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Saturday, June 26, 2010

!.....ओनर किलिंग कल आज और कल.....!



ओनर किलिंग-ओनर किलिंग आज कल मीडिया और सामान्य लोगो के बीच ये एक बहोत ही चर्चास्पद विषय बन गया है|कई लोगो को तो ये शब्द पता ही नहीं था की इसका मतलब क्या होता है?शुक्र है हमारी मीडिया ने सब को समझा दिया|
कोई भी घटना आज कल जो हत्या से जुडी हो उसको सब से पहले ओनर किलिंग से ही जोड़ा जाता है(भले चाहे वो हो न हो,आखिरकार टी.आर.पी का जो सवाल है फ़िल-हाल ओनर किलिंग या उससे जुडे मुद्दे सब से ज्यादा टी.आर.पी दिला रहे है। और ऐसे कई सारे मुद्दे है जो सिर्फ टी.आर.पी के लिए मीडिया मैं चलाये जा रहे है मैं यहाँ उन सब की बात कर के आप का टाइम नहीं बिगड़ना चाहता, सब को पता है। और मैं ये बात भी साफ़ कर देना चाहता हूँ की मैं कोई ओनर किलिंग के समर्थन मे नहीं हूँ। “जिंदगी हमेशा मौत से बड़ी होती है”।)

बात ओनर किलिंग की हो रही है तो मैं भी क्यूँ न ज्ञान दे ही दूँ। ( भले मुझे कुछ पता हो न हो, आखिर कार ब्लॉग की टी.आर.पी का जो सवाल है।)

ये ओनर किलिंग का भूत आया कहाँ से? अगर आप एक नजर अपने समाज की रचना पर और उसके इतहास पर डाले तो ये कही न कही हमारे पुरुष प्रधान समाज की ही देन है या रही होगी। जिस देश मे स्त्री और पुरुष के बीच अ-समानता की खाई ज्यादा हो,जिस समाज मे स्त्री को एक अधिकार के रूप मे माना जाता हो,जिस देश मे स्त्री को पुरष द्वारा अधिकार दिए जाते हो वहीँ ओनर किलिंग होगी या वहीं ओनर किलिंग के किस्से ज्यादा मिलेंगे।( रही भारत की बात तो भारत मे स्त्री भगवान के स्वरूप मे पूजी जाती है,और वोही स्त्री को दहेज़ के नाम पर जलाई भी जाती है,ओनर किलिंग के नाम पर उसी-के जन्मदाता ओ द्वारा मारा भी जाता है| मुझे ये समझ मे नहीं आता की जिस कलाई पर बहन ने प्यार से राखी बाँधी हो उसी कलाई से उसका कतल कैसे हो शकता है? जिस पिता को नौकरी से या अपने काम-काज से थक हार कर घर पर आते ही प्यार से पानी पिलाया हो उसी हाथ से उनको मारने की हिम्मत कहाँ से आती है?घर के ही लोगो की लाश पर गर्वे से केमरे पर बाईट देने की ताकत कौन देता है।)
अगर आप मानते हो की ये ओनर किलिंग सिर्फ भारत मैं ही है तो आप खुद एक भ्रम मे है। ये ओनर किलिंग अपने पडोसी देश पाकिस्तान मे भी हो रही है।( जो की वहां की मीडिया उनके समर्थन मे है,इस लिए ऐसे किस्से लोगो के ध्यान पर बहोत कम आते है या आने दिए जाते है |) इस के अलावा तुर्की,जोर्डन,लेटिनअमेरिका,कुवैत,बंगलादेश और कई सारे देशो मे ओनर किलिंग हो रही है।

पाकिस्तान मे तो सिर्फ चार वर्षो मैं ४,०००० से भी ज्यादा महिलाओ की हत्या सिर्फ ओनरकिलिंग के नाम पर हुई है। दिन बा दिन ये घटना ये वहां बढती ही जा रही है।ऐसा नहीं है की वहां इसके खिलाफ आवज नही उठती, आवाज तो उठती है,लेकिन उसे एक या दुसरे तरीके से दबा दी जाती है या तो फिर ऐसी घटना ओ को बाहर नहीं आने दिया जाता। अब तो हाल ये है की आधुनिक कहे जाने वाले अमेरिका केनेडा फ़्रांस जर्मनी यू.के. मे भी ओनर किलिंग के किस्से हो रहे है। ( हम हर चीज मैं अमरीका जैसा बनने की कोशिश करते है लेकिन इस घटना क्रम मे शायद अमेरिका और दुसरे देश हमारी कॉपी कर रहे है।)
ऐसा नहीं है की इस से पहले भारत मे या और देशो मे ओनर किलिंग नहीं होती थी|
एक नजर पहले के ज़माने पर डाले तो जब लडकियां पैदा होती थी तो उन्हें दूध मे डुबो कर मार दिया जाता था।( ये कौन सी किलिंग थी),औरतो को दहेज़ के नाम पर,दूसरी जाती मे विवाहों के नाम पर पहले भी मारा जाता था, ना जाने कितनी खाप पंचायतो ने और फ़त्वो ने इज्जत के नाम पर हत्याये करवाई है ( ये भी मेरी नजर से ओनर किलिंग ही है।)
फर्क सिर्फ इतना है पहले ऐसी घटनाओ को दबा दिया जाता था या दब जाती थी, आज दबाने से भी नहीं दब रही है।

ओनर किलिंग की बदी आज-कल से नहीं सदियों से चली आ रही है फर्क सिर्फ इतना है समय समय पर इस घटना ने अलग नाम का चोला पहना है| अंध पुरषोत्तम प्रधान समाज मे कोई शख्त कानुनों से ये बदी दूर नहीं हो जायेगी इस के लिए हमें सब से पहले हमारे इस अंधे समाज के माइंड सेट को बदलना होगा। इस जूठे इज्जत के भ्रम को तोडना होगा। महिलाओ को सम्मान से जीने देना होगा। इस को दूर करने के लिए एक लम्बी लड़ाई लड़नी होगी, जन जागृति लानी होगी,तभी ये पेट्रोल और गेस की कीमतों की तरह बढ़ता काले-नाग की तरफ फन फैलता ओनर किलिंग का भूत थमेगा।न की जल्दी जल्दी पी.टु.सी देने से या हाफ्ते-हाफ्ते बोलने से।

चलिए बहोत लिख लिया कोई ओनर किलिंग का किस्सा ढूँढना है या बनाना है चैनल की टी.आर.पी. जो बढानी है।

Saturday, June 12, 2010

याद रखना मैं एक पत्रकार हूँ.....!



याद रखना मैं एक पत्रकार हूँ.....!

जब से मैं इस क्षेत्र मैं आया हूँ तब से कहीं न कही ये किसी न किसी रूप मे ये शब्द मुझे सुनाई दे ही जाता है..! कभी इस मे अभिमान छिपा हुआ होता है,तो कभी इस मे गर्व छिपा होता है तो कभी कभार केमरे के पीछे की लाचारी भी इसी शब्द के रूप मै पिस टु केमेरा दे जाती है...!...

लेकिन पिछले कुछ दिनों से यही प्रश्न मैं बार बार सोचता रहा की आखिर पत्रकार यानि क्या..?! ( जब की मैं खुद एक पत्रकार बनने की कोशिश कर रहा हूँ।)इस सन्दर्भ मे मैं आप को एक घट्ना बताना चाहुंगा।

कुछ दिन पहले मेरे एक पत्रकार मित्र को घर लेना था। बहोत खुश था वो क्युंकी उसके जीवन का एक बहोत बड़ा सपना सच होने जा रहा था।उसने अपने कुछ दिनों की बचत और कुछ माँ बाप की बचत से घर लेनी की सोची थी। लेकिन वो इतनी नहीं थी की उस से वो घर खरीद ले।लिहाजा उस ने बैंक लोंन ले कर घर लेने की ठानी। हम साथ साथ बैंक गए,बेंक वाले ने जैसे मेहमान की तरह खातिर दारीकी, सब बात ख़तम होने पर जब जॉब का आप्शन आया तो उसे देखते ही हमे लोन देने के लिये उत्सुक उस शक्स के आँखों की भोंवे तन गई। कुछ हक-पकाया और बोला थोड़ी देर आप बैठो मैं अभी आया। कुछ देर इंतजार करने के बाद जब वो लौटा तो उसने अपने चहरे पर एक कमिनी सी मुस्कान लाते हुए कह दिया सॉरी सर हम आप को लोंन नहीं दे शकते। हमारी बैंक का नियम है की हम पत्रकारों को लोंन नहीं देते। सुनते ही हम लोग बहोत चीखे चिलाये पर कुछ न हुआ,अंत मैं चुप चाप वहां से निकल आये ,उस के बाद हमने कई बेंको के चक्कर काटे हर जगह एक ही जवाब मिला शोरी और वो भी उसी कमीनि मुस्कान के साथ। और अब मेरे उस पत्रकार मित्र का घर लेने का सपना सपना ही रह गया है आज तक...( क्यूँ की वो इमानदारी से सिर्फ पत्रकारिता ही करता है) | शायद ऐसा और कईओ के साथ हुआ हो लेकिन मुझे पता नहि।

बड़ी बड़ी समाज सुधार की बाते करते और सरकार पलट देने का हौंसला दिखाने वाले पत्रकार की क्या यही इज्जत है? खुद सरकार कि बनाई बेंक भी उन पर विश्वास नहीं करती भैया तो औरो से क्या आशा रखें।
चाय या कोफी की प्याली के घुंट मारते हुए मित्रो के सामने गर्व से बोलते मैंने कई लोगो को सुना है की मैं पत्रकार हूँ बड़े बड़े लोग मेरे एक फ़ोन से कांप उठते है। क्या यही पत्रकार की इज्जत है?( ये तो उसका ही मन जानता होगा की एडिटर का फ़ोन आते ही कौन कांप उठता है.. उसकी क्या हैसियत है ये तो न्यूज़ रूम या न्यूज़ डेस्क पे जाने से ही पता चलती है) मुझे यही नहीं समझ आता की किस भ्रम मैं है ये पत्रकार। कही भी ट्राफिक पुलिस ने पकड लिया तो प्रेस का कार्ड दिखा के धमकी देते मैंने कई पत्रकारो को देखा है,और यह कह्ते भी सुना है की तुम्हारे खिलाफ लिखना होगा,( जैसे सारे न्युज चेनल की स्टोरी या न्युज पेपर की स्टोरी वो ही तय करता है।) फिर उन्ही लोगो को इमानदारी के कई सारे लेक्चर देते भी मैने सुना है। कया ऐसा दो मुहा है पत्रकार? आज पत्रकार की क्या हैसियत रह गई है.?? पत्रकार शब्द के माइने क्या है?
मैं नहीं जानता लेकिन कुछ दिनों पहले मैं एक गाँव गया था, वहां एक बूढ़े आदमीं ने पुछ लिया बेटा क्या करते हो ? अपन ने शान से कह दिया (मेरे जैसे शायद सब न कहते हो) पत्रकार हूँ! जरा भी देरी किये बिना उन्हों ने झटसे कह दिया..क्या और कोई काम नहीं मिला था.! ( ये है एक बुजुर्ग की दर्ष्टी से पत्रकार।)

मेरे दोस्त के भाई का फ़ोन आया की “जर्नालिसम” करना चाह्ता हूँ। मैंने उस से पुछा “जर्नालिसम” ही क्यूँ?(पत्रकारीता के गुणधर्म के मुताबिक।) उस ने बड़े ठन्डे कलेजे से कहा की वैसे तो एक्टर बनना चाहता था लेकिन चांस नहीं दीखता तो “जर्नालिसम” ही कर लुं। पत्रकारों के आज कल बहोत ठाठ है..!(वो शायद पत्रकारीता को ग्लेमर के नजरिये से देख रहा था। ये है जर्नालिसम मैं आने वाली पीढ़ी की नजर से एक पत्रकार.!)
( ये लोग ऐशा सोचे उसमें कोई गलत नहीं है क्यूंकि मैंने खुद कई जाने-माने पत्रकारों को गिफ्ट-वाउचर के लिए झगड़ते और कई सरकारी और गैर सरकारी लोगो की बदलियों के लिए मंत्रियो से सिफारिश करते देखा है,फिर वो इज्जत कहा से पाएंगे?)

आज कल नौकरी तन्खवाह छ्ट्नी,लोबिंग और ना जाने किन किन बलाओ से जुझते है पत्रकार,लेकिन बहार दिखावा तो ऐसे करते है जैसे सब कुछ है पत्रकार...! पत्रकार की इज्जत भी दिन बा दिन घटती हि जा रहि है,उन्हे ऐसे ऐसे शब्दो से नवाजा जाता है कि उसे मै यहां नही लिख सकता।( कई सारी बिप बजानी होगी जो यहां नही बजेगी।) इसके लिये जिमेदार कौन है ये भी मै नही जनता।
वैसे तो बहोत कुछ लिखना था लेकिन क्या करूँ मैं भी एक पत्रकार बन रहा हूँ ! पढ़ कर आप क्या सोचते हो पत्रकारों के बारे मैं जरूर लिखना वर्ना याद रखना मैं भी एक पत्रकार हूँ.....!