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Tuesday, July 27, 2010

|| चल रे मनवा रेल वे ट्रेक ||



कुछ दिनों पहले ही मैने भारत की एक अजायबी भरी सेवा से भारत की ही एक दुसरी अजायबीओं से भरी दुनिया देखी। भारतीय रेल की “राजधानी” से भारत की राजधानी की और जा रहा था। सुबह का वख्त था, ट्रेन मे और कुछ काम तो होता नहीं, लिहाजा जो मेरे जीवन मे बहोत कम होता है वो हुआ, मैं सुबह जल्दी उठा। प्रक्रुति के नजारे आँखों को खुब लुभा रहे थे। धीमे धीमे ट्रेन आगे बढ़ रही थी,वक्त गुजरता गया और रेल्वे ट्रेक की तरह पृकृति के नजारे आँखों से ओझल होने लगे थे। ट्रेन के नीले कांच के अन्दर से रेल्वे ट्रेक के किनारों की एक नई दुनिया की झांकी झांक रही थी। वो कुछ ऐसी दुनिया थी जिसे देख कर मैं हैरान हो गया।

सुबह उठते ही बाथरूम का दरवाजा खोलने की आदत शायद सबको है। लेकिन रेल्वे के किनारे बसे लोगो की दुनिया मे शायद ये नसीब नहीं है। खुला आसमान ही उनका बाथरूम है और रेलवे ट्रेक ही उनकी दिनचर्या सुरु करने का स्थान। एक दिन अगर घर मे पानी नहीं आता तो मैं व्याकुल हो जाता हूँ,लेकिन इन्हें देख कर ये प्रश्न हुआ की ये लोग पानी कहा से लाते होंगे ? सोने के लिए मुलायम गद्दे हमेशा मेरा इंतजार करते है जिनके बिना मुझे कभी नींद नहीं आती, वोही एक छोटे से मासूम को रेलवे ट्रेक के कंकडो पर सोते देख मुझे सारे सुख याद आने लगे। सोने के लिए पिन-ड्रोप सायलंस की आवश्यक्ता शायद मुझे हमेशा रहती है। लेकिन एक बुजुर्ग को रेल्वे से एक दम सटके अपनी चारपाई डाल कर एक दम शोर-शराबे के बीच आराम से सोते मैंने देखा। २० बाय २० का कमरा भी मुझे हमेशा छोटा लगता था, लेकीन १० बाय १० के कमरे मे कई लोगो को रेल्वे के किनारे आराम से रहते देखा। १० मिनिट भी चाय मिलने मे देरी हो जाय तो घर मे मैंने चिल्लाते हुए लोगो को देखा है। लेकिन रेल के इस किनारे कईओ की सुबह बिना चाय के होती मैंने देखी। अलार्म से हमेशा नींद को त्यागने वाला मै ये सोच कर दंग रह गया के रेल्वे के ईन्जन की सिटी न जाने कितनो का एलार्म है। कितनो की सुबह सिर्फ उसकी एक आवाज से होती है।
मुझे सुबह होते ही अखबार और देश की चिंता सताने लगती है लेकीन पहली बार रेलवे के किनार लोगो को सुबह उठ कर सिर्फ खाना कहाँ से आएगा ऐसी चिंता करते देखा। लोग जितना जल्दी हो उतना जल्दी इन रेलट्रेक वाले अपने घरो को छोडना चाहते थे,वंही मेट्रो के किनारे हजारो रुपियो का इत्तर लगाये लड़के लडकियों को घंटो बतियाते भी मैंने ही देखा है.!

ऐ.सी कोच मे बैठ कर ठंडी का एहसास और आनंद लेते मैंने उसी कोच के बाहर गर्मी मैं झुलसते लोगो को देखा है ! न जाने मुझे क्या हो गया है जब से मैंने इस रेलवे ट्रेक को देखा है। जैसे रेलके दो ट्रेक आपस मैं कभी नहीं मिलते वैसे मेट्रो और रेल्वे ट्रेक की आसपास की संस्कृति भी शायद आपस मैं कभी नहीं मिल पाएगी...! न जाने मुझे क्या हो गया है जब से मैंने रेलवे ट्रेक को देखा है.!

7 comments:

  1. life ma dareke aa experience vahela ka moda karyo j hashe. ane te scene kharekhar heart touching hoy chhe. Aapne hamesha aapna dukh joie chhe. Kharekhar aapna thi nichena ne joie to aapnane taklif shu chhe te khabar pade. pan aa j manav swabhav chhe. jo aapne hamesha vadhu sukhi thavani jankhna na rakhie to aapne progress na kari shakie e pan hakikat chhe. finally............good article

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  2. yahi khot hai ham inshan ke swabhav me ke wo hamesha jo unke pass hai utne mai santosh nahi manta hai agar uske pas thoda kuch bhi hota hai to unhe ye lagta hai ke abhi thoda jyada chaiye magar ham inshan hamare se jo log garib hai jo hamare pas se jinke pas kam hai unhe dekhne lage to wo samaj jayaga ke unke pas kya hai isliye agar life mai khus rehna hai to hamesha apne se jo log kam hote yane ke garib hote hai unhe dekhna chaiye phir dekhna ke life kya hai.

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  3. JOP AAPNE DEKHA WO SHAYED HUM KAB SE DEKH RAHE HAIDEKHNE SE AUR KUCH HO JANE SE KYA FARAK PADTA HAI NA US TIME AAPNE KUCH KIYA AUR NA HI HUM KERTE HAI

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  4. @ नितिन जी देख तो मैं भी कब से रहा हूँ.. मैंने अपने जीवन की सब से पहले अकेली ट्रेन यात्रा ८ साल के उम्र मैं की थी | और तब से लेकर आज तक ये सफ़र चला ही आ रहा है| ये प्रश्न तब से मुझे सता रहा था जिसको आज १८ सालो बाद शब्दों में उतार पाया हूँ| और रही बात कुछ करने की तो उसकी पहल मेंने कई सालो पहले ही कर दी है|

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  5. महगाई डायन को देख कर हेरान तो जरुर हुए होंगे बापू ! पर अब कुछ करने की सोच आये है वोह भी १८ साल के बाद यह बहोत बड़ी बात है ...और हा हसना बंध करो और लगे रहो.... ह हा हा हा आहा .........

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  6. Dilip I am totaly agree wid u on this ke bahot kam log hote hai jo kuch dekhte hai aur unse bhi kam log hote hai jo dekhne ke baad kuch likhte hai..aur unse bhi kam log hote hai jo dekhne likhne ke baad kuch acchaa karne ki sochte hai.. aur jahan tak main tumhe jaanti hun tum un kuch logo mainse ek ho,.. aur main tumhari kuch activities ko janti hun jo shayd kuch log nahi jante.. aur you r rite kuch chije dekhva kiye bina hi ki jati hai.. so one again good thought and wonderfully written ..

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