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Monday, October 11, 2010

क्यां तुम्हे भी याद है..



कुछ बातों की शुरुआत मुझे अभी भी याद है ,
साथ गुजारे वो हर लम्हे , वो हर पल अभी भी मुझे याद है |

यादो की सिलवटें अभी भी दिल की तन्हाई में दफ़न है,
तुमसे लड़ना झगड़ना अभी भी मुझे याद है |

आधे अधूरे अंत की मुलाक़ात मुझे याद है,
तुम न जाने कौन से कोने में छिप गई हो,

तुम्हारा अभी भी छिप के चाँद की तरह सामने आना याद है |

मेरे गम की तन्हाई में वो तुम्हारा फूलों सा मुस्कराना मुझे याद है |

हर हँसते चेहरे में एक हसीन सा चेहरा मुझे याद है |

दरिया में तो आती है मौजे बहार, किन्तु किनारों को तो सिर्फ रेत पर छपी पैरो की परछाई याद है |

मेरे दिल में है आप का एहसास , क्या आप को भी याद है ?

तुम को याद कर हर वख्त आँखों से निकलते आंसू, मुझे तो याद है, क्या तुम्हे भी याद है ?

तुम्हारे बिना कैसे गुजरती है मेरी रातें मुझे तो याद है, क्यां तुम्हे भी याद है?

8 comments:

  1. Tum Kabhi Hame phone Bhi kIya kArte The Kya Tumhe Yaad Hai.. ha ha ha :-(

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  2. Bahut hi achchh hai ... Kuch bato ki shuruaat hmmmm superb Dilip

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  3. NIce One Sir really Hear Touching...! but i m confused how can u write this without any feeling...??? have you ever been in love..???? bc i think that its not possible to wirte this kind of poem with out get infected of love...!

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  4. @ Palak JI hamna Commitment thodak Vadhi Gaya che etle.. Nd Thanks 4 cOmment..
    @Shaily thanks..
    @ Nandini ji.. ye Abhi suraat hai aap jaise logo ki salah aur suchaan se main improvement laane ki koshish karungan...
    @ Pushpa Ji aisha kuch nahi hai...!

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  5. apane kaafi accha likha hai. Shabdo ka tana bana bahut hi adbhut hai...

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  6. दरिया में तो आती है मौजे बहार, किन्तु किनारों को तो सिर्फ रेत पर छपी पैरो की परछाई याद है.. very nice..

    n really nice feelings in poem..

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