मुख्य आलेख..!:


Friday, February 26, 2010

कविता का संघर्ष..


"एक लड़का हो जाता तो तेरा कुल चल जाता" ये बात शायद शहर के लोगो ने कम सुनी है,लेकिन भारत के गाँव मैं ये बाते आज भी आम है,भले ही सुनीता विलियम्स चाँद पे कदम रख आई है, और दुनिया उनके कदम चुमते और प्रशंसा करते नहीं थक रही, फिर भी कहीं न कही लडको को कुल चलाने वाला कुल दीपक माना जा रह है, भले ही वो डकैती कर रहा है,चोरी कर रहा हो,(भाई कुल का नाम तो ऐसे भी तो रोशन होता है),

आज मैं यहाँ ऐसे कुलदीपक की बात नहीं करने जा रहा मैं यहाँ बात करने वाला हूँ एक ऐसे कुलदीपक की की जो एक वख्त उसी के माँ बाप बुझा देना चाहते थे,.और आज वो ही कुल दीपक उन के घर को उजाला दे रहा है,उनके नाम को देश दुनिया मैं मशहुर कर रहा है,फर्क सिर्फ इतना है की वो लड़का नहीं लड़की है, जिसका नाम माता पिता ने प्यार से कविता रखा है,जिसे आप ने अक्सर दूरदर्शन के धारावाहिक कसक मैं साक्षी के रूप मैं देखा होगा.स्टार प्लस की एक बहोत ही मशहुर धारावाहिक साईं बाबा मैं आप ने तातिया की पत्नी के रूप मैं देखा होगा...इस के आलावा जाने मने कई धारावाहिकों मैं कविता ने आपनी अलग ही छाप छोड़ी है...चलिए देखते है कविता आज जहा पहोची है,वहां तक पहुचने के लिए उन्हों ने कितना संघर्ष किया है..

कविता का जनम राजस्थान के शहर जयपुर से करीबन १५० किलो मीटर दूर बंदी कुई मैं हुआ..उसके जनम क पूर्व ही उसके इस धरती पे आने और न आने मैं प्रश्न चिन्ह लग गए थे.कविता की दादी चाहती थी की कविता का जनम न हो क्यूँ की पहले से ही घर मैं और २ लडकियां थी,कविता की माँ भी मजबूर थी वो आपनी सास की बात मान अपना बच्चा गिराने हॉस्पिटल पहोच गई,फिर जैसे फिल्मो मैं होता है वैसे न जाने कहाँ से कविता की माँ को हुआ की नहीं मुजे इस बच्चे को जन्म देना ही है और वो हॉस्पिटल से वापस आ गई.(कविता की कहानी भी जैसे वो धारावाहिकों मैं मोड़ लेती है वैसे ही मोड़ ले रही है. कविता जन्म से पहले ही मरने जा रही थी लेकिन एक चमत्कार ने ही उसे बचा लिया.)
बस यहीं से कविता का सफ़र सुरु होता है.कविता के बाद उसके और दो भाई हुए,लेकिन कविता उन सब से अलग और सब से अनोखी थी,

कविता का जनम भले ही एक छोटे से गाँव मैं हुआ था लेकिन उसकी परवरिश और पढाई लिखाई.भारत के आर्थिक राजधानी मुंबई मैं हुई है, कविता ने microbiology and बायो केमिस्ट्री से डबल मास्टर किया है,(नाम पढने मैं जितना मुश्किल है,उतनी ही उसकी पढाई भी होगी..) कविता का संघर्ष पढाई के साथ नहीं ख़तम होता वो जब पढ़ रही थी तब भी उसकी महगी किताबो को लेकर अक्सर उसे ताने सुनने पड़ते थे,लिहाजा उसने किसी पर बोज नहीं बन ने का फैसला किया और अपनी पढाई का खर्च खुद उठाया. दिन को पढाई और रात को कॉल सेंटर मैं जॉब.(क्या कोई कुल दीपक यानि की लड़का ऐसा करता.?)
कविता का संघर्ष यही ख़तम नहीं होता...उसे अपनी परीक्षा देने के बाद एक और परीक्षा देनी पड़ी. बी.एस.सी. के अंतिम साल परीक्षा मैं सफल होने बावजूद उसका परिणाम फ़ैल आया..कविता को यकीं था की वो परीक्षा में पास है लिहाजा उसने अपनी सच्चाई साबित करने की ठानी,परीक्षा बोर्ड के खिलाफ एक साल तक उसने लड़ाई लड़ी,आखिर कार कविता ने विजय हासिल की और उसका परिणाम पास निकला..!
कविता के संघर्ष गाथा यहीं ख़तम नहीं होती,उसने बचपन से ही कुछ अलग करने की ठानी थी लिहाजा सायंस की विद्यार्थिनी होने के बावजूद एक्टिंग को अपना कैरियर बनाने की गांठ बाँध ली.पढाई ख़तम करने के एक साल तक संघर्ष करने के बाद पहला ब्रेक स्टार प्लस की साईं बाबा सीरियल में मिला.तब से कविता ने पीछे मुड के नहीं देखा एक बाद एक सफलताएँ हासिल की.

दिनरात संघर्षो की बिच घिरी कविता ने हर संघर्ष को हँसते हुए लिया.और हर मुश्किल को पार कर अपनी मंजिल पाई.कविता आपने संगर्ष को कुछ इस तरह बयाँ करती है."मैं हमेशा से इश्वर मैं आशथा रखती हूँ,मैं खुद एक धार्मिक इन्सान भी हूँ.मेरे साथ जो भी हुआ,या हो रहा है वो सब अच्छा ही है,हर संघर्ष से मैं ने कुछ न कुछ तो सिखा ही है,और आगे भी सीखूंगी..इन संघर्षो की वजह से मैं अपने आप को एक विशेष इंसान महसूस करती हूँ."

कविता आज चामुंडा फिलिम के साथ कम कर रही है,इसके इलावा स्टार प्लस की शकुन्तला, एन.डी.टी.वी. की ज्योति,सोनी टी.वी.की सी.आई.डी. और कलर्स टी.वी.की बालिका वधु,और स्वामिनारायण जैसे धारावाहिकों मैं कम कर चुकी है.

सदियों से ये परंपरा चली आ रही है की हम देवी ओ को तो पूजते है लेकिन वो ही देवी सामान लड़की जब अपने ही घर मैं माँ,बहन या पत्नी के रूप मैं आती है तो उनसे बदसलूकी का एक भी मौका नहीं छोड़ते .(सब की बात नहीं है..कई लोग ऐसा नहीं करते फिर भी ज्यादातर लोग मेरी बात से सहमत होंगे)..
आज कविता के रिश्ते दार और घर वाले कविता पे गर्व करते है,(ये वो ही लोग है जो एक दिन कविता के जनम पे ही एक सवालिया निशान लगा दिया था)..

कविता आज मशहुर है इस लिए उनकी कहानी मैं उनकी जुबानी सुनपाया(मशहुर होने के बाद बहोत कम लोग सच्चाई भी बताते है.) बाकि और ऐसी न जान कितनी मासूम लडकिया जनम से पहले ही भगवान को प्यारी हो जाती है.(सिर्फ कुलदीपक पाने की आशा मैं)शायद वो जनम लेती तो मैं या मेरे जैसा कोई और उस लड़की की महानता क गुणगान गाते नहीं थकता.
मेरी ये आर्टिकल पढने वाले सभी से गुजारिश है.की कुलदीपक पाने की आशा मैं लडकियों को इस पुर्थ्वी पर जनम लेने का अधिकार न छीने.न जाने उन मेंसे कौन सुनीता विलियम या कविता शर्मा बनजाये..और आप के कुल को आप के कुलदीपक से ज्यादा उजागर करे..!!

Friday, February 19, 2010


सनसेक्स रोज नया हाइ और लो बनता है साथ मैं कई लोगो की धड़कने भी बढ़ता और कम करता है..!!

शायद ये बात सब लोगो को पता है ,लेकिन आज कल इसी संसेक्स के इस व्यापर मैं डूबे लोगो को और सब से अधिक नौ जवानों को एक नई परेशानी यानि टेनसन दी है.! सुबह एक घंटे का टाइम जल्दी हो गया है,शायद इसी लिए इन सब की जीवनकी नैया असत व्यस्त हो गई है,कोई रोज सुबह गाय को चारा डाल के शेर मार्केट मैं पैसे कमाने के सपने संजोता था, तो कोई घर पे दूध लाके चाय की चुस्की के साथ बीवी के प्यार की अनोखी मुस्कान के स्वाद चखता था,लेकिन जब से ये समय सुबह ९ बजे का हो गया है तब से न तो गाय मिलती है न ही दूध लेन का टाइम मिलता है.? मिलता है तो सिर्फ गुस्से से लाल हुई बीवी के चहरे की मुस्कान ! क्यूँ की अब दूध लेके उसका पति नहीं आता,.और गाय लेके खड़ा होने वाला ९.३० से पहले नहीं आता.(पति अब पुन्य नहीं करता ) बच्चो को स्कूल छोड़ने भी नहीं जाया जाता...नफे मैं बाजार रोज रोज अप- डाउन कर के मुसीबतों मैं बढ़ोतरी कर रहा है..

जैसे इतनी तकलीफे कम हो उसमैं अब एक और चीज की बढ़ोतरी होने जा रही है, सुनाइ दिया है की अब शनिचर को भी ट्रेडिंग होगी..(भला ये शेयर मार्केट वालो ने शादी नहीं की होगी.>????)हर रोज उनके नए नियम शेयर मार्केट के साथ जुड़े लोगो की लाइफ मैं नए हाई लो बना रह है..

शेयर मार्केट मैं ट्रेडिंग करने वाले रमेश भाई का कहना है की "जब से सुबह का समय हुआ है बीवी सही से जवाब नहीं देती..रात को जल्दी सो जाना पड़ता है सुबह जल्दी उठाना पड़ता है..अब हमारी सेक्स लाइफ भी इसी संसेक्स ने दोजख बना के रख दीया है.."
रात को बीवी या गर्ल फ्रेंड को लेके लॉन्ग ड्राइव् पे नहीं जा सकते, क्यूंकि सुबह जल्दी उठाना है..अगर जाते है तो बजार मिस हो जाता है और नहीं जाते तो बीवी या गर्लफ्रेंड मिस हो जाती है..( कोई तो समजे नौजवानों की ये मुसीबात)अब तो वीक एंड पर भी सवालिया निशान खड़ा हो गया है...अगर शनिचर को ट्रेडिंग सुरु हो गई तो शेयर मार्केट से जुड़े नौजवानों की शादी सुदा जिन्दगी और उसमें काम करने वाले कुवारों की लव लाइफ दोनों ही खतरे मैं? एक ट्रेडिंग हाउस मैं कम करने वाले सन्नी का कहना है की "भाई हर शनिचर और इतवार को मैं अपनी गर्लफ्रेंड को लेके घुमने जाया करता था लेकिन जैसे ही मैंने उसे बतया की अब तो शनिचर को भी बाजार खुलेगा तो उसने मुजसे बात करना ही बंध करदिया"
शेयर मार्केट ने कई ओ की जिन्दगी बनाई है और कई ओ की जिन्दगी बिगाड़ी है..लेकिन उनके पीछे शेयर मार्केट मैं आने वाले उतार चड़ाव जिमिवार थे लेकिन अब लोगो की लाइफ बन ने और बिगड़ने के पीछे शेयर मार्केट का समय शायद जिमीदार होगा...
आने वाले दिनों मैं शायद इसी शेयर मार्केट के समय को लेकर शादीयां टूटने लगे और प्रेमी बिछड ने लगे तो आश्चर्य चकित मत होइए गा..भाई शेयर मार्केट मैं अब सब कुछ पोसिबल है...

जाते जाते थोड़ी शेयर मार्केट और क्या क्या गम देता है वो भी शुन लीजिये ..
१] लगातार कम्पूटर के सामने बैठने से आँखे कमजोर होती है..
२]शरीर अकड़ जाता है..!!
और न न जाने कितनी बीमारिया इस ने दी है..लेकिन लोग इसे छोड़ नहीं सकते क्यूंकि फास्ट मनी विधआउट महनत जो है..
शेयर पर सेर : इस शेयर न दिए न जाने कितने गम..समय बढ़ा के किया सेक्स लाइफ को कम और आगे न जाने कितने दिखायेगा ये रंग..!!

"घर को आग लगा दी घर के ही चिराग ने" जी हाँ जहां एक और राहुलगाँधी पुरे देश मैं कांग्रेस की बहुमति लाने के सपने देख रहे है और वो सपना पूरा करने की जी तोड़ कोसिस भी कर रहे है वही दूसरी और कोंग्रेस के सब से कमजोर कहे जाने वाले राज्य गुजरात मैं कोंग्रेस का हाल और भी बुरा होता जा रहा है.

गुजरात कोंग्रेस मैं फिल हाल घमशान छिडा हुआ है..जैसा हाल केंद्र मैं भाजपा का है वोही हाल कांग्रेस का गुजरात मैं है.गुजरात मैं काग्रेस प्रमुख बन्ने की लडाई तेज हो गई है...एक और दलित कार्यकरो ने मोर्चा खुला हुआ है है वही दूसरी और लघुमति कांग्रेसी कार्यकरो ने कांग्रेस सिर्सस्थ नेता गिरी के खिलाफ अपनी तलवार तान दी है..

कांग्रेस के दलित कार्यकर लम्बे समय से उपेक्षित होने का आभास कर रहे हैं..कांग्रेस के दलित कार्यकर तो यहाँ तक आक्षेप कर रहे है की उन्हें सिर्फ चुनाव के वक्त याद किया जाता रह है..चुनाव ख़त्म होते ही उन्हें दूध मैं गिरी माखी की तरह निकाल बाहर फैंक दिया जाता है.. अब कोई दलित कांग्रेस से संतुस्ट नहीं है..यही वजह है की दलितों ने गुजरात कांग्रेस की खिलाफ बगावत कर दी है..आज जगह जगह दलित समेलन कर के गुजरात कांग्रेस मैं दलितों को हो रहे अन्याय के बारे मे बताया जा रह है.आने वाले दिनों मैं ये बगावत और भी बुलन्द करने का आह्वाहन ये दलित कार्यकर कर रहे है..कांग्रेस के ही एक दलित नेता बताते है की ऐसा कुछ भी नहीं है.. किन्तु कांग्रेस के ही एक विधायक हैं जो कांग्रेस आलाकमान के बहुत नजदीक माने जाते है वो पक्ष प्रमुख बनना चाह रहे है सो उन्हों ने ही दलितों को भड़काया हुआ है..वो गुजरात कांग्रेस प्रमुख के तौर तरीको से नाराज है और खुद को उपेक्षित मान रहे है..

यहाँ ये बात बहुत ही ध्यान आकर्षक है की राहुल गाँधी दलितों को अपने पक्ष मैं लाने की मुहिम छेडे हुए है,वही गुजरात कांग्रेस मैं दलितों ने बगावत की है..बात जो भी हो लेकिन वार सोच समज कर किया गया है की आन्दोलन छिड़ते ही कांग्रेस का आलाकमान मुस्किल मैं आजाये.

अब बात लघुमति ओ की,, सो उन्हों ने भी कांग्रेस आला कमान के खिलाफ बगावत की है यूँ की मुस्लिम वोटर्स बरसो से ही कांग्रेस से जुड़े हुए रहे हैं सो उनकी बगावत भी बहुत महत्त्व पूर्ण है..यहाँ भी आक्षेप वो ही हो रहे है के कांग्रेस के कुछ विधायको ने ही उन्हें भड़काया हुआ है..बात जो भी हो लेकिन लघुमति कांग्रेसी कार्यकारो की एक बात तो सही है की लम्बे समय से कोई मुस्लिम नेता या कार्यकर गुजरात कांग्रस के शीर्ष पदों पे नहीं है..

कांग्रेस आलाकमान भी इन दो तबको की बगावत से सदमे मैं है सो उन्हों ने डेमेज कण्ट्रोल के लिए आननफानन मैं सुधाकर रेड्डी को गुजरात भेज दिया था लेकिन वो भी सब कुशल मंगल का राग आलाप के चले गए.. लेकिन गुजरात कांग्रेस मैं कुछ कुशल मंगल नहीं है..दलित और लघुमति बगावत तो एक जरिया है असल बात कुछ और है.. गुजरात कांग्रेस दरअसल ४ खेमो मैं बाटी हुए है.एक मूल कांग्रेसी खेमा है दूसरा जनतादल खेमा है तीसरा शंकर सिंह का खेमा है और ४ नवयुवान खेमा है, ये ४ खेमे अपनी अपनी और कांग्रेस को खीच रहे है..गुजरात कोंग्रेस के नेता जायदातर कोई न्यूज़ चैनल के स्टूडियो मैं दिखाई देते है या फिर कोई जाने माने उद्योगपतियो की पार्टियों मैं.और कांग्रेसी कार्यकर अपने अपने गुट के नेता की पगचम्पी करने मैं लगा हुआ है.किसी को गुजरात की समस्या गुजरात के विकास की और ध्यान नहीं देना बस नेता ही बनजना है.. गुजरात कांग्रेस के नेता इ.सी चेम्बर मैं बैठ के मिनरलवाटर के घूंट लगाते-लगाते गुजरात के गाँव मैं हो रही पानी की समस्याओ के बारे मैं सोच रहे है..तो कोई कांग्रेसी नेता अपनी आलाकमान से नजदिकिया बढ़ने मैं लगा हुआ है..अब ऐसे मैं कांग्रेस का भला कैसे हो शकता है.और गुजरात की जनता भी उनके बारे मैं कैसे सोचे.?

किसी को गुजरात मैं भाजपा को हराने की नहीं पड़ी सब को सताधिस ही होना है.किसी को कार्यकर नहीं बनना.. अब ऐसे मैं नरेन्द्रमोदी हेट्रिक न ही करे तो अचम्भा होगा.. गुजरात बीजेपी को बीना कुछ किये ही जित पे जित मिल रही है,और मोदी जी के गुण गान गए जा रहे है, सच बात तो ये है की गुजरात मैं कोई मजबूत विपक्ष है ही नहीं लिहाजा गुजरात की जनता जाये तो जाये कहाँ.बुरा तो हर कोई है पसंद हम को जो कम बुरा हो उसे करना है.. सो गुजरात की जनता भी वो ही कर रही है...

जब तक गुजरात मैं कोई मजबूत विपक्ष नहीं होगा तबतक गुजरात मैं मोदी जी चैन की बंशी बजाते रहेंगे.. फ़िलहाल देखना ये होगा की गुजरात कांग्रेस मैं फिलहाल सुलग रहे इस ज्वालामुखी से कांग्रेस मैं कोई नया प्राण संचार या बड़ा बदलाव होता है की जो गुजरात भाजप को मुश्किल मैं डाल दे,या फिर उ.प. की तरह यहाँ भी राहुल बाबा को ही अवतार लेना होगा...!!!!!!!!!

Thursday, February 18, 2010


विषय : शंकर सिंह वाघेला और सुरेश मेहता का राजकिय संग्राम

"प्रलय और निर्माण दोनों शिक्षक की गोद मैं खेलतें है"..चाणक्य की ये बात आज गुजरात के दो प्रखर राजनीतिज्ञों को याद आ रही है या याद करना उनकी मज़बूरी बनगई है..वो शिक्षको के बल बूते अपनी राजकरन की नैया पार लगाने के सपने सजोय रहे है .. ये दोनों गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री रह चके है ,लेकिन दोनों के व्यव्हार और आचरण एकदूसरे से एक दम विभिन् है..एक हर कदम और चाल चलने से पहले दस बार सोचता है तो दूसरा बिना सोचे समजे ही युद्घ के मैदान मैं कूद पड़ता है.लेकिन समय की मज़बूरी कह ले या अस्तित्व की लडाई आज ये दोनों एक दुसरे के साथ उठ खड़े हुए है.एक को अपनी राजनीती चलानी अहि तो दुसरे को अपना अस्तित्व टिकाये रकहना है..इन मैं एक है सुरेश मेहता और दुसरे शंकर सिंह वाघेला "बापू".

सुरेश मेहता का भी एक जमाना था,कच्छ उनका गढ़ मन जाता था. या यूँ कह ले की कच्छ की राजनीती उन्ही के इर्द गिर्द घुमती थी..किन्तु २००२ के गोधरा कांड के बाद या नरेन्द्रमोदी के सुर्वन काल के सूर्योदय के वक्त उन्हों ने सेकुलारिसम का राग आलाप..और उनके सारे सुरताल बिगड़ गये या बिगड़ने की सुरुआत हुई..इसी कारण खुद उन्ही के कुछ साथी दारो ने या कट्टर भाजपा समर्थक कहे जानने वाले लोगो और वोटरों ने उनसे अपना मुख विमुख करलिया.

खुद भाजपा के ही लोगो ने मिलके उनको हराया.. ये उनके जीवन का सबसे बड़ा सदमा था.एक ऐसे व्यक्ति की हार थी जो केशुभाई पटेल के वक्त नंबर २ बना हुआ था.आज उसका अस्तित्व गुजरात के राज कारन मैं दूर दूर तक नहीं दिकाही दे रहा.शायद इसी लिए अपने वजूद को कायम रखने के लिए एक समय उनके कट्टर विरोधी कहे जाने वाले शंकर सिंह वघेला के साथ उन्हों ने अपना हाथ मिले है..कहते है की गुजरात के भविष्य के लिए हाथ मिलाया है.(किन्तु यहाँ प्रश्न ये है की वो गुजरात के भविष्य के लिए उठ कहदे हुए है या खुद के .??)

अब बात शंकर सिंह वघेला यानी बापू की
शंकर सिंह वघेला को हाल ही मैं हुए लोक सभा चुनाव मैं हर का सामना करना पडा या हराया गया. उनकी हर के पीछे गुजरात के ही एक बड़े भाजपा नेता और कांग्रेस के एक बहुत ही कदावर कहे जाने वाले नेता का हाथ मन जा रहा है.. बात जो भी हो वो हारे ये सच है.. और आज कल वो फ्री हो गए तो उन्हें गुजरातवासी ओ की याद आई है.. या याद करना पद रहा है.. और कोई कम भी तो नहीं बचा उनके पास..वो गुजरात के मुख्य मंत्री रह चुके है.. गुजरात कांग्रेस के प्रमुख और फिर कबिनेट प्रधान के पदों को अपना बना चुके है.. लेकिन आज एक बार फिर उनका पुराना राजनैतिक दुशमन उन पे भारी हो गया है. और वो गुजरात मैं अपने शाशन के शानदार ८ सालो की जयंती मन रहा है. .. ये बात शंकर सिंह बापू को खूब खल रही है लिहाजा उन्हो ने शिक्षको की समस्या को लेकर एक जनांदोलन छेडा हुआ है..वे शिक्षको की नोक से वे मोदी पर निशाना साध रहे है.जब की कांग्रेस पक्ष ही उनके साथ खडा दिखाई नहीं दे रहा है.. वे जब से कांग्रेस मैं आये है तब से मूल कांग्रेसी कहे जाने वाले लोगो ने उन्हें नहीं स्वीकारा..अभी भी ये लोग उन्हें भाजपा कुल का मन रहे है जो कभी भी विस्वासघात कर शकता है..शायद इसी लिए उन्हों ने भी मोदी के खिलाफ लदे जनांदोलन मैं कांग्रेस का साथ लेने की बजाय सुरेश मेहता का साथ लेना उचित समजा

मोदी आज गुजरात मैं सर्वे सर्व बन गए है ये बात शायद उनको राज़ नहीं आ रही, आये भी कैसे उनका दुसमन गुजरात मैं फल फुल रहा है और आज वो वक्त आया है की उनको अपनी राजनीती खात्म्होती दिख रही है.. बात जो भी हो लेकिन एक स्वस्थ विपक्ष अछे लोकशाही की मांग रही है केंद्र मैं भले ही कांग्रेस मजबूत और भाजपा मजबूर najar आ रही है लेकिन वो ही स्थिति आज गुजरात मैं कांग्रेस की है कांग्रेस मजबूर और मोदी मजबूत नजर आ रहे है ऐसे समय मैं शंकर सिंह वघेला और सुरेश मेहता का उठ खडा होना शायद गुजरात की लोकशाही के लिए अच्छा हो.. देखना यह होगी की ये दोनों पाने प्रयास मैं कितने सफल हो पते हैं.

फिल हाल तो शंकर सिंह वाघेला और सुरेश मेहता का रेडियो एक ही स्टेशन पे एक ही धुन बजा रहा है.. अगर उनकी धुन लोकप्रिय हुई तो गुजरात के मुख्यमंत्री की रातो की नींद अवश्य हराम हो जायेगी...गुजरात वासी तो फ़िलहाल गुजरात मैं अभी गरम हो रहे राजकीय माहोल का मजा लेना चाह रहे है.. उनको भी देखना है की गुजरात मैं शंकर सिंह की बापू गिरी चलती है की मोदी जी की मोदी गिरी....