मुख्य आलेख..!:


Saturday, February 26, 2011

उम्मींदो का आसमां


मैं चला था ईक नया जहां बनाने अपनी उम्मींदो का नया आसमां बनाने, मुझे कहां पता था यहां आसमानो के भी ठेकेदार होतें हैं जिन पर घमंड के बाद्ल छाये होतें हैं। किन्तु इनपर घमंड से सनी धनक कौन चढ के साफ़ करे, “ज्ञान-रूपी” अभिमान के इनको जालें लग चुकें हैं, रुपयों की श्याही का ईनको ठप्पा लग चुका है। कोई अगर उसे मिटाने की कोशिश भी करता है तो अभिमान की गर्द उड्ने लगती है।

वो अपना फ़लक खोल परिवर्तन की लहर को महसुस नही करना चाह्ते है,कहीं नाकामी की धुप जलाकर राख न कर दे। पुरातन विचारो के इतने पत्तों ने घेरा हुआ है इन्हे की शाखों पर बद्लाव के परिंदे बैठ्ते ही नहीं ( य़ा बैठ्ने नही देना चाह रहें है)।

अब कैसे उम्मीद पालुं, कैसे खोलुं दिलों के राज, कैसे उडाऊं अपनी आशाओं के परिंदे, यहां तो हर डाल पर बैठा है शैयाद । मुझे फ़िर लौट कर चले जाना है इक अनंत यात्रा पर ये मालूम है, क्या करे जालिम ये दिल ही नही मानता के हर वख्त कि इक शाम होगी ऐसे लोगों कि खास जिंदगी भी कभी आम होगी।
ये तो मेरी बे लगाम ख्वाहिशें हैं जो मुझे दौडाती रहती हैं, वर्ना कौन चाहता है सुरज के चमकीले उजालों में अंधेरे की नाजायज औलादें ढुंढ्ना।

दुख तो हमेशा मुझे यही रहेगा की वो हमे समझते ही नही, हो जातें है बेववजह हमसे खफा उन्हे महसुस होता है शायद मैं यहा कुछ लेने आया हुं, उन्हे कौन बताये सनम मैं यहां तो क्या कहीं भी कुछ लेने आया ही नही था।
ऐ आसमान के ठेकेदारो अब तो समझो, आप की खातिर तो हमने अपनी उम्मींदो का आसमां लुटा दिया, क्या मिलेगा हमे चंद चमकीले से शीशे तोड के ।

Wednesday, February 9, 2011

एक्सटर्नल अफेर



मेरे एक दोस्त के प्रश्न ने मुझे बैचेन कर दिया है ईन दिनो। ये प्रश्न है...
क्या एक परणित स्त्री और परणित पुरुष मित्र नहीं हो सकते?

मैं क्या कहता ? मैं कोई ज्ञानी ,महात्मा ,या साधु तो हुं नहीं जो हर जगह अपनी ’ज्ञान-वाणी’ बाटता फिरुं| फिर भी मन बैचेन हो रहा था की आखिर इसका क्या जवाब देना चाहिए?
मैंने गुजरात के एक बहोत ही चर्चित लेखक चंद्रकांतबक्षी का एक लेख पढ़ा था। जिस मे उन्हों ने कहा था की “एक स्त्री और पुरष कभी मित्र नहीं हो सकते है ? यदि वो दावा करते हैं के वो अच्छे मित्र है तो या तो वो झूठ बोल रहे है, या फिर उनमें कोई रिश्ता नहीं है”| इस विधान से मैं सहमत हो जाउं या नही, ईसी पसो पेश मे मैं कब से चल रहा था। चलिए अब इस पर अपनी ’ज्ञान-सरिता’ बहाने की कोशिश कर के देखता हुं। ( जैसे की आज कल ’ज्ञानीलोग’ न्यूज़ चेनलो पर’ जा के करते हैं) ? शायद जवाब मिल जाये।

मैं यहाँ कोई गर्लफ्रेंड या बॉय फ्रेंड की बात नहीं कर रहा हुं, और न ही कोई लफ़डेबाजो की बात करने वाला हुं| मैं यहाँ एक रिश्ते की बात करने की कोशिश करना चाह रहा हुं।इसी रिश्ते की बात से संबधीत एक बात याद आ रही है, एक बहुत ही मश्हुर पत्रकार को किसी ने पुछा था की "आप के और आप की चेनल के एंकर के बिच में क्या लफड़ा है?जब की आपकी तो शादी हो चुकी है। जवाब में उन्हों ने कहा की " मेरे और उसके बिच में एक रूहानी रिश्ता है, हम दोनों के बिच एक डीप रिलेसन शिप है”|

जहाँ तक मेरा मानना है वहां तक मैं ऐसे रूहानी रिश्तों को शादी से कम पवित्र नहीं मानता । समाज को भी ऐसे रिश्तो को स्वाभाविक तौर पर स्वीकार कर ही लेना चाहिए , नहीं तो आने वाले दिनों में समाज नाम की पुरी व्यवस्था पर एक सवालिया निशान खड़ा हो जायेगा?वैसे भी पहले के भारतीय दौर मे राजाओं की कई सारी रानिया होती थी, हिदु देवी देवताओ के कई रिश्ते होते थे फिर भी उन्हें आज भी भगवान् ही माना जाता है| उनके खिलाफ कभी किसी ने प्रश्न नहीं खड़े किये? क्यों? ( क्यों की भारतीय समाज दंभ से भरा हुआ है|) पुरे विश्व को "काम-सुत्र" भारत ने दिया फिर भी आज भारत मे सेक्स पर बात करना वर्जित है ( ये बात और है की भारत की आबादी दिन-बा- दिन बढती ही जा रही है|) मेरी ऐसे सभी भारतीयों से अनुरोध है की कृपा करके दंभ छोड़े और परिवर्तन की लहर को महसुस करे | समाज के हरेक रिश्ते को आदर सामान दे|

बात आगे बढातें हैं..जिनके कोई विवाहोतेर संबंध हो ही नहीं शकते ऐसे कई भले मानुसों और सज्जनों को मैंने ऐसे रिश्ते बनाते और बाकायदा पुरे जीवन भर निभाते देखा है| उन्ही को फ़िर बोलते भी सुना है की " क्या होगा इस देश का ? इस समाज का ? आज कल लोग शादी के बाद भी दूसरी औरतो और पुरषों से संबंध कैसे रख सकते हैं? ये देश विनास की तरफ जा रहा है? में ऐसे महापुरषों और स्त्रियो को वंदन कर आगे बढ़ चलता हुं|

ऐसे रिश्तो को देख मेरे मन में एक प्रश्न स्वभाविक हो उठता है की स्त्री पुरुषो को अपने संबंधो को चुपके से शरमाते शरमाते भी निभाना क्यों पड़ता है? क्या प्रेम कोई गुनाह है? कया शादी करने के बाद किसी को कभी प्यार नहीं हो शकता? और क्या एक साथ दो व्यक्तिओं से प्यार नहीं किया जा सकता या निभाया नहीं जा शकता? मेरी निगाह में तो ऐसे प्यार करने वालो को और खुल के समाज के सामने आने वालो को आदर की नजर से देखना चाहिए| ऐसे रिश्ते रखने वालो को जो परेशान करता है या निंदा करता है वो मेरी नजर में एक बलात्कारी है,जो किसी अच्छी चीज को देख कर खुश नहीं हो शकता |( वैसे भी भारत का पौराणिक इतिहास रहा है जब भी कोई हवन करता है तो उस मे हड्डीयां डालने वाले आ ही जाते थे,और वो कौन होते थे ये मुझे बताने जरूरत महसुस नहीं होती आप सब को पता है। आज के समय मे सिर्फ उनका रोल और कार्य बद्ल गया है।) ऐसे कर्म करने वालो का खुल कर विरोध करना चाहिए | और जैसे भारत देश में बक-बक हर कोई करता है किन्तु करता कुछ नहीं वैसे अगर आप में और हम कुछ न कर सके तो ऐसे रिश्तो को कम से कम सम्मान की नजर तो बक्श ही शकते है | अगर ऐसा किया जाये तो वो ही मेरी नजर में सच्चा वलेनटाइन गिफ्ट होगा इस भारतीय समाज को|

अच्छा अब चलता हुं बहोत हो गया ...
जाते जाते इस कहानी के अनुरुप गुलजार साहब का इक शेर सुन लिजीये

कब्रिस्तान है, कब्रिस्तान से आहिस्ता गुजरो, कोई कब्र हिले ना जागे, लोग अपने अपने जिस्मो की कब्रो में बस मिट्टी ओढे दफन पडें है।

सुचना : में शादीसुदा नहीं हुं | मेरा कोई एक्सटर्नल अफेर भी नहीं है|