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Saturday, February 26, 2011

उम्मींदो का आसमां


मैं चला था ईक नया जहां बनाने अपनी उम्मींदो का नया आसमां बनाने, मुझे कहां पता था यहां आसमानो के भी ठेकेदार होतें हैं जिन पर घमंड के बाद्ल छाये होतें हैं। किन्तु इनपर घमंड से सनी धनक कौन चढ के साफ़ करे, “ज्ञान-रूपी” अभिमान के इनको जालें लग चुकें हैं, रुपयों की श्याही का ईनको ठप्पा लग चुका है। कोई अगर उसे मिटाने की कोशिश भी करता है तो अभिमान की गर्द उड्ने लगती है।

वो अपना फ़लक खोल परिवर्तन की लहर को महसुस नही करना चाह्ते है,कहीं नाकामी की धुप जलाकर राख न कर दे। पुरातन विचारो के इतने पत्तों ने घेरा हुआ है इन्हे की शाखों पर बद्लाव के परिंदे बैठ्ते ही नहीं ( य़ा बैठ्ने नही देना चाह रहें है)।

अब कैसे उम्मीद पालुं, कैसे खोलुं दिलों के राज, कैसे उडाऊं अपनी आशाओं के परिंदे, यहां तो हर डाल पर बैठा है शैयाद । मुझे फ़िर लौट कर चले जाना है इक अनंत यात्रा पर ये मालूम है, क्या करे जालिम ये दिल ही नही मानता के हर वख्त कि इक शाम होगी ऐसे लोगों कि खास जिंदगी भी कभी आम होगी।
ये तो मेरी बे लगाम ख्वाहिशें हैं जो मुझे दौडाती रहती हैं, वर्ना कौन चाहता है सुरज के चमकीले उजालों में अंधेरे की नाजायज औलादें ढुंढ्ना।

दुख तो हमेशा मुझे यही रहेगा की वो हमे समझते ही नही, हो जातें है बेववजह हमसे खफा उन्हे महसुस होता है शायद मैं यहा कुछ लेने आया हुं, उन्हे कौन बताये सनम मैं यहां तो क्या कहीं भी कुछ लेने आया ही नही था।
ऐ आसमान के ठेकेदारो अब तो समझो, आप की खातिर तो हमने अपनी उम्मींदो का आसमां लुटा दिया, क्या मिलेगा हमे चंद चमकीले से शीशे तोड के ।

2 comments:

  1. change the photograph photo does not carry subject of ummed selected a bird flying in sky

    with love
    chandrakant kanoja

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  2. @ chandrkan sir. as per ur suggestion photograph changed.

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