने जान गवांइ है,ये सच मिटाने से भी नहीं मिटेगा|

Saturday, August 7, 2010

बोये पेड बबुल का 'आम' कहा से होय.??



आप कोई भी समय कोई भी चैनल लगा लीजिये कहीं न कही आप को लुट,बलात्कार, खून, चैन स्नेचिंग की घटना पे डायन की तरह से जोर जोर से चिलाते या मिमियाते न्यूज़ एंकर दिख ही जायेंगे। कोई भी अख़बार उठा लीजये आप, तो आप को फ्रंट पेज पर लूट बलात्कार से भर हुए कोलम मिल ही जायेंगे। क्या आप ने कभी इस के पीछे क्या और कौन जिमेदार है ये सोचने की कोशिश की है( मैं आधे घंटे का प्रोग्राम भरने की बात नही कर रहा। ) कुछ दिलो दिमाग से सोचने की बात कर रहा हूँ.|

एक ऐसी सोच की जिस से समाज मे और उस तकलीफ मे कुछ सुधार आ सके। आप Mtv लगा लीजये कभी न कभी आप को स्टंट मेनिया का प्रोमो या प्रोग्राम दिख ही जायेगा,जिस मैं नव युवा लड़के लकडिया आप को जान जोखिम मे डाल कर स्टंट करते दिख जायेंगे। और उन जोखिमो का प्रमोसन भी खूब प्रभावी ढंग से किया जाता है। फिर बारी आती है हमारे न्यूज़ चेनलो की हर रोज एक पैकेज बन जाता है, दिल्ही की सड़क पर छाया बाईकर्स का आतंक, फला फला जगह पर हुआ “हिट एन्ड रन केस” ( भैया मैं पूछता हूँ की एक तरफ आप स्टंट मेनिया कर के नौ जवानो को उकसा रहे हो दूसरी तरफ जब वो आप के उकसावे पर पूरी तरह तैयार हो जाते है तब आप उन्ही पर खबर बना देते हो|वाह रे हमारा मीडिया समाज)

सिगरट और तम्बाकू का आविष्कार किस ने किया ? हम ने| फिर उस पर बड़े बड़े चित्र भी हमने ही लगाये की सिगरेट पीना स्वास्थ के लिए हानी कारक है। कैंसर भी हमने पैदा किया और उससे बचने की दवा भी हमने ही बनाई है। मेरा प्रश्न सिर्फ इतना है की जिस गढ्ढे को आप ने खोदा है अगर उस मे आप गिर जाते हो तो फिर इतना शोर-शराबा क्यूँ मचाते हो ??? भाई ये तो वो बात हुई कि चोर को कहिये की चोरी कर और फिर चिलायिए चोर चोर.....!

आज कल हर जगह “सप्लिट्स-विला” और “ट्रुथ लव केस”( MTVऔर VTV के प्रोग्राम है।) की चर्चा है। दूसरी तरफ चर्चा ये भी है की आज कल भारतीय समाज में शादीया जल्दी टूट रही है। लोगो के शादिओतर संबध मे दिनों-दिन बढ़ावा हो रहा है, मैं पूछता हूँ की एक तरफ तो आप “सप्लिट्स-विला” और “ट्रुथ लव केस” मे प्यार मे गद्दारी करना सिखाते हो और जब वो ही चीज समाज पर हावी होने लगती है तब चिलाते हो। ऐसी परिसिथिति का निर्माण ही क्यूँ किया की जो समाज के लिए खतरा बन जाए। ( शायद फिर ये आधे घंटे का शो कर के प्रोग्रामिंग चेनल की टीआरपी नहीं आती ऎड नही मिल्ते। )

हम ही स्टोरी चलाते है की क्रिकेट को ज्यादा अहमियत दी जाती है भारत के अन्य खेलो को नहीं|( अरे प्राइम टाइम मे क्रिकेट पर आधा घंटा, क्रिकेटरो की लाइफ स्टाइल पर घंटो के प्रोग्राम कौन चलता है ? और किसी खले पर कोई स्पेशल प्रोग्राम नहीं बन शकता क्या...!) क्राइम पर सनसनी और न जाने क्या क्या बनाते है हम,आप और हमारे मीडिया के मित्र और फिर चिलाने वालो मे भी हम आप और वो ही है की देश मे क्राइम बढ़ रहा है। हमारे भुतपूर्व राष्ट्रपति कब से कह रहे है की “पोसिटिव पत्रकारिता” करो खेती पर कार्यक्रम बनाओ। उन्ही के शब्दों की दुहाई देते न्यूज़ चनलो से मेरा प्रश्न है की आप ने कब उनकी बात मानी और ऐसे न्यूज़ चलाये.! क्या पोसिटिव पत्रकारिता नहीं हो सकती? ( हो शक्ति है लेकिन टी.आर. पी. जो नहीं आती ऐसे प्रोग्रामस की | पिपलो मीटर जो नहीं लगे होते ऐसे क्षेत्रो मैं|)
बात यही पर आकर नहीं अटकती आज कल एक नया फेशन चला है बन बैठे विवेचको मे, कुछ भी हो कैसे भी गुनाह हो घुमा फिरा कर नौजवानों के सर मढ़ दो, किसी न्यूज़ चैनल पर जा के “बाईट” दे दो काम ख़तम। ( विवेचन का नया तरीका)

आज कल सभी पानी मथ कर दही निकाल रहे है। लेकिन लोगो को पता नहीं चलने देना चाहते की वो पानी मथ रहे है। सब को दिखा भी रहे है और दिलशा भी दे रहे है की धैर्य बनाये रखिये हम लोग दही मथ रहे है इस में से माखन निकलेगा वो आप सब को ही देंगे।

मेरा ये प्रश्न उन सभी लोगो से है की जो हमेशा ये प्रश्न उठाते रहते है की पोलिटिक्स से अच्छे लोग दूर रहते है। वोट नहीं करते बला बला बला...। मेरा प्रश्न उन सब से है की उनको वोटिंग तक खीच लाने के लिए आप ने क्या किया?????

चलिए अब भासण बाजी और लेक्चर बहोत हो गया, मैं भी कुछ नहीं कर पा रहा इन सब के लिए या मैं भी कुछ नहीं करना चाह रहा सो यहीं अपनी भड़ास निकाल दी ( या दुनिया को मैं भी ये दिखने की कोशिश कर रहा हूँ की मैं भी अब विवेचक हो गया हूँ | या मेरी भी गणना अब बौधिको मे होनी चाहिए।)

बाकि क्या है ये संसार एक मोह माया है क्या लेकर आये है और क्या लेकर जायेंगे|( न्यूज़ बुलेटिन लेकर आये थे टी.आर.पी. लेकर जायेंगे|)