Saturday, June 12, 2010
याद रखना मैं एक पत्रकार हूँ.....!
याद रखना मैं एक पत्रकार हूँ.....!
जब से मैं इस क्षेत्र मैं आया हूँ तब से कहीं न कही ये किसी न किसी रूप मे ये शब्द मुझे सुनाई दे ही जाता है..! कभी इस मे अभिमान छिपा हुआ होता है,तो कभी इस मे गर्व छिपा होता है तो कभी कभार केमरे के पीछे की लाचारी भी इसी शब्द के रूप मै पिस टु केमेरा दे जाती है...!...
लेकिन पिछले कुछ दिनों से यही प्रश्न मैं बार बार सोचता रहा की आखिर पत्रकार यानि क्या..?! ( जब की मैं खुद एक पत्रकार बनने की कोशिश कर रहा हूँ।)इस सन्दर्भ मे मैं आप को एक घट्ना बताना चाहुंगा।
कुछ दिन पहले मेरे एक पत्रकार मित्र को घर लेना था। बहोत खुश था वो क्युंकी उसके जीवन का एक बहोत बड़ा सपना सच होने जा रहा था।उसने अपने कुछ दिनों की बचत और कुछ माँ बाप की बचत से घर लेनी की सोची थी। लेकिन वो इतनी नहीं थी की उस से वो घर खरीद ले।लिहाजा उस ने बैंक लोंन ले कर घर लेने की ठानी। हम साथ साथ बैंक गए,बेंक वाले ने जैसे मेहमान की तरह खातिर दारीकी, सब बात ख़तम होने पर जब जॉब का आप्शन आया तो उसे देखते ही हमे लोन देने के लिये उत्सुक उस शक्स के आँखों की भोंवे तन गई। कुछ हक-पकाया और बोला थोड़ी देर आप बैठो मैं अभी आया। कुछ देर इंतजार करने के बाद जब वो लौटा तो उसने अपने चहरे पर एक कमिनी सी मुस्कान लाते हुए कह दिया सॉरी सर हम आप को लोंन नहीं दे शकते। हमारी बैंक का नियम है की हम पत्रकारों को लोंन नहीं देते। सुनते ही हम लोग बहोत चीखे चिलाये पर कुछ न हुआ,अंत मैं चुप चाप वहां से निकल आये ,उस के बाद हमने कई बेंको के चक्कर काटे हर जगह एक ही जवाब मिला शोरी और वो भी उसी कमीनि मुस्कान के साथ। और अब मेरे उस पत्रकार मित्र का घर लेने का सपना सपना ही रह गया है आज तक...( क्यूँ की वो इमानदारी से सिर्फ पत्रकारिता ही करता है) | शायद ऐसा और कईओ के साथ हुआ हो लेकिन मुझे पता नहि।
बड़ी बड़ी समाज सुधार की बाते करते और सरकार पलट देने का हौंसला दिखाने वाले पत्रकार की क्या यही इज्जत है? खुद सरकार कि बनाई बेंक भी उन पर विश्वास नहीं करती भैया तो औरो से क्या आशा रखें।
चाय या कोफी की प्याली के घुंट मारते हुए मित्रो के सामने गर्व से बोलते मैंने कई लोगो को सुना है की मैं पत्रकार हूँ बड़े बड़े लोग मेरे एक फ़ोन से कांप उठते है। क्या यही पत्रकार की इज्जत है?( ये तो उसका ही मन जानता होगा की एडिटर का फ़ोन आते ही कौन कांप उठता है.. उसकी क्या हैसियत है ये तो न्यूज़ रूम या न्यूज़ डेस्क पे जाने से ही पता चलती है) मुझे यही नहीं समझ आता की किस भ्रम मैं है ये पत्रकार। कही भी ट्राफिक पुलिस ने पकड लिया तो प्रेस का कार्ड दिखा के धमकी देते मैंने कई पत्रकारो को देखा है,और यह कह्ते भी सुना है की तुम्हारे खिलाफ लिखना होगा,( जैसे सारे न्युज चेनल की स्टोरी या न्युज पेपर की स्टोरी वो ही तय करता है।) फिर उन्ही लोगो को इमानदारी के कई सारे लेक्चर देते भी मैने सुना है। कया ऐसा दो मुहा है पत्रकार? आज पत्रकार की क्या हैसियत रह गई है.?? पत्रकार शब्द के माइने क्या है?
मैं नहीं जानता लेकिन कुछ दिनों पहले मैं एक गाँव गया था, वहां एक बूढ़े आदमीं ने पुछ लिया बेटा क्या करते हो ? अपन ने शान से कह दिया (मेरे जैसे शायद सब न कहते हो) पत्रकार हूँ! जरा भी देरी किये बिना उन्हों ने झटसे कह दिया..क्या और कोई काम नहीं मिला था.! ( ये है एक बुजुर्ग की दर्ष्टी से पत्रकार।)
मेरे दोस्त के भाई का फ़ोन आया की “जर्नालिसम” करना चाह्ता हूँ। मैंने उस से पुछा “जर्नालिसम” ही क्यूँ?(पत्रकारीता के गुणधर्म के मुताबिक।) उस ने बड़े ठन्डे कलेजे से कहा की वैसे तो एक्टर बनना चाहता था लेकिन चांस नहीं दीखता तो “जर्नालिसम” ही कर लुं। पत्रकारों के आज कल बहोत ठाठ है..!(वो शायद पत्रकारीता को ग्लेमर के नजरिये से देख रहा था। ये है जर्नालिसम मैं आने वाली पीढ़ी की नजर से एक पत्रकार.!)
( ये लोग ऐशा सोचे उसमें कोई गलत नहीं है क्यूंकि मैंने खुद कई जाने-माने पत्रकारों को गिफ्ट-वाउचर के लिए झगड़ते और कई सरकारी और गैर सरकारी लोगो की बदलियों के लिए मंत्रियो से सिफारिश करते देखा है,फिर वो इज्जत कहा से पाएंगे?)
आज कल नौकरी तन्खवाह छ्ट्नी,लोबिंग और ना जाने किन किन बलाओ से जुझते है पत्रकार,लेकिन बहार दिखावा तो ऐसे करते है जैसे सब कुछ है पत्रकार...! पत्रकार की इज्जत भी दिन बा दिन घटती हि जा रहि है,उन्हे ऐसे ऐसे शब्दो से नवाजा जाता है कि उसे मै यहां नही लिख सकता।( कई सारी बिप बजानी होगी जो यहां नही बजेगी।) इसके लिये जिमेदार कौन है ये भी मै नही जनता।
वैसे तो बहोत कुछ लिखना था लेकिन क्या करूँ मैं भी एक पत्रकार बन रहा हूँ ! पढ़ कर आप क्या सोचते हो पत्रकारों के बारे मैं जरूर लिखना वर्ना याद रखना मैं भी एक पत्रकार हूँ.....!
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This time u raised good question, day by day graph of journalism goes down. No one thinks about the real problem, u should and every people who is related to journalism field should try to improve the situation. Otherwise coman people lose faith from journalist like they lose from police officers. so again good topic keep it up my boy.
ReplyDeleteExcellent
ReplyDeletenice one bhaiya :)
ReplyDeletedear dilip...i don't wanna forlong on wat is a journalism but truth is truth..the competition is in market is such that everyone want to florish in a day either by cook or hook,the standard of journalism is depends whole sole on the popularity of the topic concern with public and related personalities in society,rather this is the only field where a hen can blow horn every morning without any limitation,jounalism mean a power in the hands of a true person who brings real mirror to society...hats off to all the journalist who go or the news in areas which is beyond our expectation..they never see climate...either thunder ,strom ...but they r at news desk all the time...so dilip u go on ...if ur having ur instict power of writing nobody can stop ur pen..
ReplyDeleteDILIP,
ReplyDeleteTUMHARA ARTICLE PADHA....TUMNE BILKUL SACH LIKHA HAI..AAJ MEDIA KO AACHI NIGHA SE NAHI DEKHA JATA HAI OR ISKO HAM JAISE HI KAI PATARKARO NE KHRAB KIYA HAI..MAI TO EK BANDI KO JANTI HU JO PRO KE BICH SIRF GIFT BATORNE KE LIYE JANI JATI HAI....KABHI KABHI MAI KUDH SOCHTI HU KI MEDIA ME AAKAR KAHI KOI GALTI TO NAHI HO GAI...LIKHTE RAHE ..
લિખતે રહીએ બિરાદર. આપ બહુત સુંદર બાતે લિખતે હૈ ઔર કાફી મનોમંથન કે બાદ લિખતે હે ઓર પ્રામાણિકતા સે લિખતે હે. વો હમ વાચક પહચાન લેતે છે.
ReplyDeleteઅપને ક્ષેત્ર કે બારે મે આજ હરકોઈ યહી કહેગા કી મેરા ક્ષેત્ર ઇસ સૃષ્ટિ કા સબસે ઘટીયા ક્ષેત્ર હૈ, સબસે જ્યાદા કમીને હમારે યહા હે ઔર બાત ભી સહી હૈ કમીનો કી તાદાત હરક્ષેત્ર મેં બહુત જ્યાદા હે. બહુત..બહુત.. જ્યાદા હે. ઇસલિયે મેં માનતા હું કી કોઈક્ષેત્ર અચ્છા યા ખરાબ નહી હોતા હે. વૈશ્યાલય મેં ભી એસા પાત્ર હોતા હે જો બુદ્ધ કો દેખતે હી ઉસકે ચરણમેં ગિરતા હે ઔર બુદ્ધ હો કે ઉઠતા હે. દુસરી ઔર સાધુ કે મઠમેં ભી સત્યાનંદ, કેશવાનંદ હોતા હૈ જોકી મઠ કો વૈશ્યાલયની નજરો સે દેખતા હૈ. માનવતા સે લબાલબ કસાઈ ભી હોતે હે ઔર દાક્તર કે સમુહમેં કિડની નિકલકર બેચ દેનેવાલે કસાઈ મિલ જાતે હૈ.
આપ પત્રકારિતામેં ન હોતે ઓર દુસરે કોઈ ભી ક્ષેત્રમે હોતે તો ભી ભલે હી હોતે.
आप सब लोगो का शुक्रिया | कृपया ऐसा ही साथ सहकार हम से बनाये रखे,कही भी मेरी गलती दिखे तो बिना संकोच लिखिए इस से हमें हमारी गलतियों को सुधारने का मौका मिलेगा| हालाकी हिंदी लिखने में कहीं-कही हमारी गलतियाँ है,धीरे धीरे वो भी दूर करने की कोशिश करूँगा.!
ReplyDeletevry good...par bhaiya kuch patrkaro ki vaghse ye hota hai....jaha bura hai vaha acha bhi hai aur jaha acha hai vaha bura bhi rahega
ReplyDeletegood.. very good... keep it up....
ReplyDeletedont worried dear,
ReplyDeleteHuman create cast,section and different profession bt never disappoint about our profession, bcz know about Shree Gita in Lord Krishana, God said, "Any religious better than our religious"
Dear Sing or Lion,
We like as print and electronic media person
so, we forget what is our goal?
Moral reality we and government and press lost it, even independence after fourth assets of nation like as Press(no body press exception)
forget people and they love only Money, Assets and Royal life and at last they divide nation.
so today we live in four (only bad)class
1) High-royal,
2) Semi royal,
3) Medium and
4) lower class
and they also divide profession
Like Society in Dr, Engineer,Corporate Sector like as M.D, chairman, president,
Press in Editor
govt in Sir and clerk and etc, etc...
one question IN KALIYUG WHO IS HAPPY?
ACTOR, CRICKETER,
list is long...........
in short if u have dream that u sure will be fight then u get it.
bt dear philosophy never fill up ur belly
so "dum hai to age javo warna do kadam piche chale javo na kabhi manjil milegi na koi rasta"
kshitij nayak
mumbai
Dear Dilip,
ReplyDeleteEvu nathi ke patrakaro e journalism bagadyu chhe. journalism bagadyu chhe to aa field ma man power na fugava ne kaarane. koi potani creativity kyathi proove kare. patrakaratva ma fugava e j patrakar ne majboor banavi didho chhe evu mane lage chhe
क्षितिज भाई और धराजी मैं आप की बात के साथ सहमत हूँ|लेकिन जब आप के घर में गंदकी फ़ैल जाये तो आप को ही उसे दूर करना होता है| बुराइयाँ हर एक क्षत्रे मैं है|लेकिन जिस क्षेत्र को में बहोत नजदीक से जनता हूँ उसके बारे मैं मैंने लिखा है| मैं ये नहीं कहता की मैं इसे एक दम सुधार दूंगा या ऐसा कोई बीड़ा मैंने उठाया है.|जो घटा वो लिखा है, जो देखा वो लिखा है.,मैं कम से कम शुरुआत तो कर शकता हूँ कुछ सुधारने की,या जो बुराइयाँ है वो बता तो शकता हूँ|
ReplyDeletebhai dilip jii kya kahu mai aapne to dukhte nabz ched de journalism is become only passion for m,oney
ReplyDeleteya dear i appreciate u
ReplyDeletesabse plahe to ye bat galat hai ke patrakaro ko bank loan nahi de ja shakte government ne rules banaye hai to wo sab ke liye ek saman hone chaiye kya patkar loan lakar paise nahi chukata kay?jo use lone nahi de ja shakte or dushre bat ye ke sabhi patrakar ek jaise nahi hote hai jo bat bat me bolte he ke me patrakar hu ha kaiye patrakar bolte hai jinke baje se jo such likhte hai unko ye sab bhogtana padta hai or last mai yahi kahunge ke gud artical.
ReplyDeletebahut khub ise padh kar patrakarita ke khokhale khwab dekhane walon ko thori akal aayegi. like this thought
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