मुख्य आलेख..!:


Sunday, July 31, 2011

अर्धांगिनी :



रात के २ बज रहे थे धीमी धीमी बारिश हो रही थी मैं भी अपनी मस्ती में मस्त बाईक चलाते-चलाते जा रहा था की आईआईएम के पास अचानक ही एक पागल सी लड़की दौड़ते हुए रोड क्रोस की और मैंने अपना बेलेंस खो दिया| जैसे तैसे मैंने अपने आप को और बाईक को सभाला गुस्से में मैं कुछ वो लड़की को कहूँ उस से पहले एक लड़का सामने आया और सॉरी कहने लगा| मैंने कहा भाई आप क्यूँ सॉरी कह रहे हो, तो उस ने कहाँ जिस ने आप को गिराया है वो मेरी पत्नी है| जैसे ही उसने ये कहा तो पत्रकारिता का खून दौड़ने लगा| ढेर सारे प्रश्न दिमाग में गुंजने लगे की ये लड़का तो ठीक-ठाक लग रहा है तो फिर ऐसी लड़की के साथ क्यूँ? वो भी इतनी रात को ? अपने मन में होते प्रश्न को रोक नहीं पाया तो आखिर कार उस लड़के से एक एक कर सारे प्रश्न पूछना शुरू कर दिया|लड़के ने भी बड़े प्रेम से बिना किसी हिचकिचाहट के सारे जवाब दिए|जिसे सुन कर उस कपल के प्रति दिल में मान-समान बहोत बढ़ गया|आप को पूरा वार्ता लाप सुनाता हूँ:

लड़के से पूछा की आप तो अच्छे लगते हो तो फिर इस लड़की से शादी क्यूँ की? उसका जवाब दिल को हिला देने वाला था|लड़के ने बताया की भाई जब मैंने इस से शादी की थी तब ये ऐसी नहीं थी|एक खूब सूरत और एक लड़के को जैसी पत्नी चाहिए वैसी थी| हमारी लव कम अरेंज मेरेज थी| इस से हमारा सारा परिवार खुश था | हमेशा सब को हँसाना हस्ते रहना इस की फिदरत थी|शाद्दी के कुछ ही दिनों में ये हमारे घर की शान जान और आन बन गयी थी | मुझे भी हमेशा यही आनंद होता की मैं इस दुनिया का सब से खुशनसीब इन्सान हूँ की ऐसी पत्नी मिली| समय बीतता गया और हमारे घर में और मेरे दिल में इस का प्यार गहराता गया|

पर ये बोहत ही मस्तीखोर और मेरे साथ थोड़ी सी जिद्दी थी | एक दिन रात को २ बजे मुझे कहा की बारिश हो रही है मुझे बाहर घुमने जाना है मैंने लाख मना किया लेकिन उस के आगे मेरी एक न चली | आखिर कार मैंने गाड़ी निकाली और निकल पड़ा घुमने | जैसे ही बहार निकला वैसे ही एक और जिद शुरू की के आज तक आप ने गाडी कभी तेज नहीं चलायी आज चलाओ मुझे आज गाडी की स्पीड देखनी है फिर मैंने मना किया लेकिन मेरी एक न चली वैसे भी उस की हर जिद को पूरा करना मैं अपना प्रेम समझता था| फिर गाड़ी तेज भगाना शुरू की एक दम फास्ट गाड़ी जाने लगी वो भी खूब खुश हो रही थी मैं भी उसे देख एक दम खुश हो रहा था| एक दुसरे को देख ही रहे थे की अचानक से एक कुत्ता सामने आया मैं ब्रेक मारू उस से पहले ही इस ने गाड़ी के कांच खोल जोर जोर से चिल्लाना शुरू किया कुत्ते को बचाने के चक्कर में आखिर कार मैंने कंट्रोल खो दिया और गाड़ी सामने खम्भे जा टकराई|ये गाड़ी के कांच खोल कर बहार थी तो सारे कांच के टुकड़े और खम्भा इस के सर से जा टकराया और मैं भी गाडी में बेहोस पड़ा रहा फिर कौन हमें अस्पताल ले आया कुछ पता नहीं |मैं तो जल्दी ठीक हो गया पर इसे सर में कांच घुसने और खम्भे की वजह से जयादा चोट लगी थी| एक साल तक कोमा में रही फिर धीमे धीमे ठीक तो हुई पर आज भी ये 'अनकोनसियस'है कुछ पता नहीं होता इसे की ये क्या कर रही है? क्या खाना है? क्या पहनना है कुछ भी नहीं| मुझे ही इसके सारे काम करने पड़ते है| इसकी वजह से मेरे घर में भी कई बार झगड़े हुए की अब इस पागल के साथ क्यूँ जिदगी बिगाड़ रहा है? पागल खाने छोड़ आ या तो इस के मायके भेज दे | पागल के सहारे जिन्दगी नहीं जी जाती| मेरे माँ बाप से इसी को लेकर रोज रोज झगड़े होने लगे |

बात को रोकते हुए उस ने पूछ लिया की भाई आप ही बताओ क्या इसी अवस्था में इसे छोड़ देना ही मेरा पति का कर्तव्य है? क्यूँ छोड़ दूँ इसको भला? शायद इस की जगह मैं होता तो? मेरे पास कोई जवाब नहीं था सिर्फ आंशु निकले आँखों से. ..

बात को फिर आगे उसने बढाया कहा की जब तक ठीक थी तब तक सारे लोग इस के गुणगान गाते नहीं थकते थे आज इस को जब सच में इन लोगो की जरूरत हुई तो फिर सब ने तो छोड़ दिया मैं कहाँ चला जाऊं इसे छोड़ कर|
मेरे माँ बाप का बिहेवियर मुझ से सहन नहीं हुआ तो इस को लेकर घर छोड़ चला आया | समस्याये कई थी| फिर मुझे रोज इस का रूटीन देखना पड़ता था रोज रोज ऑफिस लेट जाने लगा ऑफिस जाने के बाद भी चिंता यही लगी रहती की कही कुछ उस को जरूरत हुई तो? केयरटेकर कितना ध्यान देगी? मेरा जी वहीँ लगा रहता| इसी चक्कर में ऑफिस लेट जाने लगा ऑफिस में भी प्रोब्लम होने लगी | फिर एक दिन नक्की किया के नहीं अब ये भी छोड़ इसके साथ ही रहना है | घर से ही फिर कुछ कर ने का सोचा| एक छोटा मोटा व्यापार कर रहा हूँ फिल हाल| घर से और दोस्तों की मदद से व्यापर भी चल रहा है|पुरे दिन इस के साथ भी रह पता हूँ|ये सब सुनकर मैं वैसे ही रो रहा था की उस ने बोला भाई आप क्यूँ दुखी होते हो? यही तो मेरा धरम था यही मैं कर रहा हूँ इस में दुखी होने की कोई बात नहीं है|आप चिंता मत करो |

फिर मैंने उस से पूछा की फिर आज इतनी रात को इस रोड पर क्या कर रहे हो तो उस ने कहा की बताया न भाई इसे बारिश बहोत पसंद थी तो आज बारिश हो रही थी वो भी पहली तो सोचा घुमा लाऊं और बाहर लेकर आने के बाद अब ये घर नहीं जाना चाहती तो इस को लेकर बैठा हूँ | बस अब यही मेरी जिन्दगी यही मेरी अर्धांगिनी है| और इसके सिवा और मेरा कोई है ऐसा मैं मानता भी नहीं |

सच में इस लड़के की बात सुन कर घर जा कर मैं भी खूब रोया और आनंद भी हुआ की प्यार सिर्फ फिल्मो और कहानियो में नहीं बचा सच में कई इन्सान प्यार को जी भी रहे है और निभा भी रहे है | सारी बाते सुनकर हमेशा से जो मेरे दिमाग मैं प्रश्न होता था की प्यार क्या है? वो एक दम साफ़ हो गया|

Wednesday, June 15, 2011

दिल के अरमान निकले.!!



कभी होती थी हँसी भी मेरे फोटो पर,
आज भीड़ में भी मुझे दर्द-ऐ-दिल हुआ करता है.
मेरे जीने की आरजू करते थे कभी, मेरे दुश्मन भी,
आज मेरा हमदर्द ही मेरे मरने की दुआ करता है.

समझता था ख़ुद को खुशनसीब जिसे मेरे दिल में पनाह मिलती थी,
आज अश्क भी मेरी आंखों में ख़ुद को बेपनाह समझता है.
खूबसूरत होता था हर वो नगमा जो मैं कलम से लिखता था,
आज लहू से लिखा "प्यार" भी सब को अल्फाज़ नजर आता है.

कभी जीता था मेरा कातिल भी मेरे जीने की उम्मीद में,
आज मेरा दिल भी मेरे मरने की दुआ करता है.
क्या होती है बेवफाई ये सिर्फ किताबों में पढ़ा करता था ,
आज हर लम्हा मेरी मोहब्बत के लिए तड़पता है.

Thursday, May 26, 2011

कभी यहाँ भी एक बस्ती बसती थी....!!



कल जो बस्ती गिराई गई उस बस्ती में मेरा कोई नहीं था|
औरतें बच्चें बूढ़े और कई लोग जिनके सर पर इस झुलसती धुप के सोले गिर रहे थे उन मेसे मेरा कोई नहीं था।

स्कूल जो कभी कच्चा-पक्का था,जो बनते बनते इक मोल बनकर कई बच्चों का जीवन झुलसा गया उनमे से मेरा कोई नहीं था । में तो कोंनवेंट स्कूल मे पढ़ा था |

उन स्कुल में,मैं या मेरे घर से कोई कभी पढने न गया है और न ही जायेगा क्या पता उनका स्टान्ड्रड देख हम लोग लज्जा जायेंगे|

उस ओर जिस ईमारत की नीव खोदते खोदते अपनी कबर खोद खुद दफ़न हो गया उन मजुरो में मेरा कोई नहीं था मैं तो अपने आलिशान बंगले मे ऐ.सी.ओन कर के आराम से सोता हुं |

मेरी कोई दुकान कभी नहीं टूटी , मेरा कोई घर कभी नहीं टुटा मैं तो बस दूर से दुसरो के घर को टूटते देखता रहा और देखता रहता हुं।

ये सब ख्याल मेरे दिमाग मे चल रहे थे तभी कहीं अचानक से मेरा दिल जोर से धड़का जैसे मुझसे बोला तू क्यूँ बेकार का परेशान होता है इन सब मैं कहाँ कोई तेरा था जो इतना मायूस होता है|

Monday, May 9, 2011

सपनो की रानी



लिखना चाह्ता हुं तुझे प्यार भरे खत ऐ सपनो की रानी बता तुझे कैसे लिखुं?
हर सुबह तुझे ही देखना चाह्ता हुं ऐ मेरे सनम तु ही बता कैसे तुझे देखुं?
हर बात पर करना चाहता हुं तुझे याद है तुझे भी पता मेरे पास तो तेरी कोई याद भी नही।

जाने किस फुलों की तरह मुस्काती है तु, न जाने किस दिन के चांद की तरह है तेरी सुरत? मेरे पास तो तेरी कोई तस्वीर ही नहीं । न जाने किस शबनमी रात की तरह है तेरे आंसू मेरे पास तो तेरे कोई गम भी नहीं।

कया तेरे सुख पर किसी के प्यार का घुंघट पडा है या मेरी तरह तु भी तलाश रही है कोई प्यारी सी छांव। क्या तेरा भी है कोई सपनों का राजकुमार है या की मेरी तरह तेरा भी कोई सपना ही नहीं।

मुझे कुछ भी मालुम नही की कौन है तु? कहां है तु? कैसी है तु? तेरे बारे मे हर तरह से अनजान हुं मै। और क्या कहुं तेरे गुलाबी होठों के निकट सिर्फ़ बेजुबान हुं मै।

न मेरे पास तेरा कोई निशां है न तेरे पास मेरा, तेरे लिये तो सिर्फ बेनिशान हुं मै। ऐ सनम अब तु ही बता कैसे तुझे पुकारूं? किन सितारो में तुझे निहारूं ? किन हवाओं से पुछुं तेरा नाम तेरे लिय्र अब तो सिर्फ़ गुमनाम हुं मै।
बस छ्म छ्म करती आ जाओ मेरे जीवन मे मेरे पास तुम्हारे सिवा कुछ भी नहीं।

Thursday, April 14, 2011

आखरी ख़त...



आज का आखरी ख़त सोचा लिख ही दूँ कल फिर ये सुबह मिले न मिले,

गरीबी ,भूख , भ्रष्टाचार से दबे देश का दुःख देख लगता है की कहीं ये मुझे अपने आप से ही बागी न कर दे| यहाँ हर रोज कोई न कोई जुलम की छाहं में दम तोड़ता है ,हर रोज यहाँ न जाने कितने निर्दोषों का लहू सडको पर पानी की तरह बहता है| इन घट्नाओं को देख सदा डर लगा रहता है की कहीं मेरे विचार मुझ से ही बगावत न कर दे|
न जाने कितनी चूड़ियाँ टूटती है इस देश की नंगी सडको पर न जाने कितने हाथो में महेंदी कभी रंग लाती ही नहीं|

आये दिन अखबारों मे दिख जातें हैं दबी,कुचली,लटकी लाशो के फोटो, इन फोटो से किसी का दिल पसिजता हो की न हो लेकिन मेरा दिल विचलित हो जाता है और ये डर लगता है की कहीं मेरा दिल धड़कना ही न छोड़ दे |
हर रोज नसे में झुलसती है कई युवको की जिंदगीयां कही ये झुलसन मेरे देश के नौजवानों को नसेड़ी ही न कर दे ?

हर सुबह होते ही किसी न किसी का कोई न कोई द्वार सुना हो जाता है हर आंगन मुझे सिसकता दिखाई देता है, क्या करूँ ? क्या करूँगा ? यही सोच हर दिन बस चुपके से मरता रहता हुं | क्या यही मेरा फर्ज है ? क्या सब कुछ देख चुपचाप सहन करना ही मेरे फर्ज की ललकार है? मैं खुद किसी का हमराह हुं या गुमराह हुं यही तय नहीं कर पाया तो अब इस देश को क्या रस्ता दिखाऊंगा ?

इसी लिए ऐ देश सोचा आज तुझे आखरी खत लिख ही दूँ शायद कल मैं भी भ्रष्ट हो ही जाऊं ?आज दिल दहलता है तो टकरा जाऊं हर जुलम की तलवार से कल कहीं मेरा खून ठंडा न पड जाए ? ऐ वतन तेरी सन्दली बाँहों की कसम अगर इस जिंदगी मे अपने दम पर जिंदा लौट आया तो फिर एक नया भारत जरूर बसाऊंगा| फिल हाल तो यही सोच रहा हुं इस आखरी ख़त को किसे भेजुं , खुद ही पढुं, या फिर जला कर इस की राख खुद ही पी जाऊं |

जाते जाते:
मैं कोशिश करना चाह रहा था कि गिरते हुये इक पेड को रोकुं, कमबख्त जब तक जेह्न मे ये विचार आया तब तक लोग उसे पहुंचा चुके थे कारखाने में।

Saturday, February 26, 2011

उम्मींदो का आसमां


मैं चला था ईक नया जहां बनाने अपनी उम्मींदो का नया आसमां बनाने, मुझे कहां पता था यहां आसमानो के भी ठेकेदार होतें हैं जिन पर घमंड के बाद्ल छाये होतें हैं। किन्तु इनपर घमंड से सनी धनक कौन चढ के साफ़ करे, “ज्ञान-रूपी” अभिमान के इनको जालें लग चुकें हैं, रुपयों की श्याही का ईनको ठप्पा लग चुका है। कोई अगर उसे मिटाने की कोशिश भी करता है तो अभिमान की गर्द उड्ने लगती है।

वो अपना फ़लक खोल परिवर्तन की लहर को महसुस नही करना चाह्ते है,कहीं नाकामी की धुप जलाकर राख न कर दे। पुरातन विचारो के इतने पत्तों ने घेरा हुआ है इन्हे की शाखों पर बद्लाव के परिंदे बैठ्ते ही नहीं ( य़ा बैठ्ने नही देना चाह रहें है)।

अब कैसे उम्मीद पालुं, कैसे खोलुं दिलों के राज, कैसे उडाऊं अपनी आशाओं के परिंदे, यहां तो हर डाल पर बैठा है शैयाद । मुझे फ़िर लौट कर चले जाना है इक अनंत यात्रा पर ये मालूम है, क्या करे जालिम ये दिल ही नही मानता के हर वख्त कि इक शाम होगी ऐसे लोगों कि खास जिंदगी भी कभी आम होगी।
ये तो मेरी बे लगाम ख्वाहिशें हैं जो मुझे दौडाती रहती हैं, वर्ना कौन चाहता है सुरज के चमकीले उजालों में अंधेरे की नाजायज औलादें ढुंढ्ना।

दुख तो हमेशा मुझे यही रहेगा की वो हमे समझते ही नही, हो जातें है बेववजह हमसे खफा उन्हे महसुस होता है शायद मैं यहा कुछ लेने आया हुं, उन्हे कौन बताये सनम मैं यहां तो क्या कहीं भी कुछ लेने आया ही नही था।
ऐ आसमान के ठेकेदारो अब तो समझो, आप की खातिर तो हमने अपनी उम्मींदो का आसमां लुटा दिया, क्या मिलेगा हमे चंद चमकीले से शीशे तोड के ।

Wednesday, February 9, 2011

एक्सटर्नल अफेर



मेरे एक दोस्त के प्रश्न ने मुझे बैचेन कर दिया है ईन दिनो। ये प्रश्न है...
क्या एक परणित स्त्री और परणित पुरुष मित्र नहीं हो सकते?

मैं क्या कहता ? मैं कोई ज्ञानी ,महात्मा ,या साधु तो हुं नहीं जो हर जगह अपनी ’ज्ञान-वाणी’ बाटता फिरुं| फिर भी मन बैचेन हो रहा था की आखिर इसका क्या जवाब देना चाहिए?
मैंने गुजरात के एक बहोत ही चर्चित लेखक चंद्रकांतबक्षी का एक लेख पढ़ा था। जिस मे उन्हों ने कहा था की “एक स्त्री और पुरष कभी मित्र नहीं हो सकते है ? यदि वो दावा करते हैं के वो अच्छे मित्र है तो या तो वो झूठ बोल रहे है, या फिर उनमें कोई रिश्ता नहीं है”| इस विधान से मैं सहमत हो जाउं या नही, ईसी पसो पेश मे मैं कब से चल रहा था। चलिए अब इस पर अपनी ’ज्ञान-सरिता’ बहाने की कोशिश कर के देखता हुं। ( जैसे की आज कल ’ज्ञानीलोग’ न्यूज़ चेनलो पर’ जा के करते हैं) ? शायद जवाब मिल जाये।

मैं यहाँ कोई गर्लफ्रेंड या बॉय फ्रेंड की बात नहीं कर रहा हुं, और न ही कोई लफ़डेबाजो की बात करने वाला हुं| मैं यहाँ एक रिश्ते की बात करने की कोशिश करना चाह रहा हुं।इसी रिश्ते की बात से संबधीत एक बात याद आ रही है, एक बहुत ही मश्हुर पत्रकार को किसी ने पुछा था की "आप के और आप की चेनल के एंकर के बिच में क्या लफड़ा है?जब की आपकी तो शादी हो चुकी है। जवाब में उन्हों ने कहा की " मेरे और उसके बिच में एक रूहानी रिश्ता है, हम दोनों के बिच एक डीप रिलेसन शिप है”|

जहाँ तक मेरा मानना है वहां तक मैं ऐसे रूहानी रिश्तों को शादी से कम पवित्र नहीं मानता । समाज को भी ऐसे रिश्तो को स्वाभाविक तौर पर स्वीकार कर ही लेना चाहिए , नहीं तो आने वाले दिनों में समाज नाम की पुरी व्यवस्था पर एक सवालिया निशान खड़ा हो जायेगा?वैसे भी पहले के भारतीय दौर मे राजाओं की कई सारी रानिया होती थी, हिदु देवी देवताओ के कई रिश्ते होते थे फिर भी उन्हें आज भी भगवान् ही माना जाता है| उनके खिलाफ कभी किसी ने प्रश्न नहीं खड़े किये? क्यों? ( क्यों की भारतीय समाज दंभ से भरा हुआ है|) पुरे विश्व को "काम-सुत्र" भारत ने दिया फिर भी आज भारत मे सेक्स पर बात करना वर्जित है ( ये बात और है की भारत की आबादी दिन-बा- दिन बढती ही जा रही है|) मेरी ऐसे सभी भारतीयों से अनुरोध है की कृपा करके दंभ छोड़े और परिवर्तन की लहर को महसुस करे | समाज के हरेक रिश्ते को आदर सामान दे|

बात आगे बढातें हैं..जिनके कोई विवाहोतेर संबंध हो ही नहीं शकते ऐसे कई भले मानुसों और सज्जनों को मैंने ऐसे रिश्ते बनाते और बाकायदा पुरे जीवन भर निभाते देखा है| उन्ही को फ़िर बोलते भी सुना है की " क्या होगा इस देश का ? इस समाज का ? आज कल लोग शादी के बाद भी दूसरी औरतो और पुरषों से संबंध कैसे रख सकते हैं? ये देश विनास की तरफ जा रहा है? में ऐसे महापुरषों और स्त्रियो को वंदन कर आगे बढ़ चलता हुं|

ऐसे रिश्तो को देख मेरे मन में एक प्रश्न स्वभाविक हो उठता है की स्त्री पुरुषो को अपने संबंधो को चुपके से शरमाते शरमाते भी निभाना क्यों पड़ता है? क्या प्रेम कोई गुनाह है? कया शादी करने के बाद किसी को कभी प्यार नहीं हो शकता? और क्या एक साथ दो व्यक्तिओं से प्यार नहीं किया जा सकता या निभाया नहीं जा शकता? मेरी निगाह में तो ऐसे प्यार करने वालो को और खुल के समाज के सामने आने वालो को आदर की नजर से देखना चाहिए| ऐसे रिश्ते रखने वालो को जो परेशान करता है या निंदा करता है वो मेरी नजर में एक बलात्कारी है,जो किसी अच्छी चीज को देख कर खुश नहीं हो शकता |( वैसे भी भारत का पौराणिक इतिहास रहा है जब भी कोई हवन करता है तो उस मे हड्डीयां डालने वाले आ ही जाते थे,और वो कौन होते थे ये मुझे बताने जरूरत महसुस नहीं होती आप सब को पता है। आज के समय मे सिर्फ उनका रोल और कार्य बद्ल गया है।) ऐसे कर्म करने वालो का खुल कर विरोध करना चाहिए | और जैसे भारत देश में बक-बक हर कोई करता है किन्तु करता कुछ नहीं वैसे अगर आप में और हम कुछ न कर सके तो ऐसे रिश्तो को कम से कम सम्मान की नजर तो बक्श ही शकते है | अगर ऐसा किया जाये तो वो ही मेरी नजर में सच्चा वलेनटाइन गिफ्ट होगा इस भारतीय समाज को|

अच्छा अब चलता हुं बहोत हो गया ...
जाते जाते इस कहानी के अनुरुप गुलजार साहब का इक शेर सुन लिजीये

कब्रिस्तान है, कब्रिस्तान से आहिस्ता गुजरो, कोई कब्र हिले ना जागे, लोग अपने अपने जिस्मो की कब्रो में बस मिट्टी ओढे दफन पडें है।

सुचना : में शादीसुदा नहीं हुं | मेरा कोई एक्सटर्नल अफेर भी नहीं है|