
लव-इन या लिव-इन का मुद्दा यूँ तो अब बहुत पुराना सा लगता है। जब से भारत मे लिव-इन रिलेसन सिप को मान्यता मिल गई है, तब से इस विषय मे लगातार चर्चा हो रही है।तरह तरह के मतभेद ,चर्चा,निर्णय सामने आ रहे है।लेकिन हाल ही मे इस मुद्दे के सुसंगत एक घटना मेरी जिन्दगी मे घटी । जिसने मुझे झगझोड कर रख दिया,या युं कहे की ये लिखने पर मजबूर कर दिया।
मैं पहले वो घटना बताना चाहता हूँ| फिर आप लोग बताईयेगा की क्या सही क्या गलत।मै फैसला आप पर छोडता हुं।
मेरे साथ एक खूबशूरत लड़का राहुल (नाम बदल दिया है) और उस से भी खुबसूरत लड़की नेहा (नाम बदल दिया है) पढ़ते थे । दोनों को मैं लगभग ७ से भी अधिक सालो से जानता था। उन को जब भी मिलता दिल खुश हो जाता ।उन दोनों को देख मैं हमेशा भगवान से प्राथना करता रहता की “हे भगवान इन दोनों की जोड़ी सलामत रखना,और ये हमेशा ऐसे ही हस्ते मुस्कराते रहे”। पढते- पढ़ते कोलेज काल समाप्त हो गया और ये दोनों आगे पढने के लिये पुणे ( स्थल बदल दिया है)चले गए।कई दिनों तक राहुल के फ़ोन आते रहे उन दोनों से लगातार बाते होती रही, दोनों साथ रहकर बहोत खुश थे। पढ़ते थे और साथ में जॉब भी करते थे । लेकिन फिर जैसे फिल्मो मैं कहानी मोड़ लेती है वैसे ही इन के जीवन मैं कुछ साल पहले कहानी ने करवट ली। दोनों ने अपने अपने घर मे शादी करने की बात कही ( दोनों एक दुसरे को अच्छी तरह जान चुके थे और एक दुसरे पर पूरा भरोशा भी था।दोनों बहोत अच्छे दोस्त भी थे,और इससे ज्यादा क्या चाहिये शादी के लिये? मुझे तो यहि मापद्डं लगता है।)
जैसे फिल्मो मैं होता है वैसे ही इन दोनों के माँ बाप ने भी रिश्तो से इन्कार कर दिया। क्यूँकी नेहा के परिवारवाले एक बहोत बड़े उद्योग घराने से थे और एक ऊँची जाती के भी थे। राहूल के घरवाले भी अच्छा खासा रसूख रखते थे पर वो एक निचली जाती के थे लिहाजा राहुल और नेहा के लगातार एक वर्षो के प्रयास के बाद भी उन दोनों की शादी की बात न बन सकी।फिर उन्हों ने भी प्रय्तन करना ही छोड़ दिया और पुणे मे साथ-साथ रहने लगे। पढाई खतम की फिर वहीँ नौकरी भी करने लगे। आज के समय मे कहे तो वो लोग “लिव-इन” मैं रह रहे थे । एक दुसरे की जरुरतो का पूरा ख्याल रखते एक दुसरे की हर चाहत पूरी करते। उन दोनों के बीच जिस तरह का रहन सहन था उस से लगता था की इतना प्यार तो कोई शादीशुदा जोडे के बीच भी नहीं होगा जितना प्यार इन दोनों के बीच था। वो एक प्यार भरे ’कपल’ की तरह जी रहे थे । मुझ से उन लोगो की बात होती रही इस से मुझ पता चलता रहा की वो लोग बहोत खुश थे।पर जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे नेहा के घरवालो का शादी करने का दबाव बढ़ता गया। नेहा के घर वालो को राहुल के साथ रहने की भी खबर लग चुकी थी इस वजह से वो और भी दबाव बना रहे थे।
एक दिन अचानक नेहा का फ़ोन आया की उसकी शादी तय हो गयी है, और मुझे जाना है उसकी शादी मे। मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। मैंने उसे बधाईया दी,मेरी बधाइया ख़तम होते ही वो जोर जोर से रो पड़ी और बताया की उसकी शादी राहूल से नहीं किसी और से हो रही है जिसे वो जानती भी नहीं और आज तक मिली भी नहीं। मैंने उस से शादी के लिए हाँ क्यूँ कहा ऐसा प्रश्न किया तो उसने बताया की उसकी माँ ने आत्महत्या करने का प्रयास किया था और नेहा को कहा की अगर वो उनके बताये लड़के से शादी नहीं करती तो वो और नेहा के पिता दोनों खुद्कुसी कर लेंगे। लिहाजा नेहा को शादी के लिए मजबूरन हाँ कहना पड़ा । फिर मैंने राहूल को फ़ोन लगया उस से बात हुई वो बिचारा भी बहोत रोया उसने कहा की ना चाहते हुए भी हमने ये फैसला लिया है। क्या करे समाज के नीति नियम और माँ बाप के आगे हम दोनों मजबूर है। कुछ दिनों मैं नेहा की शादी हो गई और उसके कुछ दिनों बाद राहूल ने भी शादी कर ली।बाद मैं राहूल ने बताया की उसे खुद नेहा ने ही ऐसा करने को कहा था। पर जो रिश्ता जबर-जस्ती जोडा गया हो, जिस रिश्ते की बुनियाद ही धमकी और डर पर रखी गई हो वो कहा ज्यादा दिन तक चल पाती?
नेहा और राहूल की शादीशुदा जिन्दगी मे भी लडाई झगडो की शुरुआत हो गई ।राहूल अपनी पत्नी मे हमेशा नेहा को ढुढंता रहा और नेहा अपने पति मे राहूल को। दिन-ब-दिन परिस्थितियां और भी बिगडने लगी मैंने नेहा और राहूल को समझाने कि बहोत कोशिश की पर कुछ सुधार नहीं आया।फिर कुछ दिनो तक मेरा उन से संपर्क नही रहा। एक दिन अचानक ही मुझे पता चला की राहूल ने जहर खा कर और नेहा ने पंखे से लटककर अपनी जान दे दी| खबर सुनते हि मै सन्न हो गया,हाथ पांव मे मानो खुन जम सा गया, आंखो के सामने दोनो के वोही मुसकुराते चहरे घुमने लगे। मैं दोनो के साथ बिताये लम्हो को याद कर खुब रोया। कुछ दिनो बाद उन दोनों के माँ बाप से भी मिला। मैं उनसे कुछ कह तो नहीं पाया किन्तु अंदर से एक आह उठी की “हो गई न शान्ति। तुम क्या आत्महत्या करते थे कर दी ना अपने लड्को कि हत्या। अब क्यूँ रो रहे हो तब मान गए होते तो ये दिन न देखना पड्ता। अरे आपको मंजुर नहीं था तो रहने देते उनको उनकी लिव-इन की दुनिया मे कम से कम हसी खुशी जिन्दा तो रहते। क्या जरुरत थी दोनों को मजबूर करने की। मार डाला ना।“
अब आप ही बताईये कि “लव-इन” या “लिव-इन”